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फणीश्वरनाथ रेणु जयंती विशेष: जब चहुंओर मच जाता था 'पढ़ुआ मेहमान' के आने का शोर

महान कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की आज जयंती है और उनकी जयंती पर कटिहार के महमदिया गांव के लोग आज भी उनकी यादें ताजा कर उन्हें याद करते हैं। वहां के लोगों के लिए रेणु पढ़ुआ मेहमान थे।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2020 09:34 AM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2020 09:37 AM (IST)
फणीश्वरनाथ रेणु जयंती विशेष: जब चहुंओर मच जाता था 'पढ़ुआ मेहमान' के आने का शोर
फणीश्वरनाथ रेणु जयंती विशेष: जब चहुंओर मच जाता था 'पढ़ुआ मेहमान' के आने का शोर

कटिहार [प्रकाश वत्स]। अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु कटिहार जिले के हसनगंज प्रखंड के महमदिया गांव के हर शख्स की जेहन में आज भी जीवित हैं। इस गांव के मध्य में स्व. सुबलाल विश्वास के परिवार का भी घर है। यहीं रेणु की दूसरी पत्नी पद्मा रेणु का मायका था। इस गांव के लिए रेणु 'पढ़ुआ मेहमान' थे। 

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इसके पड़ोस में ही रेणु की बहन मनोरमा देवी रहती हैं। यहीं उनका ससुराल है। चंद कदमों पर मसोमात कविता राय का घर है। वे रेणु की पुत्री हैं। कविता उनकी पहली पत्नी स्व. रेखा देवी की पुत्री हैं। रेखा देवी का मायका वहां से थोड़ी दूर बेलवा गांव में है। रिश्तों की मजबूत कड़ी के चलते अक्सर रेणु यहां आते रहते थे। अपने जीने के अलग अंदाज के चलते यहां की गलियों में वे अनूठी यादें छोड़ गए हैं। 

पद्मा रेणु के भाई के पुत्र प्रेमचंद विश्वास व अरुण विश्वास कहते हैं कि रेणु जी के आते ही उनके दरवाजे पर मेला लग जाता था। गांव का हर शख्स उनसे मिलने को बेताब रहता था। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि पढ़े-लिखे हों या निरक्षर, गरीब हों या अमीर हर किसी से उनकी उतनी ही जमती थी। लगभग सौ साल पुराने अपने पुश्तैनी घर के एक कमरे को दिखाकर वे कहते हैं, यह घर उन लोगों के लिए अब भी मंदिर समान है। वे जब भी यहां आते थे, इसी घर में उनका प्रवास होता था। 

 

चहुंओर मच जाता था पढ़ुआ मेहमान के आने का शोर

महमदिया व बेलवा के अधिकांश लोग रेणु को पढ़ुआ मेहमान ही कहते थे। इस इलाके में उस समय शिक्षा की घोर कमी थी। तब रेणु की ख्याति एक लेखक के रूप में थी। ऐसे में अपने गांव के दामाद रेणु को लोग पढुआ मेहमान भी कहते थे। उनके आने की खबर मिलते ही ग्रामीणों में एक अजीब सी खुशी की लहर दौड़ जाती थी। दरअसल जिंदादिल रेणु का अधिकांश समय इन ग्रामीणों के बीच ही बीतता था। महमदिया हाट में भी उनका चौपाल जमता था। 

निराला था मेरा भाई, हर किसी पर लुटाता था जान

रेणु की बहन मनोरमा देवी उनका नाम सुनते ही आज भी बीते दिनों की यादों में खो जाती हैं। उन्होंने कहा कि उनका भाई बचपन से ही निराले थे। दूसरों के दुख-दर्द में हमेशा शामिल होना उनकी आदत थी। अपने भाई-बहनों सहित अन्य स्वजनों के लिए भी वे जान छिड़कते थे। समयाभाव के बावजूद हर किसी की खैरियत लेना उनकी फितरत थी। 

 

गर्व है मैं रेणु की बेटी

रेणु की वयोवृद्ध पुत्री कविता देवी कहती हैं कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वे रेणु की बेटी हैं। उनकी मां रेखा देवी समय पूर्व ही ईश्वर की प्यारी हो गई थीं। लेकिन पिताजी उन्हें इतना प्यार करते थे कि उन्होंने कभी इन्हें इसका एहसास नहीं होने दिया। इतना ही नहीं जब पद्मा रेणु से उनकी दूसरी शादी हुई तो वे उन्हें भी ताउम्र 'कविता माय' कह कर ही पुकारते रहे।


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