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सरकारी स्कूलों में मीठा जहर पी रहे बच्चे

कटिहार। पेयजल व स्वच्छता को लेकर सरकार सतर्क है। लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने क

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 May 2020 09:36 PM (IST)Updated: Tue, 12 May 2020 09:36 PM (IST)
सरकारी स्कूलों में मीठा जहर पी रहे बच्चे
सरकारी स्कूलों में मीठा जहर पी रहे बच्चे

कटिहार। पेयजल व स्वच्छता को लेकर सरकार सतर्क है। लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने को लेकर नल जल योजना शुरू की गई है और तमाम पहल की जा रही है। लेकिन इसके इतर सरकारी विद्यालयों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था मयस्सर नहीं है। आयरन और आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में भी बच्चे सीधे चापाकल का पानी पी रहे हैं। इसके कारण उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि कुछ विद्यालयों में पेयजल शोधन संयंत्र की व्यवस्था की गई थी, लेकिन अधिकांश विद्यालयों में यह उपयोगी नहीं है।

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जिले के कई इलाकों में पेयजल में आयरन और आर्सेनिक की मात्रा अधिक है। पेयजल की जांच के दौरान इसका खुलासा हो चुका है। पूर्व में जिले के विभिन्न प्रखंडों में पेयजल की शुद्धता की जांच की गई थी। इसके बाद कई चापाकल में लाल निशान लगाया गया था। लेकिन शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की कवायद धरातल पर नहीं उतर पा रही है। इसके कारण आयरन और आर्सेनिक प्रभावित अमदाबाद, बारसोई, मनिहारी, कुर्सेला, बरारी सहित अन्य प्रखंडों में संचालित विद्यालयों में भी बच्चे सीधे चापाकल का पानी पी रहे हैं। जो बच्चों की सेहत के लिए ठीक नहीं है।

प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित है छह लाख बच्चे

जिले के प्रारंभिक विद्यालयों में लगभग छह लाख बच्चे नामांकित हैं, जबकि उच्च विद्यालयों में एक लाख से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। लेकिन सामान्य विद्यालयों के साथ आयरन और आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में भी सीधे चापाकल के माध्यम से बच्चे पेयजल का सेवन कर रहे हैं। लगातार पेयजल और स्वच्छता को लेकर जागरूकता अभियान और प्रभातफेरी निकालने में सरकारी विद्यालय के बच्चों का सहयोग लिया जाता है। लेकिन इस बच्चों के स्वास्थ्य और शुद्ध पेयजल को लेकर पहल नहीं हो पा रही है।

कारगर नहीं हो पाया पेयजल संयंत्र :

सरकारी विद्यालय के बच्चों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने को लेकर कुछ वर्ष पूर्व मध्य विद्यालयों में पीएचईडी विभाग द्वारा संयंत्र लगाया गया था। लेकिन यह कारगर साबित नहीं हो पाया। अधिकांश विद्यालयों में बने संयंत्र बेकार हो चुके हैं। जबकि कई विद्यालयों में उपकरण की खरीद भी हुई थी, लेकिन यह पूरी तरह उपयोगी नहीं हो पाई है। शुद्ध पेयजल के दावों के बीच सरकारी विद्यालयों के बच्चे पेयजल के नाम पर मीठा जहर पीने को मजबूर हैं।


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