Move to Jagran APP

सिख गुरुओं के चरण रज से पवित्र रही है बरारी की धरती

कटिहार। जिले के बरारी प्रखंड को मिनी पंजाब के रूप में भी जाना जाता है। सिख गुरुओं के चरण रज से यहां

By JagranEdited By: Published: Tue, 08 Jun 2021 09:43 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jun 2021 09:43 PM (IST)
सिख गुरुओं के चरण रज से 
पवित्र रही है बरारी की धरती
सिख गुरुओं के चरण रज से पवित्र रही है बरारी की धरती

कटिहार। जिले के बरारी प्रखंड को मिनी पंजाब के रूप में भी जाना जाता है। सिख गुरुओं के चरण रज से यहां की धरती पवित्र रही है। लक्ष्मीपुर के ऐतिहासिक गुरुद्वारा में गुरू गोविद सिंह जी का हस्तलिखित हुक्मनामा का दर्शन करने एवं मत्था टेकने पंजाब सहित देश के अन्य शहरों से हर वर्ष सिख श्रद्धालु प्रकाशोत्सव पर बरारी पहुंचते हैं। कहा जाता है कि आनंदपुर साहिब से गुरू गोविद सिंह ने हस्तलिखित हुक्मनामा भेजा था। गंगा नदी में गुरु ग्रंथ साहिब के अंतध्र्यान होने की कहानी भी यहां से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि छह माह तक गुरु ग्रंथ साहिब गंगा नदी में रहने के बाद भी बाढ़ का पानी उतरने के बाद यथावत स्थिति में मिला था। सिखों के पहले गुरू नानकदेव जी असम जाने के क्रम में गंगा नदी के रास्ते बरारी होकर गुजरे थे। नौंवें गुरू तेगबहादुर जी ने बरारी में अपना पड़ाव डाला था। लक्ष्मीपुर गुरूद्वारा को सिख सर्किट से जोड़ कायकल्प किया जा रहा है।

loksabha election banner

प्रखंड क्षेत्र में सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। सिख धर्म के पहले गुरु गुरू नानक देव जी से लेकर अंतिम गुरु गोविद सिंह जी तक से यहां का जुड़ाव रहा है। नवम गुरु तेग बहादुर जी का सानिध्य प्रत्यक्ष तौर पर इस क्षेत्र को मिला है।

बताया जाता है कि 15वीं शताब्दी में गुरू नानक देव जी पूर्व की उदासी (भ्रमण) के दौरान इस क्षेत्र में अपना पड़ाव डाला था। उसी समय से गुरूनानक नाम लेवा भक्तों की संख्या इस क्षेत्र में बढ़ती गई। 1666 ई. में नवमें गुरु तेग बहादुर ने इस क्षेत्र को अपने चरण रज से पवित्र किया। वे पटना से अपनी पूर्व दिशा की भ्रमण के दौरान जलमार्ग से मुंगेर, भागलपुर होते हुए तत्कालीन कंतनगर पहुंचे थे। मान्यता है कि गंगा नदी के तट पर स्थित इस कस्बे में कई सप्ताह रूके थे। इस दौरान उन्हें सुनने और दर्शन को लेकर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। गुरू जी ने लोगों को लोक कल्याण में जुड़ने सहित अन्य सारगर्भित प्रवचन से निहाल किया। लोगों को प्रसाद के रूप मे कराहे में बने हलवे (कराह प्रसाद) का वितरण किया था। स्थानीय लोग इसे कराह गोला प्रसाद के रूप में जानने लगे। कालांतर में कंतनगर काढ़ागोला के रूप में जाना जाने लगा। लक्ष्मीपुर गांव में गुरुद्वारा का निर्माण किया गया। वर्तमान में यहां विशाल और भव्य गुरूद्वारा है। यहां मत्था टेकने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आ चुके हैं। हाल में बिहार सरकार ने बरारी को सिख सर्किट से जोड़ा है। यहां के विभिन्न पंचायतों मे सिखो की बहुतायत आबादी निवास करती है। कई गुरूद्वारा भी स्थापित है। इसमें ऐतिहासिक गुरूद्वारा भवानीपुर, ट्रस्ट गुरुद्वारा भंडारतल, कांतनगर, उचला, हुसैना, बड़ी भैसदीरा, डूमर पुल शामिल है

यहां के सिखों का मुख्य पेशा खेती बाड़ी है, लेकिन कई नौकरी व अन्य व्यवसाय में भी जुड़े हुए हैं। यहां के लक्ष्मीपुर और भवानीपुर गुरूद्वारा मे सिख गुरुओं से जुड़े कई दुर्लभ दस्तावेज और हुक्मनामा मौजूद है। इसे धरोहर के रूप में संजो कर रखा गया है।

शहीदी गुरूपर्व पर देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु

गुरु तेगबहादुरजी के बलिदान दिवस पर हर वर्ष तीन दिवसीय शहीदी गुरुपर्व का आयोजन लक्ष्मीपुर गुरुद्वारा में होता है। शहीदी गुरुपर्व पर पंजाब,जम्मू कश्मीर सहित अन्य राज्यों तथा विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। अमृतसर से रागी जत्था तीन दिनों तक गुरुवाणी का पाठ एवं शब्द कीर्तन के लिए आते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.