हमारी संवेदना और जज्बात का प्रतिनिधित्व करता है साहित्य
राजीव चौधरी कटिहार साहित्य हमारी संवेदना और जज्बात का प्रतिनिधित्व करता है। साहित्य की हैसियत समाज में रीढ़ की सी होती हैं। साहित्य राजनीतिक के आगे आगे चलने वाली हकीकत का नाम हैं।
राजीव चौधरी, कटिहार: साहित्य हमारी संवेदना और जज्बात का प्रतिनिधित्व करता है। साहित्य की हैसियत समाज में रीढ़ की सी होती हैं। साहित्य राजनीतिक के आगे आगे चलने वाली हकीकत का नाम हैं। डीएस कालेज के प्राध्यापक सह शायर और साहित्यकार डा. अनवर ईरज ने कहा कि जिस भाषा या समाज का साहित्य प्रबल होता है, वह भाषा या समाज सभ्य कहलाता है। मानव जीवन में साहित्य की अहम भूमिका रही हैं जिससे शायद ही कोई इंकार करें। देश की आजादी से लेकर देश के निर्माण में भी साहित्य की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। साहित्य को सशक्तत बनाने और बढ़ाने में भाषाविद, साहित्यकार ओर साहित्य प्रेमी का ही योगदान रहा हैं। साहित्य को आगे बढ़ाने में जो भूमिका सरकार की होनी चाहिए, वर्तमान समय में वह नहीं है।कुछ दशक पूर्व तक साहित्य के क्षेत्र में जितना काम हुआ करता था, वह अब नहीं है । डा. ईरज ने कहा कि साहित्य के प्रति सरकार की भूमिका को सिरे से नकार देना भी उचित नहीं हैं। केंद्र सरकार ओर राज्य सरकारों ने साहित्यिक क्षेत्र के विकास व साहित्यकारों को प्रोत्सहित करने को लेकर कुछ काम जरूर किया है। कई राज्यों अन्य भाषाओं के निदेशालय भी खुले हुए हैं। हर राज्य में गरीब, मजबूर, साहित्यकार और कलाकार को सरकारी स्तर से सहयोग राशि की व्यवस्था होनी चाहिए। डा. ईरज ने कहा कि साहित्य से समाज सबल बनता है। कविता, उपन्यास तथ साहित्य रचना से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के साथ ही समाज में जनजागरूकता लाने का काम किया जा सकता है। वर्तमान समय में युवापीढ़ी का रूझान साहित्य के क्षेत्र में कम होता जा रहा है। साहित्य देश की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने का काम भी करती है।