तटबंध खुला रहने से खतिहर जमीन पर फैली रेत की चादर
संजीव मिश्रा कदवा (कटिहार ) प्रखंड क्षेत्र में महानंदा नदी से प्रतिवर्ष आनेवाली बाढ़ से सैकड़ों एकड़ भूमि में लगी फसल बर्बाद हो जाती है।
कोट:
जिन किसानों के खेतों में बालू फैला है या बाढ़ के कारण कुंड बन गया है। उन्हों सरकारी स्तर से मुआवजा मिलना चाहिए। बालू का उठाव करने पर खनन विभाग द्वारा कार्रवाई किए जाने के मामले में संबंधित विभागीय अधिकारियों से बात करेंगे।
शकील अहमद खान, विधायक, कदवा
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कोट:
खेतों में फैले बालू होने को लेकर संबंधित किसानों को सरकारी स्तर से किसी तरह के मुआवजा का प्रावधान नहीं है। किसानों की समस्या से वरीय अधिकारियों को अवगत कराया जाएगा।
रविशंकर सिन्हा, सीओ, कदवा
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संजीव मिश्रा, कदवा (कटिहार ): प्रखंड क्षेत्र में महानंदा नदी से प्रतिवर्ष आनेवाली बाढ़ से सैकड़ों एकड़ भूमि में लगी फसल बर्बाद हो जाती है। शिवगंज के समीप महानंदा नदी का तटबंध खुला रहने से 500 एकड़ कृषि योग्य भूमि पर रेत की चादर फैल गई है। इससे किसान अपनी जमीन पर खेती भी नहीं कर पा रहे हैं। खेत से बालू का उठाव करने पर खनन विभाग द्वारा ट्रैक्टर जब्त करने एवं प्राथमिकी दर्ज किए जाने की बात कही जाती है। इस वर्ष अक्टूबर माह में बालू का उठाव करने से भी किसानों को रेक दिया गया। पिछले वर्ष कुछ किसानों का ट्रैक्टर तक जब्त कर लिया गया था। बाढ़ के पानी के साथ खेतों में फैलने वाली रेत के कारण किसान परेशान हैं, लेकिन उन किसानों का दर्द बांटने की जहमत ना तो सरकारी स्तर पर उठाई गई और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस मुद्दे को उठाया द्य वहीं जब किसान अपने खेतों से बालू उठाने जाते हैं तो खनन विभाग कार्रवाई करती है। गत वर्ष शिवगंज के पास खेतों से बालू हटाने के दौरान खनन विभाग ने किसानों पर कार्रवाई की। 2016 से लगातार प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़कर रख दिया है। खासकर कदवा पंचायत के किसानों की स्थिति दयनीय हो गई है। शिवगंज के समीप तटबंध के खुला रहने के कारण राजघाट, कदवा, बढि़या परती, शिवगंज, नूनगरा, शोशा, कचौरा आदि गांवों में 500 एकड़ खेत में दो से तीन फीट बालू भर गया है। साथ हीं शिवगंज तटबंध के बाहर पानी के वेग में नदी की नई धारा निकल गई है। कदवा के दर्जनों किसानों के खेत में नदी की धारा बहाव हो रहा है। दर्जनों किसानों के खेत मे बालू का टीला बन गया है। बाढ़ से कदवा, शिवगंज, शोशा आदि स्थानों पर खेतों में कुंड बन गया है।
बताते चलें कि 1987 में पहली बार तटबंध टूटने पर बाढ़ की विनाशलीला देखी गई थी। उस वर्ष कदवा, कुरसैल पंचायत के हजारों एकड़ भूमि में बालू भर गया था। किसानों ने बालू हटा कर भूमि को कृषि योग्य बनाया था द्य पुन: 2016 में तटबंध कटने के बाद प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ उपजाऊ भूमि को रेगिस्तान बना रहा है। प्रतिवर्ष बालू फैलने का दायरा बढ़ता जा रहा है। इसके साथ हीं सोना उगलने वाली जमीन बंजर होती जा रही है। इन खेतों में मक्का, गेहूं, पटसन सहित अन्य प्रकार की कृषि कर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। लेकिन प्रति वर्ष उपजाऊ भूमि पर रेत फैलने से किसान खून का आंसू रोने को विवश हैं। उक्त क्षेत्र के किसानों की खेती बाड़ी चौपट होने पर भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है। किसान रोजी रोजगार की तलाश में पलायन को मजबूर हैं। उपजाऊ भूमि पर बने कुंड को भरना एवं बालू हटाना किसानों के बस की बात नहीं है।
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क्या कहते हैं किसान
बढि़या परती निवासी किसान अवधेश विश्वास ने बताया कि खेत में फैली बालू से ने उपजाऊ भूमि को बंजर बना दिया है जबकि बालू हटाने पर खनन विभाग की कार्रवाई का डर रहता है।
कदवा के निवासी जुगेश शर्मा ने कहा कि बाढ़ के पानी के तेज बहाव वेग में जमीन कटने के साथ खेतों में बालू भर गया है। कई वृक्ष कट कर नई नदी की बनी धारा में समा गया है। किसानों की समस्या को लेकर स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधि का रवैया उदासीन है। खेत से बालू का उठाव करने पर खनन विभाग द्वारा ट्रैक्टर जब्त कर लिया जाता है।
बढि़या परती के निवासी राजकुमार विस्वास ने बताया कि खेतों में फैले बालू की वजह से गत कई वर्षों से खेतीबारी चौपट हो गई है।
किसान उमानाथ विश्वास ने बताया कि खेतों में फैले बालू हटाने के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है। अपने बूते बालू हटाना मुश्किल है जबकि बढि़या परती के ही किसान परमानंद विश्वास ने कहा कि कई वर्षों से बाढ़ की पीड़ा झेल रहे हैं। बाढ़ का स्थाई समाधान नहीं होने से खेती करना मुश्किल साबित हो रहा है।