दूर हुई भाजपा के दिल का दर्द, जदयू की बस जुबान पर मुस्कान
कटिहार। यूं तो साल 2020 कोरोना को लेकर इतिहास में एक काला पन्ना के रुप में जुट चुका ह
कटिहार। यूं तो साल 2020 कोरोना को लेकर इतिहास में एक काला पन्ना के रुप में जुट चुका है, मगर इस दुरकाल में ही सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रम अपनी रफ्तार से जारी रही। कटिहार जिले के लिए वर्ष 2020 एक नए सियासी अध्याय के लिए भी लोगों के जेहन में कैद रहेगा। अचानक जब कटिहार सदर से चौथी बार जीत दर्ज करने वाले तारकिशोर प्रसाद को उप मुख्यमंत्री बनाए जाने का शोर मचा, तो कटिहार के साथ-साथ कोसी और सीमांचल तक विविध परिप्रेक्ष्य में इसकी गूंज सुनाई दी।
पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री के बाद सीमांचल से तारकिशोर प्रसाद ऐसे शख्स बने जो सूबे की राजनीति के केंद्र बिदु में आ गए। प्रसन्नता की लहर पर उम्मीदों की नाव सरपट भागने लगी..। उम्मीदों की इस कश्ती को किनारा मिले या नहीं, लेकिन लोगों का यह विश्वास जरुर मजबूत हुआ कि यह सम्मान आज न कल रंग जरुर दिखाएगा..।
भाजपा के दिल का दर्द हुआ कम
बहरहाल, लोकसभा चुनाव से सदमे में चल रही भाजपा के दिल का दर्द भी इससे बहुत हद तक कम हुआ। लोकसभा चुनाव के बाद प्रसन्नचित जदयू के जुबान पर मुस्कान अब भी है, लेकिन उसमें खुशियों का आधार कम पड़ गया है। खासकर कटिहार के परिप्रेक्ष्य में सियासी हलकों में इसकी गूंज जरुर है। बता दें कि लोकसभा चुनाव के लिहाज से सन 2019 के चुनाव से पूर्व तक कटिहार भाजपा का पारंपरिक सीट माना जाता रहा था। यद्यपि यह दावा अब भी कायम है, लेकिन सहयोगी दल के सांसद होने से यह दावा में दम या बेदम को लेकर तर्क शुरु हो जाता है। लोकसभा चुनाव के दौरान जब यह सीट जदयू के कोटे में जाने की घोषणा हुई तो पूर्व जिलाध्यक्ष मनोज राय की अगुवाई वाली भाजपा मानो पूरी तरह कोमा में आ गई थी। बाद में पार्टी आलाकमान के फरमान ने कार्यकर्ताओं ने एनडीए नाम से संतोष का घूंट पीया। जदयू की टिकट से दुलाल चंद गोस्वामी सांसद चुने गए। इस पर भले ही हाथ मिले, खुशियां बांटने की कोशिश की गई, लेकिन दिल का मर्ज लाइलाज रहा। वक्त का मरहम भी इस गहरे जख्म को नहीं भर पा रहा था। इधर वर्ष 2020 के अंतिम में हुए विधानसभा चुनाव में किस्मत भाजपा के साथ रही। 2015 के चुनाव के विपरीत जिले में भाजपा विधायकों की संख्या एक और बढ़ते हुए तीन तक पहुंच गई। यद्यपि कदवा व बरारी जैसी सीट जदयू कोटे में जाने की टीस पार्टी में टूट के रुप में फूटी, लेकिन इन गमों को भी डिप्टी सीएम के तोहफे ने दूर कर दिया। कोढ़ा सीट पर विधान पार्षद अशोक अग्रवाल ने पूरी ताकत झोंकते हुए वहां से भाजपा प्रत्याशी कविता देवी की जीत सुनिश्चित कराई। प्राणपुर से दिवंगत पूर्व मंत्री बिनोद कुमार सिंह की पत्नी निशा सिंह के गले में जीत की माला पड़ी। कटिहार सदर से अब तक की मिथक को रौंदते हुए तारकिशोर प्रसाद चौथी बार न केवल विजयी हुए बल्कि रातों रात सत्ता के केंद्र बिदु तक पहुंच गए। इधर जिले में पहली बार जदयू का सांसद होने से पार्टी की विशेष उम्मीद यहां से जुड़ी थी और इसकी अपेक्षा भी की जा रही थी। कहीं न कहीं एक सुलझे हुए सांसद का लाभ मिलने की बात कही जा रही थी। पार्टी के हिस्से में तीन सीट भी आई, लेकिन लोजपा डायन बन जदयू के आगे खड़ी हो गई। जदयू को केवल बरारी सीट पर जीत मिली, जहां से पूर्व मेयर विजय सिंह ने जीत दर्ज की। मनिहारी में पार्टी प्रत्याशी दूसरे तो कदवा में तीसरे नंबर पर रहे।
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भाजपा व जदयू जिलाध्यक्ष का अपना-अपना तर्क
वैसे जदयू जिलाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव जदयू में मायूसी की बात को सिरे से खारिज करते हैं। वे कहते हैं कि लोकसभा या विधानसभा चुनाव एनडीए ने लड़ा था। एनडीए कार्यकर्ता के लिहाज से उन लोगों के लिए दोनों चुनाव उत्साहवर्धक रहा है। लोकसभा सीट पर भी हमलोगों ने कब्जा किया और फिर विधानसभा में यहां एनडीए विधायकों की संख्या तीन से चार हुई। और तो और सांसद के बाद डिप्टी सीएम एनडीए के बने हैं। यह भाजपा व जदयू दोनों के लिए अविश्वस्मरणीय उपलब्धि हैं और दोनों दल इस प्रसन्नता को महसूस कर रहे हैं। इधर भाजपा जिलाध्यक्ष लखी महतो दबी जुबान में यह मानते हैं कि विधानसभा चुनाव हर मायने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि वाला रहा है। इससे कहीं न कहीं पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह वर्द्धन हुआ है। यद्यपि वे भी कहते हैं कि भाजपा और जदयू एक ही सिक्के के दो पहलू और हमलोग सुख-दुख के साथी हैं।