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स्टेट बोरिग के हाल बेहाल, मजबूरी में किसानों का पलीता

कोढ़ा प्रखंड के किसान सिचाई के लिए कई वर्षों से धक्के खा रहे हैं। प्रखंड क्षेत्र में लगाए गए स्टेट बोरिग वर्षों से बंद पड़़े हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 05 Jan 2022 09:11 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jan 2022 09:11 PM (IST)
स्टेट बोरिग के हाल बेहाल, मजबूरी में किसानों का पलीता
स्टेट बोरिग के हाल बेहाल, मजबूरी में किसानों का पलीता

संवाद सूत्र, गेड़ाबाड़ी, कटिहार : कोढ़ा प्रखंड के किसान सिचाई के लिए कई वर्षों से धक्के खा रहे हैं। प्रखंड क्षेत्र में लगाए गए स्टेट बोरिग वर्षों से बंद पड़़े हैं। स्टेट बोरिग चालू कराने की मांग कई बार स्थानीय किसानों द्वारा प्रशासन व लघु सिचाई विभाग से की गई लेकिन इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं की गई। किसान महंगा डीजल खरीदकर खेतों में पटवन करने को विवश हैं। प्रखंड के मकईपुर, संदलपुर, मधुरा, नक्कीपुर, बिनोदपुर, दिघरी आदि गांव के किसानों को स्टेट बोरिग का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। मकईपुर, संदलपुर, नक्कीपुर के बोर कई वर्षों से खराब पड़े हुए हैं। निजी पंप सेट के सहारे किसान अपने खेतों की सिचाई कर रहे हैं। किसानों ने बताया कि पंपसेट से सिचाई करना बहुत महंगा पड़ रहा है। स्टेट बोरिग चालू किए जाने से किसानों को राहत मिलेगी। शुरुआत के कुछ वर्षों में स्टेट बोरिग चालू हालत में थे। स्टेट बोरिग के आने के साथ उसके लिए एक भवन, आपरेटर के रहने के लिए कमरा और हर खेत तक पक्की नालियां बनवाई गई थीं। वर्तमान में इसका वजूद खत्म हो गया है। मोटर जल जाने और कम वोल्टेज के कारण अधिकांश नलकूप बंद हो गए। कई जगहों के नलकूप के मोटर चोरी हो गए। किसान मो. अब्दुल, अशोक मेहता आदि ने बताया कि जब गांव में सरकारी नलकूप लगाया गया तो किसानों को काफी फायदा होता था। रबी सीजन में महज तीन सौ रुपये में एक एकड़ में सिचाई हो जाती थी। वहीं अब निजी पंपसेट से 100 या 150 रुपये प्रति घंटे की दर से सिचाई होती है। अमूमन गेहूं की फसल में कम से कम दो बार सिचाई करनी पड़ती है। जिसमें 18 से 20 घंटे लगते हैं। इसी तरह मक्के की फसल में कम से कम पांच बार सिचाई करने की आवश्यकता होती है। जिसमें कुल 36 से 40 घंटे लगते हैं। गेहूं और मक्के की फसल तैयार करने में किसानों को सिर्फ सिंचाई में ही आठ हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं।

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