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जिले में संचालित निजी स्कूलों में स्मार्ट क्लास के दावे फेल

निजी स्कूल का संचालन विभागीय कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है। इसके अलावा निजी स्कूलों में नियम की धज्जियां भी खूब उड़ाई जा रही है। प्रतिवर्ष काफी संख्या में निजी स्कूलों में बच्चों का नामांकन होता है। जहां पर उस समय कंप्यूटर शिक्षा तथा स्मार्ट क्लासेज का दावा किया जाता है, लेकिन बाद में यह दावा फ्लॉप हो जाता है। अभिभावक चंदन कुमार सिंह और मुकेश कुमार ने इसकी शिकायत बीईओ से की है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 10:05 PM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 10:05 PM (IST)
जिले में संचालित निजी स्कूलों में स्मार्ट क्लास के दावे फेल
जिले में संचालित निजी स्कूलों में स्मार्ट क्लास के दावे फेल

निजी स्कूल का संचालन विभागीय कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है। इसके अलावा निजी स्कूलों में नियम की धज्जियां भी खूब उड़ाई जा रही है। प्रतिवर्ष काफी संख्या में निजी स्कूलों में बच्चों का नामांकन होता है। जहां पर उस समय कंप्यूटर शिक्षा तथा स्मार्ट क्लासेज का दावा किया जाता है, लेकिन बाद में यह दावा फ्लॉप हो जाता है। अभिभावक चंदन कुमार सिंह और मुकेश कुमार ने इसकी शिकायत बीईओ से की है।

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अधिकांश प्राइवेट स्कूलों में खेल का मैदान, समुचित भवन, शौचालय, बिजली, पेयजल जैसी कई बुनियादी सुविधा नहीं है। वहीं शिक्षा में भी गुणवत्ता नहीं देखी जा रही है। शिक्षा का अधिकार यानी आरटीई कानून का जिले के प्राइवेट स्कूलों में पालन नहीं होने से आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को इसका लाभ नहीं मिल पाता।

एडमिशन के समय वसूली जाती है मोटी रकम

जिले में कई विद्यालय संचालित हो रहे है। जिसमें हर साल नामांकन लिया जाता है। नामांकन के समय अभिभावकों से एक मोटी रकम वसूली जाती है। इसके अलावा विद्यालय से ही पुस्तक, ड्रेस व कई अन्य सामान लेने होते है। जो बाजार में नहीं मिलते। जहां उसकी कीमत बाजार से डेढ़ गुनी होती है। एडमिशन के समय अभिभावाकों को लॉलीपाप के तरह स्मार्ट क्लासेज तथा कंप्यूटर शिक्षा देने की बात कही जाती है, लेकिन बाद में वो दोनों क्लासेज मात्र छलावा ही बन कर रह जाते है। आरटीई के तहत हर प्राइवेट विद्यालयों को विभिन्न कक्षा में 25 बच्चों का एडमिशन व पठन पाठन निश्शुलक का प्रावधान है। प्राइवेट स्कूलों में शुल्क ज्यादा होने के कारण मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों को विद्यालय में नहीं पढ़ा पाते। हर माह में स्कूल का शुल्क के अलावा शिक्षण व वाहन चार्ज का बोझ भी बच्चों के परिजनों पर डाल दिया जाता है। अनेकों प्राइवेट स्कूलों में कुशल शिक्षक का अभाव होता है। स्कूलों में कीमत ज्यादा होने के कारण अभिभावक चार से पांच माह के बाद बच्चों का नाम कटवा लेते है।

क्या कहते हैं पदाधिकारी- निजी विद्यालयों की जांच की जाएगी। शिक्षा के अधिकार कानून का पालन कराया जाएगा।

- कामेश्वर कामती, डीईओ


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