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समूह बना मशरूम उत्पादन कर गरीबी दूर कर रही महिलाएं

शहर के शाहपुर में मशरूम की खेती कर रही सरस्वती समूह की महिलाएं चंचल कुमारी इंदू देवी दुर्गा समूह के मालती देवी व शला देवी ने बताया कि मशरूम का उत्पादन कर बेहतर आमदनी हो जा रही है। बताया कि ओस्टल मशरूम की खेती में आमदनी छह रूपया लगती

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Dec 2019 06:53 PM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 06:13 AM (IST)
समूह बना मशरूम उत्पादन कर गरीबी दूर कर रही महिलाएं
समूह बना मशरूम उत्पादन कर गरीबी दूर कर रही महिलाएं

चूल्हा-चौकठ तक सिमटकर रहने वाली महिलाएं गरीबी दूर करने के लिए विभिन्न कार्य कर रही है। अब प्रोफेशनल तरीके से गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों समेत शहर के विभिन्न मोहल्लों समेत पूरे जिले के सैकड़ों महिलाएं मशरूम का खेती कर गरीबी दूर कर रही हैं। इसी हुनर की बदौलत परिवार के लिए अतिरिक्त आमदनी जुटा रही हैं।आजीविका के माध्यम से जुड़कर महिलाओं ने कई मुकाम हासिल किया है। राष्ट्रीय आजीविका मिशन समाज से गरीबी दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इसके माध्यम से महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह गठित कराकर उनके सदस्यों से छोटी-छोटी बचत के माध्यम से कुछ पूंजी तैयार कराई जाती है। जब समूह क्रियाशील हो जाती है तो उसे ग्रेड दिया जाता है। ग्रेड के बाद सरकार की ओर से कुछ अनुसार देकर उनके व्यवसाय को चलाने में मदद देने के साथ ही बैंकों से समूह के नाम पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। महिलाओं का यही समूह मशरूम का उत्पादन कर रही है। अंधेरे घर में होती है खेती

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आजीविका के सरस्वती समूह से जुड़ी महिला चंचल कुमारी एवं इंदू देवी ने बताया कि दो प्रकार के मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है। बटर एवं ओस्टल मशरूम का उत्पादन अलग-अलग तरीके से किया जा रहा है। ओस्टल मशरूम का उत्पादन आसानी से किया जाता है। एक किलो किट का आठ पैकेट में बनाया जाता है। ओस्टल मशरूम 20 दिनों में तैयार हो जाता है। बताया कि यह मशरूम बाजारों में भी बिकने लगा है। जल्द ही ऐसा होगा कि शहर में बाहरी मशरूम का आना बंद हो जाएगा। स्थानीय महिलाओं द्वारा उत्पादन किया गया मशरूम ही बाजार में दिखेगा। बताया कि इन मशरूम की खेती घर के अंधेरे कमरे में किया जाता है जहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच सके। बता दें कि महिलाएं घर के अंधेरे कमरे में मशरूम रूपी प्रकाश उगाकर गरीबी दूर कर रही हैं। लागत छह, आमदनी 800 रुपये

शहर के शाहपुर में मशरूम की खेती कर रही सरस्वती समूह की महिलाएं चंचल कुमारी, इंदू देवी, दुर्गा समूह के मालती देवी व शला देवी ने बताया कि मशरूम का उत्पादन कर बेहतर आमदनी हो जा रही है। बताया कि ओस्टल मशरूम की खेती में आमदनी छह रूपया लगती है परंतु आमदनी 800 रुपये तक हो जाती है। सरकार द्वारा 54 रुपये अनुदान की राशि उपलब्ध कराई जा रही है।बताया कि बटर मशरूम की खेती का विधि में ज्यादा मेहनत है। एक किलो बीज लगाने में 210 रुपया एक किट में खर्च होता है। 210 रुपये खर्च लगता है परंतु इसमें भी 800 रुपये आमदनी होती है। उम्मीदें 2020 -

वर्ष 2020 में मशरूम की उत्पादन में वृद्धि होगी। महिलाओं को आइआरसीटी से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 2019 में ओरा सेंटर से करीब 57 महिलाओं ने प्रशिक्षण लिया है। प्रशिक्षण प्राप्त सभी महिलाओं को जिला उद्यान विभाग द्वारा छह रुपये प्रति किट के हिसाब से बीज का वितरण किया गया है। अग्रणी जिला प्रबंधक सत्यप्रिय दास ने बताया कि वर्ष 2020 में अधिक से अधिक महिलाओं को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाएगा। महिलाओं को अधिक से अधिक लाभ मिले इसके लिए विभाग द्वारा कार्य किया जा रहा है। महिलाएं सशक्त बन रही है इससे बड़ी खुशी की बात नहीं हो सकती। कहा कि महिलाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार के प्रति प्रेरित किया जाएगा। अगर महिलाएं प्रशिक्षण लेंगी तो अपने घर में ही मशरूम का उत्पादन कर बेहतर आमदनी कर सकेंगी। कहते हैं जिला उद्यान पदाधिकारी -

जिला उद्यान पदाधिकारी ज्ञानचंद ने बताया कि मशरूम उत्पादन के प्रति विभाग द्वारा कई पहल किया गया है। छह रुपयो प्रति कीट के हिसाब से बीज उपलब्ध कराया जा रहा है। महिलाओं को 54 रुपये अनुदान राशि दी जा रही है। इस बार करीब 57 महिलाओं के बीच 5700 कीट का वितरण किया गया है। वर्ष 2020 में अधिक से अधिक महिलाओं से इससे जोड़कर लाभ दिलाया जाएगा। प्रस्तुति : शुभम कुमार, औरंगाबाद।


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