स्वरोजगार से महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर
कैमूर। महिलाएं विकास की ओर कदम बढ़ा रही हैं। वह सशक्त हो रही हैं। उनका पहनावा, उ
कैमूर। महिलाएं विकास की ओर कदम बढ़ा रही हैं। वह सशक्त हो रही हैं। उनका पहनावा, उनकी सोच, उनका हाव-भाव और अंदाज सब कुछ बदल रहा है। अब कामकाजी जगहों पर महिलाएं ज्यादा दिखने लगी है। राधिका, सविता, नेहा, सुनीता कलावती ऐसे बहुतेरे नाम हैं जो महिलाएं कल तक घर की चौखट के बाहर नहीं निकलती थी। घूंघट में घर के ही निजी काम में लगी रहती थी। लेकिन स्वयं सहायता समूह के जरिए बैंक से पैसा लेकर व्यवसाय ने जो उनका अंदाज बदला वह लगातार आगे बढ़ता जा रहा है। दुर्गावती में माइक्रो फाइनेंस प्राइवेट कंपनियां हैं। इनके कर्मचारी गांव में जाते हैं। महिलाओं को जागरुक करते हैं और अपनी पहचान पर बैंकों से इन्हें मोटी रकम ऋण के रूप में दिलाते हैं। बैंक ऋण का हर माह किस्त के रूप में स्वयं वसूलते हैं। बस महिलाओं को करना यह होता है कि समूह में उन्हें एक व्यवसाय करना होता है और व्यवसाय के जरिए इन्हें बैंक का पैसा चुकता करना होता है। दुर्गावती के 100 से अधिक गांवों में करीब 300 से अधिक महिलाओं के स्वयं सहायता समूह है। अभी एक सप्ताह पहले मध्य ग्रामीण बैंक शाखा डड़वा मोहनियां के द्वारा जीविका समूह को एक करोड़ 31 लाख रुपए दिया गया। खैर 2007 में विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से जीविका शुरू किया गया। 2010 तक प्रोजेक्ट को राज्य के कई प्रखंडों में शुरू किया गया। दिसंबर 2011 तक राज्य में 45000 स्वयं सहायता समूह बने। प्रोजेक्ट जीविका ने जहां महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया वही उनकी ¨जदगी में दूसरे सार्थक बदलाव भी लाया। ग्रामीण महिलाएं स्वयं सहायता समूह बनाकर पशुपालन, अगरबत्ती, मोमबत्ती, खिलौना, चूड़ी, और किराना की दुकान चला रही हैं। अब महिलाएं पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहती। उनका हर एक कदम आगे बढ़ रहा है। यही नहीं जिले का दुर्गावती प्रखंड औद्योगिक हब के रूप में आगे बढ़ रहा है। लिहाजा सैकड़ों लोगों को उद्योग के जरिए रोजगार मिला है। दुर्गावती में करीब एक दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां हैं। लेकिन गरीबी उन्मूलन में सबसे अधिक जीविका और स्वयं सहायता समूह बेशक नई इबारत लिख रहा है।
इस संबंध में पूछे जाने पर एलडीएम रत्नाकर झा ने कहा कि गठित सहायता समूहों को प्रावधानों के अनुसार स्वावलंबी बनाने के लिए राशि को उपलब्ध कराया जा रहा है। ताकि सहायता समूह के माध्यम से महिलाएं रोजगार के साथ-साथ आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन सके तथा समूह के द्वारा किए जाने वाले कार्य से बैंक के ऋण की वापसी भी ससमय हो सके।