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उचित रखरखाव के अभाव में सूख रहे मनरेगा से लगाए गए पौधे

प्रखंड के अधिकांश जगहों पर मनरेगा के तहत लगाए गए पौधे उचित रखरखाव के अभाव में सूख गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 May 2021 04:56 PM (IST)Updated: Tue, 11 May 2021 04:56 PM (IST)
उचित रखरखाव के अभाव में सूख 
रहे मनरेगा से लगाए गए पौधे
उचित रखरखाव के अभाव में सूख रहे मनरेगा से लगाए गए पौधे

कैमूर। प्रखंड के अधिकांश जगहों पर मनरेगा के तहत लगाए गए पौधे उचित रखरखाव के अभाव में सूख गए हैं। इसका उदाहरण प्रखंड के अकोल्ही पंचायत में देखा जा सकता है। इस पंचायत में नुआंव से अकोल्ही जाने वाली सड़क के दोनों किनारों पर पौधारोपण किया गया था, लेकिन आज के समय में शायद हीं कहीं कोई पौधा दिखाई दे।

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जानकारी के अनुसार कागजों पर इस पंचायत में 2400 पौधों को लगाया गया था, भले हीं धरातल पर उतने लगे हों या न लगे हों। इनकी देखरेख और पानी देने के लिए एक व्यक्ति को 1500 रुपए पर रखा गया था। पौधारोपण और देखरेख करने वाले को बकायदा भुगतान भी कर दिया गया है। लेकिन धरातल पर इसकी स्थिति बिल्कुल उलटी है। 2400 पौधों में शायद ही कुछ पौधे जीवित बचे हों। जबकि प्रावधान यह है कि यदि किसी कारणवश 30 प्रतिशत पौधे सूख भी जा रहे हैं तो उनके स्थान पर पुन: पौधारोपण करना है। अधिकांश पौधे पानी के अभाव में सूख चुके हैं। विभाग के पदाधिकारी इसकी मॉनीटरिग करने के बारे में सोचते तक नहीं। वे केवल कार्यालय में बैठकर आंकड़ों को तैयार करते हैं। पूछने पर कि कितना पौधारोपण हुआ कहते हैं कि विभाग की वेबसाइट पर जाकर देख लें हमें नहीं पता। यदि यह पूछा जाता है कि धरातल पर लगाए गए पौधों की क्या स्थिति है तो कहते हैं कि हमें नहीं मालूम। ऐसी स्थिति में सरकारी आंकड़ों में तो पौधारोपण हो चुका है, लेकिन वास्तविक स्थिति वैसी है नहीं। बता दें कि सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर पौधारोपण किया जाता है। इस कार्य को मनरेगा के तहत संचालित किया जाता है। सरकार का लक्ष्य दोतरफा होता है। एक तरफ तो पौधारोपण से पृथ्वी का हरित आवरण बढ़ता है और दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का सृजन होता है। इसमें सरकार का काफी राशि खर्च होती है, लेकिन धरातल पर वैसी स्थिति नहीं होती जैसा सरकारी आंकड़े दिखाई देते हैं। कई जगह तो पौधारोपण होता हीं नहीं है और यदि लगाए भी जाते हैं तो उचित रखरखाव के अभाव में दम तोड देते हैं। अब ऐसी स्थिति में सवाल खड़ा होता है कि यदि सरकारी राशि खर्च करने के बाद भी कोई योजना धरातल पर मूर्त रूप नही ले पा रही है या सरकारी की मंशा के अनुरूप कार्य नहीं कर पा रही है तो इसकी जवाबदेही किसकी होगी। ऐसी लापरवाही से पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ कैमूर को हरा भरा बनाने का सपना भी अधूरा ही दिख रहा है।


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