3.3 प्रतिशत गर्भवती आयरन की गोली का करती हैं सेवन
जिले में राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जा रहा है। सरकार द्वारा संचालित पोषण अभियान के लक्ष्यों को हासिल करने के लिहाज से राष्ट्रीय पोषण माह को एक प्रभावी कदम समझा जा रहा है लेकिन पोषण के बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए पोषण को प्रभावित करने वाले मानकों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
जिले में राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जा रहा है। सरकार द्वारा संचालित पोषण अभियान के लक्ष्यों को हासिल करने के लिहाज से राष्ट्रीय पोषण माह को एक प्रभावी कदम समझा जा रहा है, लेकिन पोषण के बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए पोषण को प्रभावित करने वाले मानकों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। सामाजिक, आर्थिक एवं सामूहिक व्यवहार परिवर्तन में सुधार पोषण की बेहतर बुनियाद को दर्शाता है। एक आंकड़े के अनुसार, जिले में 3.3 प्रतिशत गर्भवती आयरन फॉलिक एसिड गोली का सेवन करती हैं।
राष्ट्रीय पोषण अभियान के तहत वर्ष 2022 तक बौनापन, दुबलापन एवं कम वजन के बच्चों में प्रतिवर्ष दो प्रतिशत की कमी एवं एनिमिया में प्रतिवर्ष तीन प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राज्य में पिछले 10 सालों में पोषण को प्रभावित करने वाले मानकों में सुधार हुआ है। जो भविष्य में पोषण अभियान के लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ पोषण के बेहतर परिणामों को इंगित करता है। कुपोषण कम करने में मिली सफलता
देश की लगभग नौ प्रतिशत जनसंख्या बिहार में रहती है। इस लिहाज से बिहार महत्वपूर्ण रूप से कुपोषण की राष्ट्रीय औसत को प्रभावित करता है। पिछले दस सालों में कुपोषण के मानकों में सुधार आई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार कैमूर जिले में बौनापन (उम्र के हिसाब से लंबाई) वर्ष 2015-16 में 53.8 प्रतिशत है। जिले में 15 से 49 वर्ष की गर्भवती महिलाओं में 64.3 प्रतिशत खून की कमी (एनिमिक) है। जबकि 57.3 प्रतिशत 15 से 49 वर्ष की महिलाएं जो गर्भवती नहीं हैं वो भी खून की कमी से जूझ रही हैं। छह माह से 59 माह के 63 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी (एनिमिक) है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार कैमूर में 70.5 प्रतिशत बच्चों का पूर्ण टीकाकरण, 3.3 प्रतिशत गर्भवती आयरन फॉलिक एसिड गोली का सेवन करती हैं। वर्ष 2015-16 में 29.8 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम आयु में होती है। बिहार में वर्ष 2005-06 में 60 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम आयु में होती थी, जो वर्ष 2015-16 में घटकर 39.1 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2005-06 में केवल 6.3 प्रतिशत महिलाएं ही गर्भावस्था के दौरान आयरन की गोली का पूर्ण डोज लेती थी। जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 9.7 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2005-06 में केवल 32 प्रतिशत बच्चे पूर्ण प्रतिरक्षित होते थे, जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 61 प्रतिशत हो गया।