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प्रमोद ने कराया अभिव्यक्ति के अधिकार का बोध तो बदल गई बच्चों की जिदगी

जमुई। यूं तो संविधान में बहुत सारे अधिकार सिमटे हैं लेकिन जागरुकता के अभाव में लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पाता है। अभिव्यक्ति का अधिकार से अनभिज्ञ होते ही उनके अधिकारों का दमन होने लगता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 06:42 PM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2020 06:42 PM (IST)
प्रमोद ने कराया अभिव्यक्ति के अधिकार का बोध तो बदल गई बच्चों की जिदगी
प्रमोद ने कराया अभिव्यक्ति के अधिकार का बोध तो बदल गई बच्चों की जिदगी

जमुई। यूं तो संविधान में बहुत सारे अधिकार सिमटे हैं, लेकिन जागरुकता के अभाव में लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पाता है। अभिव्यक्ति का अधिकार से अनभिज्ञ होते ही उनके अधिकारों का दमन होने लगता है। कुछ ऐसी ही स्थिति शिक्षा का अधिकार लागू होने के पांच वर्षों बाद तक जमुई में बनी थी। अभिवंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा निजी विद्यालयों में भी सुनिश्चित हो इसके लिए शिक्षा का अधिकार कानून में 25 फीसदी नामांकन अनिवार्य तो कर दिया गया, लेकिन धरातल पर इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा था। वर्ष 2015 में अभिभावकों को जगाने का प्रयास ऐसे ही एक नौजवान प्रमोद यादव ने प्रारंभ किया। बिहार अभिभावक महासंघ के बैनर तले अभिवंचित वर्ग के अभिभावकों को चिन्हित कर उन्हें उनका अधिकार बताया और फिर निजी विद्यालयों में उनके बच्चे भी पढ़ सकते हैं, ऐसा सपना उनके मन में जगाया। वक्त के साथ जागृति बढ़ती गई और अभिव्यक्ति का अधिकार की लड़ाई जोर पकड़ने लगी। लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2018 में जूता सिलने वाले अभिभावक विजय और शहर की सफाई करने वाले राजेश को अभिव्यक्ति के अधिकार की लड़ाई का सुखद परिणाम मिला। भछियार निवासी विजय मोची के पुत्र प्रियांशु तथा शांति नगर निवासी राजेश की पुत्री प्रिया का नामांकन डीएवी स्कूल में संभव हो सका। इसके अलावा भी अभिवंचित वर्ग के कई अभिभावकों को अभिव्यक्ति का अधिकार जानने के बाद उसका लाभ मिला और उनके बच्चे भी अब महंगे निजी विद्यालयों में बड़े घर के बेटे और बेटियों के साथ पठन-पाठन कर रहे हैं। प्रमोद कुमार यादव मूलत: लखीसराय जिला के निवासी हैं और धनबाद में इनका हाल मुकाम है, लेकिन जमुई और लखीसराय जिला इनका कार्य क्षेत्र है, जहां अभिभावकों को अभिव्यक्ति के अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।

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