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14 वर्ष की उम्र में हथकड़ियों में जकड़े गए थे शिवेंद्र

दुर्बल काया देख सहसा किसी को यकीन नहीं होगा की ये वही शख्स हैं जिन्होंने 13 साल की उम्र में खुद को स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया था और 14 साल की आयु में सलाखों के पीछे कैद कर दिए गए थे। उम्र कम थी लिहाजा अंग्रेजी बेंत की मार भी कम पड़ी और लंबी अवधि तक कारागार की सजा भुगतने की नौबत भी नहीं आई लेकिन नजरों के सामने उपेंद्र पाल यमुना सिंह रामगुलाम सिंह बेनी सिंह द्वारिका सिंह सरीखे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की पिटाई याद कर उनकी आंखें आज भी नम हो जाती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 07:36 PM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 06:11 AM (IST)
14 वर्ष की उम्र में हथकड़ियों में जकड़े गए थे शिवेंद्र
14 वर्ष की उम्र में हथकड़ियों में जकड़े गए थे शिवेंद्र

फोटो- 14 जमुई- 12

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- अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था बिगुल

- आजादी के वक्त ही पड़ गई थी विकृति की बुनियाद

- कट्टरपंथी विचारधारा और नक्सलवाद देश के लिए बड़ा खतरा

- आजाद देश में गुलामी की जंजीर से जकड़े हैं लोग

- प्रदेश सरकार ने किए कई सराहनीय कार्य, भ्रष्टाचार के खिलाफ और स्वरोजगार के लिए बहुत कुछ करना बाकी

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जमुई [अरविद कुमार सिह]

दुर्बल काया देख सहसा किसी को यकीन नहीं होगा की ये वही शख्स हैं जिन्होंने 13 साल की उम्र में खुद को स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया था और 14 साल की आयु में सलाखों के पीछे कैद कर दिए गए थे। उम्र कम थी लिहाजा अंग्रेजी बेंत की मार भी कम पड़ी और लंबी अवधि तक कारागार की सजा भुगतने की नौबत भी नहीं आई लेकिन नजरों के सामने उपेंद्र पाल, यमुना सिंह, रामगुलाम सिंह, बेनी सिंह, द्वारिका सिंह सरीखे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की पिटाई याद कर उनकी आंखें आज भी नम हो जाती है। यह शख्सियत कोई और नहीं, दर्जनों महिलाओं के लिए स्वावलंबन की बुनियाद गढ़ने वाले सदर प्रखंड के प्रतापपुर गांव निवासी शिवेंद्र सिंह हैं। वे शहर के विकास समिति परिसर में 74 वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर आंखों की मंद रोशनी की निगरानी में झंडोत्तोलन की तैयारी करा रहे होते हैं। आवाज की खनक और शरीर की फुर्ती इस बात का आभास नहीं होने देती कि जीवन का 93 वसंत उन्होंने जनवरी माह में ही पूरा कर लिया है। बहरहाल 1942 से लेकर 15 अगस्त 1947 तक की दास्तान में गोते लगाते हुए जो कुछ उन्होंने कहा वह मुर्दों में भी राष्ट्रभक्ति की जान फूंक देने के लिए पर्याप्त था। इस दौरान उन्होंने दौलतपुर के बगीचा से लेकर खड़हुई बरियारपुर और गिद्धेश्वर

की पहाड़ी तथा चंद्रशैली नदी की कछार पर अंग्रेज सिपाहियों के साथ लुकाछिपी का खेल सुनाते हुए कहा कि लोगों का अगाध प्रेम स्वतंत्रता की लड़ाई में संबल प्रदान करता रहा। यहां यह भी बताना लाजिमी है कि इनके रगों में महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू गिरधर नारायण सिंह का लहू दौड़ रहा है जिन्होंने 18 वर्ष की उम्र से ही अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका था और जीवन पर्यंत जेल और उनके बीच अटूट रिश्ता बना रहा। शिवेंद्र सिंह की मानें तो राजनीतिक विकृति की बुनियाद तो आजादी के वक्त ही पड़ गई थी। उन्हें मलाल है कि स्वाबलंबन की जगह मुफ्तखोरी ने ले ली, लिहाजा देश में चरित्र निर्माण नहीं हो सका। उनकी नजर में देश, समाज तथा इंसान के लिए कट्टरपंथी विचारधारा और नक्सलवाद समान रुप से खतरनाक है। उनका स्पष्ट मानना है कि आग से आग नहीं बुझाई जा सकती है। एकल परिवार की ओर अग्रसर समाज से व्यथित स्वतंत्रता सेनानी इसे संक्रमण काल बताते हैं। उन्होंने बेटों की मां बाप से बेवफाई का दौर शुरू हो जाने पर तंज कसा। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम को बल देते हुए कहते हैं कि बेटी को मेहमान न समझें, अब बेटे की भी हो जाती है रुखसत..। महात्मा गांधी और इतिहास की किताबों के बीच सहारे की आंखों से खोए रहने वाले शिवेंद्र बाबू की नजरों में प्रदेश सरकार ने कई सराहनीय कार्य किए हैं लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ और स्वरोजगार के लिए अब भी बहुत कुछ करना बाकी है। उनका मानना है कि भ्रष्टाचार के कारण ही स्वावलंबन की नींव कमजोर हुई और लोग आजाद देश में गुलामी की जंजीर से बंधे होने की अनुभूति के बीच जी रहे हैं। अंत में स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने दैनिक जागरण के माध्यम से देशवासियों को शुभकामनाएं दी।


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