Move to Jagran APP

प्लास्टिक पर प्रतिबंध से जोर पकड़ेगा पत्तल बनाने का रोजगार

टाप लगाएं ---------- फोटो 4 जमुई 16 - लक्ष्मीपुर के गौड़ा गांव का दर्जनों परिवार आज भी पत्तल बन

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Jul 2022 05:14 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jul 2022 05:14 PM (IST)
प्लास्टिक पर प्रतिबंध से जोर पकड़ेगा पत्तल बनाने का रोजगार
प्लास्टिक पर प्रतिबंध से जोर पकड़ेगा पत्तल बनाने का रोजगार

टाप लगाएं

loksabha election banner

----------

फोटो 4 जमुई 16

- लक्ष्मीपुर के गौड़ा गांव का दर्जनों परिवार आज भी पत्तल बनाकर कर रहा जीवन-यापन

- सरकार ने पूर्णत: सख्ती दिखाई तो फलेगा पत्तल बनाने का रोजगार

--------

- 200 से 300 सौ तक पत्तल बना लेता हैं एक दिन में

- 150 रुपये सैकड़ा की दर से मिल जाती है कीमत

संवाद सहयोगी, जमुई : जिले के पिछड़े इलाके में शुमार लक्ष्मीपुर प्रखंड के आनंदपुर पंचायत अंतर्गत गौड़ा गांव में कई परिवार वर्षों से पत्तल बनाने का काम कर रहे हैं। राज्य में थर्मोकोल और प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसे में अब पत्तल निर्माण से जुड़े परिवारों के समक्ष उम्मीद जगी है।

इन्हें उम्मीद है कि अब उनके द्वारा बनाए गए पत्तल की मांग बाजार में बढ़ेगी। अब वह अधिक पत्तल बनाकर बेच सकेंगे। आमदनी बढ़ने से घर की माली हालत दूर होगी। जंगल से सटे इस गांव के आदिवासी परिवार के लोगों का पुश्तैनी कारोबार पत्तल बनाने का रहा है। प्लास्टिक पर प्रतिबंध से इन लोगों के पुश्तैनी कारोबार के फिर से जोर पकड़ने की उम्मीद है। एक दिन में एक परिवार 200 से 300 सौ तक पत्तल बना लेता है। 150 रुपये सैकड़ा की दर से पत्तल की कीमत मिल जाती है।

-------

दशकों से पत्तल बनाने का काम कर रहा आदिवासी परिवार

जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर गौड़ा गांव है। दशकों से गांव के दर्जनों परिवार के लोग पत्तल बनाने के पेशे से जुड़े हैं। इन परिवारों की जीविका का एक मात्र साधन पत्तल बनाकर बाजार में बेचना है। इनका बनाया पत्तल शादी से लेकर श्राद्ध और अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों में हर घरों में उपयोग होता है। इस बदलते परिवेश में इसी रोजगार से पेट चलाना इन परिवारों के लिए काफी मुश्किल हो जाता है। बाजार में थर्मोकोल से बने पत्तल व कटोरी आ जाने से इनका पत्तल उस अनुरूप नहीं बिक रहा था।

-------

जंगल से लाते हैं पत्ते

गांव के लोग पास के जंगल से हरे पत्ते लाते हैं। इस गांव में पत्तल का निर्माण मुख्य रूप से सखुआ के पेड़ के पत्तों से होता है। हरे सखुआ के पत्ते को बांस की सींक से एक-दूसरे से टांक कर पत्तल तैयार करते हैं।

-------

कहते हैं ग्रामीण

पत्तल बनाने के काम से जुड़े ग्रामीण मंझली सोरेन, मुन्नी टुडू, सुरजी सोरेन, बाबूलाल आदि बताते हैं कि उन लोगों के पूर्वज ही पत्तल बनाते थे। पहले लोग उनके घरों तक आकर उनलोगों के हाथ का बना पत्तल शादी-विवाह, श्राद्ध आदि अवसरों पर ले जाया करते थे। लेकिन, हाल के दिनों में थर्मोकोल का प्रचलन बढ़ने से उनलोगों का धंधा फीका पड़ गया था। सरकारी स्तर पर इस रोजगार के विकास को लेकर पहल करने की जरूरत है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.