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पर्यावरण की छाती पर बंदोबस्तधारी चला रहे डोजर

संवाद सहयोगी जमुई यूं ही नहीं ग्रीन ट्रिब्यूनल की अड़चन से बालू की किल्लत पैदा हुई थी। इसके लिए शायद बंदोबस्तधारी ही जिम्मेदार होते हैं। इसकी बानगी एक बार फिर से जमुई के विभिन्न बालू घाटों पर दिख रही है। यहां बंदोबस्तधारी पर्यावरण की छाती पर डोजर चला रहे हैं यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 05:43 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 05:43 PM (IST)
पर्यावरण की छाती पर बंदोबस्तधारी चला रहे डोजर
पर्यावरण की छाती पर बंदोबस्तधारी चला रहे डोजर

फोटो 18 जमुई-6, 8

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- रोजगार लील गया मशीनीकरण

- बेतरतीब उठाव से ग्रीन ट्रिब्यूनल के मानदंडों की अनदेखी

- तालाब में परिणत हो रही नदियां

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- 15 से 20 फीट तक मानदंड के विपरीत की की जा रही खोदाई

- 40 बालू घाटों पर मजदूरों को नहीं मिल रहा रोजगार

संवाद सहयोगी, जमुई : यूं ही नहीं ग्रीन ट्रिब्यूनल की अड़चन से बालू की किल्लत पैदा हुई थी। इसके लिए शायद बंदोबस्तधारी ही जिम्मेदार होते हैं। इसकी बानगी एक बार फिर से जमुई के विभिन्न बालू घाटों पर दिख रही है। यहां बंदोबस्तधारी पर्यावरण की छाती पर डोजर चला रहे हैं, यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मजेदार बात तो यह है कि इन सब के बावजूद जिला प्रशासन ने आंखें मूंद रखी है।

जमुई की जनता खासकर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों के मन में सवाल उठने लगा है। वैसे खनन विभाग के अधिकारी नदियों में पोकलेन से बालू उठाव को जायज मानते हैं। हालांकि वह भी इस कार्य में मजदूरों को प्राथमिकता देने से सहमत हैं। खान निरीक्षक गौरान कृष्ण कहते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर मजदूरों से बालू का उठाव संभव नहीं है। नतीजतन बालू घाटों की बंदोबस्ती से मजदूरों को रोजगार मिलने की संभावना पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। यहां नदियों में पोकलेन और बड़ी-बड़ी मशीनें रोजगार की संभावनाओं को दिन-रात लील रही है। साथ ही मानदंड के विपरीत नदियों में 15 से 20 फीट तक की खोदाई की जा रही है जो आसपास के लोगों के लिए खतरे की घंटी बजा रही है। आलम यह है कि नदियां तालाब में परिणत होती जा रही है। इसके पहले भी बंदोबस्तधारियों द्वारा नदियों का बेतरतीब दोहन किया गया था। जिसका खामियाजा यहां के लोगों को भुगतना पड़ा। करीब पांच वर्षों तक बालू की किल्लत से हर सेक्टर और तबका प्रभावित हुआ।

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कहते हैं पर्यावरणविद

पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे सुहावन सिंह व नंदलाल सिंह बताते हैं कि नदियों में मशीन से बालू उठाव किए जाने के कारण सबसे पहले तो जलीय जीवों को नुकसान पहुंचता है। इसके बाद नदी की जिदगी की बारी आती है। बेतरतीब खोदाई ही नदियों के प्रवाह को प्रभावित करती है। यही वजह है कि ग्रीन ट्रिब्यूनल की शर्तों में यह शामिल होता है कि नदी की धारा में मशीन से बालू उठाव नहीं किया जाएगा।

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एक-एक बालू घाट पर चल रही आधा दर्जन पोकलेन मशीनें

जिले में 31 मार्च तक के लिए 40 बालू घाटों की नीलामी हुई है। कुछेक घाटों को छोड़कर अधिकांश पर सिडिकेट के कारण मामूली बोली लगी। अब खोदाई की बारी आई तो भरपूर दोहन किया जा रहा है। आलम यह है कि एक-एक बालू घाट पर आधा दर्जन से अधिक पोकलेन मशीनें चल रही है। एक आकलन के मुताबिक ढाई सौ से अधिक पोकलेन जमुई की नदियों में चल रही है। जानकार बताते हैं कि हर दिन जिले की नदियों से कई हजार ट्रक बालू निकाले जा रहे हैं।

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कोट

बालू उठाव में मजदूर को प्राथमिकता देना है, लेकिन पोकलेन या जेसीबी मशीन को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। बड़े पैमाने पर बालू का उठाव हो रहा है जो सिर्फ मजदूरों के भरोसे संभव नहीं है।

गौरान कृष्ण, खान निरीक्षक, जमुई


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