शहद ने घोली विपिन के जीवन में मिठास
जमुई। मधुमक्खी का डंक जितना जलन पैदा करता है उससे कहीं ज्यादा उससे तैयार उत्पाद इंसान के जीवन में मि
जमुई। मधुमक्खी का डंक जितना जलन पैदा करता है उससे कहीं ज्यादा उससे तैयार उत्पाद इंसान के जीवन में मिठास घोल रहा है। बशर्ते की परंपरागत तरीके को छोड़ मधुमक्खी पालन के तौर-तरीके को अपनाने की जरूरत है। यह जमुई के एक किसान ने साबित कर दिखाया है कि मधुमक्खी पालन कर उसके शहद से आदमी के जीवन में मिठास घोली जा सकती है। यह मिठास आर्थिक संबल प्रदान करने के साथ-साथ स्वस्थ्य जीवन के लिए भी उपयोगी हो रहा है। सदर प्रखंड के किसान विपिन कुमार ने प्रयोग किया जो अब रंग लाने लगा है। इन्हें शहद से सालाना तीन लाख की आमदनी होती है। इसके लिए इन्हें किसानश्री की उपाधि से भी नवाजा गया है।
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2013 में की थी शुरुआत :
सदर प्रखंड के तरी-दाबिल निवासी विपिन कुमार कुछ अलग करने की तलाश में थे। इसी क्रम में कृषि विज्ञान केंद्र खादीग्राम के संपर्क में आए और केंद्र समन्वयक डा. सुधीर कुमार ¨सह के प्रयास से वर्ष 2013 में मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया।
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उत्तर प्रदेश से मुजफ्फरपुर तक घुमती है पेटी :
उत्तर प्रदेश में सरसों की बुआई पहले होती है। इसलिए मधुमक्खी की पेटी को यूपी के बाराबांकी में लगाया जाता है। फिर यहां फूल समाप्त होने के बाद पेटी को जमुई के खेतों में लगाया जाता है। लीची के मौसम में मुजफ्फरपुर के बगीचे में पेटी को लगाया जाता है ताकि मधुमक्खी फूल व पराग का सेवन कर सके।
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एक पेटी से 25 किलो निकलता है शहद :
मौसम अनुकूल रहने की स्थिति में एक पेटी से 25 किलो शहद प्राप्त होता है। लीची के सीजन में दस दिनों में मौसम अनुकूल रहने पर लगभग एक लाख का शहद निकल आता है।
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नहीं मिलता है वाजिब मूल्य :
बकौल विपिन कुमार वाजिब मूल्य मिलने पर लाभ की रकम में बढ़ोतरी होगी। कारोबारी इसे औने-पौने दाम में खरीदते हैं जबकि विदेशों में इसकी उंची कीमत वसूल की जाती है। सरकारी स्तर से व्यवस्था कर इसकी ब्रांडिग की जाए तो जिले के किसानों के दिन फिर जाएंगे। बहरहाल तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मधुमक्खी पालन से घर की माली हालत में सुधार आया।