स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथाएं, यादें करतीं हैं गौरवान्वित
आशीष सिंह चिटू जमुई स्वतंत्रता संग्राम की प्रण यज्ञ में आजादी के दीवानों के जोश जज्बा और संगठन की आहुति ने आजादी की ज्वाला को प्रचंड कर दिया था। आज आजादी की हर सांस के साथ उनकी यादें गौरवान्वित करती है।
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-स्वतंत्रता संग्राम में विभूतियों के समर्पण ने हमें दी आजाद वतन
-आजाद भारत के विकास में भी निभाई भूमिका
- जिले के दो दर्जन से अधिक किशोर, युवा घर-परिवार छोड़ भारत माता की आजादी की जंग में कूद पड़े
आशीष सिंह चिटू, जमुई : स्वतंत्रता संग्राम की प्रण यज्ञ में आजादी के दीवानों के जोश, जज्बा और संगठन की आहुति ने आजादी की ज्वाला को प्रचंड कर दिया था। आज आजादी की हर सांस के साथ उनकी यादें गौरवान्वित करती है। जिले के दो दर्जन से अधिक किशोर, युवा अपने घर-परिवार का त्याग कर भारत माता की आजादी की जंग में कूद पड़े थे। किशोरावस्था में कोई जेल गए तो किसी के मुर्दा या जिदा पकड़ने पर पांच हजार का इनाम घोषित था। कितु हर पुरुष-महिला के रग में खून की जगह दौड़ती क्रांति और हर सांस में भारत माता की आजादी ने अंग्रेजों का सपना पूरा नहीं होने दिया। आजादी के बाद भी स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के विकास में सहभागिता निभाई। बावजूद अफसोस इस बात का कि वर्तमान पीढ़ी ऐसे कई महापुरुषों के कृत्य से अंजान हैं।
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पीढ़ी के लिए गौरव की बात
प्रखंड के सोनो के स्वतंत्रता सेनानी स्व. श्रीकिरण साहित्यकार, कवि और पत्रकार भी थे। उनकी एक कविता- जिनकी सांसों में है ज्वाला, है आंखों में अंगार भरा। आकाश दबोचे मुट्ठी में, पाताल छिपा है डरा-डरा।
रे वीर वही, जिसके पीछे इतिहास मचलकर चलता। ऐसी ही भावना से लोग ओत-पोत थे। स्व. श्रीकृष्णा सिंह 14 वर्ष की उम्र में ही आजादी की जंग में कूद गए। अपने युवा साथियों के साथ एक रात में जमुई के 14 कचहरी को जला दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें जिदा या मुर्दा पकड़ने पर पांच हजार का इनाम रख दिया था। झाझा के शिवनंदन झा, लक्ष्मी प्रसाद माथुरी, काशी लाल सिन्हा ने भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए। साथ ही रेलवे का पोल उखाड़ने के दौरान पकड़े जाने पर जेल गए थे। खास चकाई के स्व. जमुना लाल सुभाषचंद्र बोस के सहयोगी थे। बम चलाने में माहिर थे। अंग्रेजों ने उन्हें 13 साल तक जेल में रखा था। सिमुलतला के स्व. हीरा प्रसाद सिंह और उनके भाई अनंत सिंह 1919 में जलियावाला बाग के घायलों को सिमुलतला में छिपा कर इलाज कराया था। जसीडीह जाकर रेलवे पटरी उखाड़ दी थी। सिकंदरा के शियाशरण सिंह, स्व. शियाशरण सिंह, गंगाधर पांडेय आदि ने सिकंदरा थाना और कचहरी को आग में फूंक दिया था। अंग्रेजों ने इन्हें निर्वस्त्र कर पहाड़ से फेंक दिया था। स्वतंत्रता सेनानियों के ऐसी ही वीर गाथाओं से जमुई की धरती पटी है।
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आजादी के बाद विकास में निभाई भूमिका
स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के बाद देश के विकास में भी भूमिका निभाई। मलयपुर के स्व. श्यामा प्रसाद सिंह ने अस्पताल और डाकबंगला के लिए भवन सहित जमीन का दान किया। स्व. गंगाधर पांडेय ने डूमरकोला सिचाई योजना के लिए 22 एकड़ जमीन दान कर दी। कई सेनानी गरीबों की आवाज बने।
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जमुई के वो महान स्वतंत्रता सेनानी
हीरा सिंह, सिमुलतला, अनंत कुमार सिंह-सिमुलतला, रामाकांत पाल-सिमुलतला, जमुना लाल, खास चकाई, कुमार यमुना सिंह-घुटवे सोनो, श्रीकिरण -सोनो, बंधु महतो-सरधौड़ी सोनो, शिवनंदन झा-झाझा, लक्ष्मी प्रसाद माथुरी, झाझा, काशी लाल सिन्हा, झाझा, गुलाब चंद्र गुप्ता, झाझा, लाल मुहम्मद अंसारी, झाझा, शंकर लाल गुप्ता, झाझा, शिवनंदन यादव, झाझा, कुमार कालिका सिंह गिद्धौर, श्रीकृष्ण सिंह, पकरी खैरा, सीता राम सिंह-घनबेरिया, खैरा, सिया शरण सिंह-मंजोष सिकंदरा, सियाशरण सिंह-महादेव सिमरिया, सिकंदरा, गंगाधर पांडेय, सिकंदरा, सूर्यदेव शर्मा, धधौर, सिकंदरा, प्रेम मोदी, धधौर, सिकंदरा, किशुन पांडेय, धधौर, सिकंदरा, भासो सिंह, धधौर, सिकंदरा, शिवेंद्र सिंह, प्रतापपुर जमुई, कमला मंडल, डूमरकोला, रामगुलाम सिंह, जमुई, बेनी सिंह, जमुई, द्वारिका सिंह, जमुई, श्यामा प्रसाद सिंह, मलयपुर, उपेंद्र पाल सिंह, मलयपुर, जगदीश लोहार, मलयपुर, रामरुप प्रसाद, महम्मदपुर, अलीगंज, मानो देवी, महम्मदपुर, अलीगंज।