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मजबूरी के सफर में खूब मिली दुश्वारियां

जमुई। कोरोना महामारी ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को लॉकडाउन करने के लिए मजबूर कर दिया है। लोग घरों में रहने को विवश हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 07:11 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 07:11 PM (IST)
मजबूरी के सफर में खूब मिली दुश्वारियां
मजबूरी के सफर में खूब मिली दुश्वारियां

जमुई। कोरोना महामारी ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को लॉकडाउन करने के लिए मजबूर कर दिया है। लोग घरों में रहने को विवश हैं। हालांकि अब छूट मिली है, लेकिन प्रवासियों की जिदगी की जद्दोजहद कम नहीं हुई है। उनकी मजबूरी ही है। लॉकडाउन में

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रोजगार गया तो कामगारों का जीवन-यापन करना मुश्किल हो गया। अपना और अपनों के लिए पैदल ही घर का रुख कर लिया। सिर पर सामान की गठरी है। बड़ी संख्या में कामगार पैदल ही सफर तय कर रहे हैं। कोई दस दिन से तो कोई 15 दिन से पैदल चल रहा है। सबकी मंजिल एक ही है बस किसी तरह घर पहुंच जाएं। सफर में दुश्वारियां भी कम नहीं हो रही है। मजबूरी का सफर तय कर जब ये अपने प्रखंड आते आते निढाल हो जाते हैं। रविवार को कुछ ऐसा ही नजारा खैरा हाई स्कूल के समीप देखने को मिला। सूरत से आए मोहन यादव ने बताया कि तीन दिनों से भरपेट खाना नहीं मिला है। रास्ते में एक गांव में लोगों ने खाना खिलाया था। मध्य प्रदेश से आए दिनेश राम ने बताया कि किसी तरह अपने इलाके में आए हैं। रमेश साह ने बताया कि फैक्ट्री में नौकरी करते थे। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। पैसे और खाने का संकट आ गया तो वहां रहकर क्या करते। इसलिए घर लौट आए।

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प्रवासियों में कोरोना का नहीं है खौफ

परदेशों से आ रहे प्रवासियों में कोरोना का खौफ नहीं है। इनकी आंखों में बेचारगी और बेबसी का अक्स है। पंजाब से आए रामू ने बताया कि सरिया फैक्ट्री में काम करते थे। न मालिक ने वेतन दिया और न किसी ने मदद की। कोई आस नहीं बची तो घर के लिए निकल पड़े। दिनेश ने बताया कि मकान मालिक ने किराया तक नहीं छोड़ा। किसी तरह मजबूरी का सफर तय कर घर पहुंच रहे हैं।


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