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स्टेशन पर पीने को पानी नहीं, शौचालय भी लाक

जहानाबाद जहानाबाद कोर्ट हॉल्ट को सरकारी बाबुओं का स्टेशन कहा जाता है। बड़ी संख्या में समाहरणालयअनुमंडल कार्यालय तथा व्यवहार न्यायालय के कर्मी ड्यूटी पर आने तथा जाने के लिए इसी स्थान पर ट्रेन से उतरते और चढ़ते हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 17 May 2022 12:00 AM (IST)Updated: Tue, 17 May 2022 12:00 AM (IST)
स्टेशन पर पीने को पानी नहीं, शौचालय भी लाक
स्टेशन पर पीने को पानी नहीं, शौचालय भी लाक

जहानाबाद : जहानाबाद कोर्ट हॉल्ट को सरकारी बाबुओं का स्टेशन कहा जाता है। बड़ी संख्या में समाहरणालय,अनुमंडल कार्यालय तथा व्यवहार न्यायालय के कर्मी ड्यूटी पर आने तथा जाने के लिए इसी स्थान पर ट्रेन से उतरते और चढ़ते हैं। लेकिन हालात यह है कि यहां यात्रियों को प्यास बुझाना भी मुश्किल है। कोर्ट हॉल्ट पर कभी तीन हथिया चापाकल हुआ करता था, जिसमें एक चापाकल में समरसेबल लगा दिया गया है लेकिन यह सिर्फ सुबह में कुछ घंटे तक ही चालू रहता है। दूसरा चापाकल पिछले कई दिनों से खराब है। एकमात्र चापाकल पर ही यात्रियों को निर्भर रहना पड़ रहा है। ट्रेन का समय होते ही यहां यात्रियों की भीड़ लग जाती है। एकमात्र चापाकल से सभी को पानी उपलब्ध होना संभव नहीं हो पाता है। बोतल में पानी भरने की बात तो दूर प्यास बुझाने के लिए यहां अफरातफरी की स्थिति कायम रहती है। इस स्थिति में बोतलबंद पानी यात्रियों का एकमात्र सहारा है। इस भीषण गर्मी में सरकार को भारी-भरकम राजस्व देने वाले इस स्थान पर पेयजल संकट समझ से परे नजर आ रहा है। हालांकि रेलवे द्वारा यहां यात्री सुविधा के नाम पर चार शौचालय बनाए गए हैं लेकिन सभी शौचालय में हमेशा ताला ही बंद रहता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब से शौचालय बना है तभी से यात्रियों के उपयोग के लिए इसके दरवाजे खुले नहीं हैं। इस स्थिति में यह हाथी का दांत साबित हो रहा है। औसतन तीन हजार यात्रियों का होता है आना- जाना कोर्ट हॉल्ट पर प्रतिदिन औसतन तीन हजार यात्रियों का आना- जाना रहता है लेकिन इसके तुलना में यहां यात्री सुविधा उपलब्ध नहीं है। यात्रियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पेयजल की व्यवस्था यहां नदारद है। इस स्थिति में ट्रेन से उतरने पर प्यास बुझाने के लिए यात्रियों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। जब यहां शौचालय का निर्माण कराया जा रहा था तब यात्रियों को लगा था कि अब यहां सभी समस्याएं दूर हो जाएगी। शौचालय तो बनकर तैयार हो गए पर उसके ताले आज तक नहीं खुले। इस स्थिति में मुस्कान के साथ रेलवे का सफर जैसे आदर्श वाक्य यहां दम तोड़ता नजर आ रहा है। शौचालय की जरूरत पर यात्रियों को रेलवे ट्रैक और आसपास की झाड़ियों की ओर रुख करना पड़ता है।

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