काको में रानी कैकई के हाथों विष्णु को अर्पित जल मलिन
जहानाबाद। राजा दशरथ की रानी कैकई जिस सरोवर के जल से स्नान और भगवान विष्णु की पूजा करती थी उसके अस्तित्व को बचाना आसान नहीं लगता।
जहानाबाद। राजा दशरथ की रानी कैकई जिस सरोवर के जल से स्नान और भगवान विष्णु की पूजा करती थी उसके अस्तित्व को बचाना आसान नहीं लगता। कैकई के पिता राजा काकोत्स का किला और भगवान विष्णु मंदिर और 52 एकड़ में फैला सरोवर का अवशेष आज भी मौजूद है। हम बात कर रहे जहानाबाद जिले के काको के पनहास तालाब और मंदिर की। ऐसी मान्यता है कि राजा काकोत्स के नाम पर ही काको गांव था जो अब विकसित होकर प्रखंड और नगर के रूप में जाना जाता है।
काको का पनिहास तालाब गंगा-जमुनी संस्कृति सहेज रखा है। जलाशय के उत्तर-पूर्वी हिस्से में भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर है तो उत्तर-पश्चिमी छोर पर पहली महिला सूफी संत हजरत बीबी कमाल का मकबरा। दक्षिण मे उच्च तथा मध्य विद्यालय अवस्थित है। दो धर्मो की आस्था, शिक्षा और पवित्र जलाशय के पानी किसानों के लिए आज भी जीवनदायिनी है। बिना नहर और नदी के ही खेतों की सिचाई इस तालाब के पानी से होता है।
-- घट रहा जलस्तर --
बदलते वातावरण का असर इस एतिहासिक तालाब के जलस्तर पर पड़ रहा है। कुछ लोगों ने तालाब किनारे अतिक्रमण करना शुरू कर दिया तो बढ़ती आबादी के कारण घरों का गंदा पानी तालाब में गिर रहा है। मान्यता है की प्राचीन काल में पनिहास के दक्षिणी पूर्वी हिस्से में राजा काकोत्स का किला हुआ करता था। राजा की पुत्री कैकई भगवान विष्णु की पूजा इसी मंदिर में करती थीं। अयोध्या के राजा दशरथ के साथ कैकई का विवाह हुआ। भगवान विष्णु के जिस मूर्ति की पूजा कैकई करती वह 1948 में खुदाई के दौरान पनिहास में मिली थी। आज वही मूर्ति मंदिर में विराजमान है।
-- हजरत बीबी कमाल दरगाह --
एक मान्यता यह भी है कि करीब 500 वर्ष पूर्व 1230 के आसपास अपनी माता के साथ हजरत बीबी कमाल के साथ काको पहुंचे थे। सूफी संत से प्रभावित होकर स्थानीय शासक ने उन्हें यहां निवास करने का अनुरोध किया था। उस समय के राजा द्वारा हजरत बीबी कमाल के सम्मान में यह तालाब निर्माण कराया था।
-- पर्यटकों के लिए कार्य --
राज्य के पर्यटन मानचित्र में इस स्थान को सम्मलित किया गया था। वर्ष 2011 में राज्य सरकार द्वारा यहां पहली बार सूफी महोत्सव का आयोजन किया गया। मुख्यमंत्री ने दरगाह तथा विष्णु मंदिर को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की बात घोषणा की थी। मंदिर और दरगाह को तो विकसित किया गया लेकिन पर्यटन विभाग द्वारा शुरू किया गया नौका विहार बंद हो गया है। मोहल्ले की नालियां गिरती है। पशु पालक इसमें अपने पशु धोते हैं। महिलाएं कपड़े धोती हैं ,वहीं इसी तालाब के घाटों पर प्रतिमाओं के विसर्जन के अवशेष को साफ करने की भी जहमत नहीं उठाया जा रहा है।
बड़ी पनिहास के नाम से विख्यात लगभग 85 बीघा में ़फैले इस तालाब में मछली पालन एक सफल व्यवसाय के रूप में विकसित हुआ है। मत्स्य पालन से सरकार को लाखों के राजस्व प्राप्त होता है। यहां हैचरी और •ाीरा विकसित करने के लिए आधा दर्जन छोटे तालाब बनाये गए थे। लेकिन फिलहाल हैचरी बंद हो गया है।