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श्रीकृष्ण के चरण कमलों में विश्वास तो पराजय नहीं

अरवल कोरोना वायरस को लेकर जिला प्रशासन एक ओर जहां सख्ती से लॉकडाउन का अनुपालन कराने में जुटी है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 11:14 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 11:14 PM (IST)
श्रीकृष्ण के चरण कमलों में विश्वास तो पराजय नहीं
श्रीकृष्ण के चरण कमलों में विश्वास तो पराजय नहीं

जहानाबाद : जो व्यक्ति भगवान श्रीकृष्ण के चरण कमलों में विश्वास रखता है उसकी पराजय कभी नहीं हो सकती है। उक्त बातें श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के श्री स्वामी रंग रामानुजाचार्य जी महाराज ने सोमवार को अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कही।

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उन्होंने कहा कि स्वच्छ मन से भगवान श्री कृष्ण के चरण कमल में विश्वास रखने वाले मानवों को कभी पराजय नहीं देखना पड़ता । उन्होंने कहा कि यदि सच्चे मन से भगवान पर विश्वास किया जाए, तो मानव का कल्याण संभव है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि द्यूत कीड़ा में छलके द्वारा पांडवों को हराने के बाद शर्त में बारह वर्ष का बनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास करने पर उन्हें समस्त राज्य-पाट लौटा दिया जाएगा । शर्त के अनुसार जब वे लौट कर आए , तो दुर्योधन ने राज्य देने से इंकार कर दिया। शुभचितकों को समझाने के बाद भी उसकी चाह राज्य देने की न हुई। जिससे दोनों पक्षों में युद्ध की तैयारी होने लगी। अर्जुन तथा दुर्योधन युद्ध में सहयोग के लिए श्री कृष्ण के पास आये । कृष्ण सोए हुए थे ।पहले दुर्योधन पहुंचे और भगवान् श्री कृष्ण के सिरहाने में रखे हुए सिंहासन पर बैठ गए ।उसके बाद शयनकक्ष में अर्जुन का प्रवेश हुआ। वह भगवान के चरण कमल के पास खड़े हो गए। भगवान् की जब नींद खुली तब उनकी ²ष्टि पहले अर्जुन पर पड़ी। तब उन्होंने दोनों से आने का कारण पूछा। तब दुर्योधन ने कहा कि पहले मैं आया हूं। अत: पहले मेरी बात को सुनी जाए तब श्री कृष्ण ने शास्त्र सम्मत बात कही कि पहले मेरी ²ष्टि अर्जुन पर पड़ी है, इसलिए पहले अर्जुन की बात ही सुनूंगा। भगवान् ने कहा कि एक तरफ मेरी 10 करोड़ की नारायणी सेना तथा दूसरी तरफ बिना अस्त्र-शस्त्र के मैं स्वयं रहुंगा। अर्जुन को कहा कि इसमें जो तुम्हें प्रिय लगे उसे चुन लो। तब अर्जुन ने भगवान् श्री कृष्ण को चुना। दुर्योधन को लगा कि अर्जुन की बुद्धि मारी गई है, वह बहुत प्रसन्न हुआ और वह नारायणी सेना प्रभू श्रीकृष्ण से मांग लिया।


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