जागरण संवाददाता,
अरवल। Arwal News: पुनपुन नदी, अरवल जिले की लाइफ लाइन मानी जाती है। पुनपुन के उफान से इस क्षेत्र के दर्जनों आहार ,पोखर ,पइन, तालाब जैसे परम्परागत जलश्रोतों को संजीवनी मिल जाती थी। लेकिन बालू के अत्यधिक दोहन से नदी खुद मृतप्राय हो चुकी है। नदी के निचले हिस्से में जल धाराएं तेजी से सूखने लगी हैं। इसका प्रभाव कृषि कार्यों पर पड़ रहा है। मवेशियों को भी पानी नहीं मिल रहा।
कृषि प्रधान इस क्षेत्र में पुनपुन नदी का पानी खेतों में उतारने के लिए नहर प्रणाली विकसित करने की मांग ब्रिटिश काल से ही की जाती रही है। किसान नेता पंडित यदुनंदन शर्मा ने वर्ष 1945 में इसके पानी को खेतों में उतारने के लिए कवायद शुरू की थी। उन्होंने मांग उठाई थी कि सोन नदी के पानी को पुनपुन में , पुनपुन के पानी को दरधा में और दरधा के पानी को मोरहर में गिराया जाए, इससे बड़ा क्षेत्रफल सिंचित होगा। लेकिन यह कार्ययोजना धरातल पर नहीं उतर सकी।
बिखराव से सभी नदियों की जल धाराएं लगातार कम होती चली गई।
बालू के अंधाधुंध खनन ने सभी नदियों के अस्तित्व पर संकट ला दिया। पुनपुन नदी में सेवा विगहा घाट, शाहगंज घाट , मोतेपुर घाट, शाहजीवन दरगाह घाट, भतूबिगहा, इब्राहिमपुर घाट, हेलारपुर घाट, किंजर आदि जगहों पर दबंगों के संरक्षण में धड़ल्ले से बालू का अवैध उत्खनन चल रहा है। नदी में बालू की कमी से भूगर्भ जल रिचार्ज पर भी असर पड़ना शुरू हो गया।
क्या कहते हैं लोग
किसान नेता रविन्द्र कुमार रवि ने कहा कि लोगों का कहना है कि पुनपुन नदी को जब तक आबाद नहीं किया जाएगा तब तक क्षेत्र में हरियाली व खुशहाली नहीं आएगी। यहां की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। क्षेत्र की मिट्टी भी काफी उर्वरा है , लेकिन सिंचाई संसाधनों की कमी है।
पुनपुन नदी का पानी क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान था। लेकिन नदी की इस दुर्दशा ने सभी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। अगर नदी का जलस्तर लगातार गिरता रहा तो किनारे वाले गांवों की समृद्धि थम जाएगी।
पंडित प्रभाकर शर्मा शास्त्री, (कर्मकांडी व साहित्यकार) ने कहा कि पुनपुन नदी की धार्मिक महत्ता है। इसके पानी को धर्मग्रथों में काफी शुद्ध माना गया है। नदी का पानी धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग होता है, लेकिन नदी की सूखती जल धारा चिंता का विषय है। नदी तेजी से प्रदूषित भी हो रही है। नदी को बचाने की मुहिम में सभी को आगे आना होगा।
कामता यादव, मुखिया धमौल पंचायत ने कहा कि पुनपुन नदी के तट पर हम पले बढ़े हैं। इसकी गोद में तैरना सीखे । लेकिन अब नदी खुद ही पानी को तरस रही है। नदी की सिमटती जलधारा से इस क्षेत्र में कृषि कार्य प्रभावित हो रहा है।
जल जीवों की संख्या भी लगातार घट रही है। मछली मारने वाले परिवारों के समक्ष जीविकोपार्जन की समस्या उत्पन्न हो गयी है। नदी के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए सभी को आगे आना होगा। आम लोगों के बीच जन जागरण चलना होगा।
मिथलेश कुमार ने कहा कि पुनपुन नदी के निचले हिस्सा में नदी अपना वजूद खोती जा रही है, जो चिंता का विषय है। नदी में पानी कमने से किनारे बसने वाले आबादी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कृषि कार्यों पर असर पड़ रहा है। पानी नहीं रहने के कारण नदी में पौधे उग आए हैं। नदी को बचाने के लिए आम अवाम में जागृति पैदा करना होगा। नदी में कोई कचरा नहीं फेंकें इसके लिए भी अभियान चलना होगा।
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