पेयजल पर 63 करोड़ खर्च, पानी से 36 का रिश्ता
जहानाबाद। शहरी क्षेत्र में 63 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी पानी से लोगों का 36 का रिश्ता बना हुआ है।
जहानाबाद। शहरी क्षेत्र में 63 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी पानी से लोगों का 36 का रिश्ता बना हुआ है। राहगीरों के लिए एक अदद नल नहीं मिलेगा जहां प्यास बुझा सकें। दावा तो लक्ष्य से भी अधिक जलापूर्ति की योजना पर कार्य होने का किया जा रहा है लेकिन राहगीरों को बोतल बंद पानी के लिए जेब ढीली करना पड़ता है।
जहानाबाद नगर परिषद क्षेत्र में नल-जल योजना की जिम्मेदारी बुडको को दी गई थी। विभाग ने प्रथम चरण में 28.17 करोड़ और दूसरे चरण में 35 करोड़ रुपये का टेंडर किया। 31 मार्च तक दोनों चरण के कार्य पूरा करने का करार किया गया। बुडको के कार्यपालक अभियंता बिदा सिंह बताते हैं कि 2018 में घरों तक नल जल की सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। शहर के 21 हजार घरों तक नल का जल पहुंचाया गया है। वर्ष 2011 के आंकड़े के अनुसार जहानाबाद शहर में 20 हजार 800 मकान है। हालांकि 2011 से अब तक 5000 होल्डिंग की संख्या बढ़ी है। बुडको नल जल योजना से जुड़े हुए घरों की संख्या का आंकड़ा पेश कर रहा है उससे अधिकांश लोगों को इसकी सुविधा उपलब्ध होना सुनिश्चित लगता है। लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है।
शहर के कुछ मोहल्ले को छोड़ अन्य इलाके में आधे घरों तक नल का जल नहीं पहुंच रहा है। गांधी मैदान, देवरिया, होरिलगंज समेत कोर्ट एरिया के इलाके में नल जल की स्थिति ठीक है। दरधा नदी के उत्तरी इलाके के कई मोहल्ले के लोगों को आज भी समरसेबल बोरिग या चापाकल पर ही आश्रित हैं। कुछ मोहल्ले में पुराने पीएचईडी विभाग के पाइप जरूर बिछा हुआ है। वैसे पीएसइडी के नल से अब पानी टपकना लगभग बंद हो गया है। शहर के बड़ी संगत मोहल्ले में एक दो गली को छोड़ कर कहीं भी बुडको द्वारा संचालित नल जल योजना से पानी नहीं मिल रहा है। यही हाल अस्पताल मोड़, सब्जी मंडी ,छत्रपति शिवाजी मार्ग समेत अन्य इलाकों का भी है। अब गर्मी अपना रंग दिखाने लगा है। धीरे-धीरे भूजल स्तर में भी गिरावट होने लगी है। शहर के कई मोहल्लों में पेयजल की समस्या बढ़ने लगी है। शहरवासियों के सामने पीने की पानी की किल्लत एक बड़ा मुद्दा हमेशा से रहा है। विभाग कार्य पूरा कर लेने का दावा कर रही है।
-- कहां गुम हो गए नल --
जहानाबाद एक छोटा शहर है लेकिन यहां आने जाने वाले लोगों को
महानगरों की तरह प्यास मिटाने के लिए पानी खरीदने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। शहर के अस्पताल मोड़ समेत कई चौक चौराहों पर नल की सुविधा उपलब्ध रहता था। अब अंबेडकर चौक को छोड़कर कोर्ट एरिया से स्टेशन तक कहीं भी प्यास बुझाने के लिए नल से पानी गिरता नहीं दिखता है। अरवल मोड़ पर महावीर मंदिर का अपना नल लगा था। कई स्थानों से तो नल के अस्तित्व ही समाप्त हो चुके हैं। अब आने वाले भीषण गर्मी में लोग स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा संचालित प्याऊ से हीं सूखते हलक को भींगो सकते हैं।