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बीतते गए साल दर साल, तबाह होती गई बीड़ी मजूदरों की जिंदगी

लिस्ट लंबी है प्रमिला देवी सुभावती देवी उमापति देवी.। कई महिलाओं का नाम इस सूची में शामिल है जो गुजर चुकी हैं। ये वो महिलाओं हैं जो मांझा में चल रहे बीड़ी उद्योग में काम करती थीं तथा तंबाकू के दुर्गंध के बीच काम करते-करते टीबी की शिकार हो गईं। मांझागढ़ में पिछले 40 साल से चल रहे बीड़ी उद्योग में नियमों की अनदेखी की जा रही है। बीड़ी मजदूरों की न तो सुरक्षा का ख्याल रखा जा रहा है और ना ही उन्हें उचित मजदूरी मिल रही है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 10:02 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 10:02 PM (IST)
बीतते गए साल दर साल, तबाह होती गई बीड़ी मजूदरों की जिंदगी
बीतते गए साल दर साल, तबाह होती गई बीड़ी मजूदरों की जिंदगी

गोपालगंज : लिस्ट लंबी है, प्रमिला देवी, सुभावती देवी, उमापति देवी.,। कई महिलाओं का नाम इस सूची में शामिल है, जो गुजर चुकी हैं। ये वो महिलाओं हैं जो मांझा में चल रहे बीड़ी उद्योग में काम करती थीं तथा तंबाकू के दुर्गंध के बीच काम करते-करते टीबी की शिकार हो गईं। मांझागढ़ में पिछले 40 साल से चल रहे बीड़ी उद्योग में नियमों की अनदेखी की जा रही है। बीड़ी मजदूरों की न तो सुरक्षा का ख्याल रखा जा रहा है और ना ही उन्हें उचित मजदूरी मिल रही है। बीड़ी बनाने वाली निजी कंपनियां इन मजदूरों को तंबाकू तथा अन्य सामग्री उपलब्ध कराती हैं। बीड़ी बनाने की संख्या के अनुसार मेहनताना देकर खुद मालामाल हो रही हैं और पेट की आग बुझाने के लिए बीड़ी मजदूरों की जिदगियां तबाह हो रही हैं। इसके बाद भी बीड़ी मजदूरों की सुध कोई नहीं ले रहा है।

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मांझागढ़ मुख्यालय के पुरानी बाजार, वृत्तिटोला, पानी टंकी मोहल्ला तथा शेख टोली में पहुंचते ही तंबाकू की दुर्गंध खुद यह एहसास करा देती है कि यहां सांस लेना भी मुश्किल है। तंबाकू की दुर्गंध तथा बजबजाती नालियों के बीच बसी झोपड़ियों में रहने वाले यहां के अधिकांश लोगों की जीविका का साधन बीड़ी बनाना है। पिछले 40 साल से इन मोहल्लों में बीड़ी बनाने का काम कुटीर उद्योग के रूप में चल रहा है। महिलाओं से लेकर बच्चे तक बीड़ी बनाने के काम में लगे हैं। लेकिन, हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी न तो इन्हें भरपेट भोजन नसीब होता है और ना ही उचित मेहनताना मिलता है। तंबाकू के दुर्गंध के बीच काम कर रहे बीड़ी मजदूर टीबी जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। बीड़ी मजदूर बताते हैं कि बीमारी की चपेट में आने से प्रमिला देवी, सुभावती देवी, उमापति देवी सहित कई महिलाओं की मौत हो चुकी है। बीड़ी मजदूर आरती देवी सहित कई मजदूर बीमारी की चपेट में आ गए हैं। लगातार खांसी के कारण उनमें भी टीबी के लक्षण दिख रहे हैं। लेकिन, इसके बाद भी बीड़ी मजदूरों की समस्याओं की तरफ अब तक ध्यान नहीं दिया गया। कोई इनकी सुध नहीं ले रहा है। इनसेट

कई कंपनियां बनवाती हैं बीड़ी

गोपालगंज : पुरानी बाजार, वृत्तिटोला, पानी टंकी मोहल्ला तथा शेख टोली में कई निजी कंपनियां रॉ मैटेरिल देकर बीड़ी बनवाती हैं। बीड़ी मजदूर बताते हैं कि गुप्ता छाप, अशर्फी छाप, अशोक छाप सहित मैरवां की एक कंपनी के लिए वे लोग बीड़ी बनाते हैं। इन कंपनियों के कर्मचारी बीड़ी मजदूरों को तंबाकू तथा अन्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं। मेहनताना के रूप में एक हजार बीड़ी बनाने पर सौ रुपया दिया जाता है। बीड़ी मजदूर बताते हैं कि बाल बच्चों के साथ मिल कर पूरे दिन काम करने पर मुश्किल से एक दिन में एक हजार बीड़ी बना पाते हैं। जिसके लिए उन्हें सौ रुपया मजदूरी मिलती है। इनसेट

बीड़ी सिगार अधिनियम का हो रहा उल्लंघन

गोपालगंज : भारत सरकार ने तंबाकू मजदूरों के हित तथा उनके समुचित विकास के लिए वर्ष 1966 में बीड़ी सिगार अधिनियम बनाया है। लेकिन, मांझागढ़ में इस अधिनियम का पालन नहीं किया जा रहा है। इस अधिनियम के तहत बीड़ी मजदूरों के स्वास्थ्य जांच तथा नि:शुल्क इलाज के लिए अस्पताल का होना जरूरी है। जिले में भी कागज पर शहर में बीड़ी मजदूरों के लिए अस्पताल खोला गया है। लेकिन, पूछने पर बीड़ी मजदूर बताते हैं कि उनके लिए अस्पताल होने की जानकारी उन्हें नहीं है।


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