पहले टायर गाड़ी पर ढोल-मजीरा बजाकर करते थे प्रचार
अब चुनाव में पहले वाली बात कहां है। पहले के चुनाव और अब के चुनाव में काफी कुछ बदल गया है। प्रचार करने के तरीके से लेकर नेताओं की बोली तक बदल गई है। पहले टायर गाड़ी पर ढोल झाल- मजीरा के साथ भोजपुरी गीत गाकर प्रत्याशी का प्रचार किया जाता था। प्रत्याशी तथा नेता अपने भाषणों में मुहावरों तथा किस्सा कहानी सुनाकर सहजता से अपनी बात जनता के बीच रखते थे। अपनी पार्टी की उपलब्धियों वादों के बारे में जनता को बताते थे। दूसरी पार्टी की नकामी पर भी खुल कर बोलते थे। लेकिन आज की तरह पहले नेता एक दूसरे पर कीचड़ नहीं उछालते थे।
बरौली(गोपालगंज) : अब चुनाव में पहले वाली बात कहां है। पहले के चुनाव और अब के चुनाव में काफी कुछ बदल गया है। प्रचार करने के तरीके से लेकर नेताओं की बोली तक बदल गई है। पहले टायर गाड़ी पर ढोल, झाल- मजीरा के साथ भोजपुरी गीत गाकर प्रत्याशी का प्रचार किया जाता था। प्रत्याशी तथा नेता अपने भाषणों में मुहावरों तथा किस्सा कहानी सुनाकर सहजता से अपनी बात जनता के बीच रखते थे। अपनी पार्टी की उपलब्धियों, वादों के बारे में जनता को बताते थे। दूसरी पार्टी की नकामी पर भी खुल कर बोलते थे। लेकिन, आज की तरह पहले नेता एक दूसरे पर कीचड़ नहीं उछालते थे। पहले नेताओं में लोगों की सेवा करने का भाव होता था। लोग प्रत्याशी को वोट देते थे। अब लोग पार्टी को वोट दे रहे हैं। अब किसी भी तरफ से चुनाव जीतना ही उद्देश्य रह गया है। इससे चुनावी माहौल में भी पहले से काफी बदल गया है। साल 1957 से अब तक हुए विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव को देखते आ रहे बरौली बाजार के दवा व्यवसायी 82 वर्षीय भृगुनाथ गुप्ता पहले और अब के चुनावी माहौल को याद करते हुए कुछ पल के लिए अपने आप में खो जाते हैं। वे बताते हैं कि पहले आज की तरफ प्रचार नहीं किया जाता था। टायर गाड़ी पर ढोलक झाल मजीरा के साथ उम्मीदवार गांव-गांव के हर टोला मोहल्ले में पहुंचे थे। भोजपुरी गीत संगीत गाकर गायक प्रत्याशी का प्रचार करते थे। उसके बाद हंटर जीप व अंबेस्डर कार का जमाना आया। यहां तक सब ठीक ठाक चलता रहा। पहले प्रचार में निकले कार्यकर्ता आमने-सामने पड़ने पर एक दूसरे का हाल चाल पूछते थे। अब तो आमने-सामने पड़ने पर नारे लगाने लगते हैं। लोग चुनाव को लेकर एक-दूसरे से अब आपस में बात करने से परहेज करते हैं। अब चुनाव को लेकर बातचीत से आपसी कटुता बढ़ जाती है।