मजहब नहीं सिखाता बैर करना.. मुस्लिम युवक ने रोजा तोड़ बचाई तीन साल की हिंदू बच्ची की जान
धर्म और मजहब को लेकर नफरत फैलाने वालों के बीच कुछ एेसे लोग भी हैं जिनके लिए धर्म से बड़ी मानवता की रक्षा करना है। गोपालगंज के एक युवक ने ये साबित किया है। जानिए पूरी कहानी...
मनोज उपाध्याय, गोपालगंज। तीन साल की निष्ठा थैलीसीमिया से पीडि़त है। शुक्रवार को पूरा देश थैलीसीमिया दिवस पर इस रोग से पीडि़त लोगों के लिए दुआएं मांग रहा था वहीं उचकागांव प्रखंड के कैथवलिया गांव में उज्जवल सिंह सुबह अपनी मासूम बच्ची की अचानक तबीयत बिगडऩे से परेशान हो रहे थे। आनन-फानन वे बच्ची को सदर अस्पताल ले गए तो जांच के बाद चिकित्सकों ने तुरंत ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई।
डॉक्टरों की बात सुनकर खून के लिए उज्जवल ब्लड बैंक गए तो वहां निराशा हाथ लगी। निराश होकर वे अस्पताल लौटे तो सामने वकार खड़े थे। जंगलिया मोहल्ला निवासी इंजीनियर इस युवक ने रोजा रखा है। उज्जवल से उन्होंने रक्तदान की इच्छा व्यक्त की और बताया कि रमजान चल रहा है, रोजा रखा है पर बच्ची की जान बचाना ही उनके लिए बड़ी इबादत है।
शुक्रवार को अचानक बच्ची की हालत खराब होने पर सदर अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया था। लॉकडाउन के कारण ई गई मासूम को खून न मिलने की जानकारी रोजा रखे इंजीनियर वकार अहमद को मिली तो वे भागकर हॉस्पिटल पहुंच गए और अल्लाह का नाम लेते हुए रोजा तोड़कर खून दान किया जिससे बच्ची के स्वजनों की चिंता दूर हुई। उन्होंने नम आंखों से वकार का शुक्रिया अदा किया। बच्ची की हालत में अब सुधार हो रहा है।
बच्ची के पिता की अनुमति के बाद वकार ने जूस पीकर रोजा तोड़ा और अस्पताल की पैथॉलाजी में रक्तदान के लिए पहुंच गए। रक्तदान करने के बाद उन्होंने कहा कि धर्म से बड़ा इंसानियत का मजहब है। संकट में हर किसी को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए।
बता दें कि लॉकडाउन की वजह से डोनर नहीं आ रहे, कैंप नहीं लग रहे इसलिए ब्लड बैंकों में रक्त की कमी हो गई है। डिस्ट्रिक ब्लड डोनर कमेटी (डीबीडीटी)से फोन आया तो मैंने तुरंत रेस्पांस दिया। रक्तदान से बड़ा कोई काम इंसान के जीवन में नहीं है। सभी को रक्तदान करना चाहिए। इस मौके पर डीबीडीटी के सदस्य परवेज आलम और अनस सलाम ने बताया कि जिले में जब कभी ऐसा संकट होता है, कम से कम तीन डोनर मदद को एक साथ पहुंचते हैं।