मुआवजा की उम्मीद में तरस गई कटाव पीड़ितों की आंखें
गंडक नदी के कटाव बर्बाद हुए लोगों की पुर्नवास की आस डेढ़ दशक के बाद भी पूरी नहीं हो सकी है।
गोपालगंज। गंडक नदी के कटाव बर्बाद हुए लोगों की पुर्नवास की आस डेढ़ दशक के बाद भी पूरी नहीं हो सकी है। हालांकि इस बीच इन्हें कई बार बसने के लिए ठौर उपलब्ध कराने का आश्वासन मिलता है। लेकिन यह आश्वासन अभी तक पूरा नहीं हो सका है। ऐसे में गंडक नदी में आई बाढ़ तथा कटाव से विस्थापित ढाई हजार परिवार के सदस्य तटबंध के किनारे की झोपड़ियां डाल कर जीवन बसर कर रहे हैं।
जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी तय करने पर उत्तर दिशा में स्थित जादोपुर बाजार। यहां पहुंचते ही कटाव पीड़ितों की दशा स्पष्ट रूप से दिखने लगती है। सारण मुख्य तटबंध के किनारे शरण लेने को विवश इन परिवारों को कई बार सरकारी स्तर पर आवास उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया गया। इनके पुनर्वास के लिए इंतजाम करने की घोषणा भी की गई। लेकिन डेढ़ दशक बाद भी विस्थापितों को बसने के लिए ठिकाना मिल सका। हालांकि इस बीच विस्थापित अपनी समस्या को लेकर कई बार सड़क पर भी उतरते। लेकिन सड़क पर उतरने का नतीजा भी कुछ नहीं निकला। इनसेट
झेल रहे विपन्नता की मार
गोपालगंज : सारण मुख्य तटबंध से लेकर छरकी व आसपास के इलाकों में जहां तहां शरण लेने वाले 13 पंचायतों के करीब ढ़ाई हजार लोग कभी खाते पीते परिवार में गिने जाते थे। अस्सी के दशक तक दियारा इलाके की पहचान अच्छी खेती व अन्न की उपज के लिए थी। लेकिन अस्सी के दशक के बाद गंडक नदी के कहर ने इन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। गंडक की तबाही के शिकार हुए यहां के करीब अस्सी प्रतिशत लोग आज मेहनत मजदूरी कर जैसे-तैसे जीवन यापन करने को विवश हैं। इनसेट
पांच प्रखंडों के लोग प्रभावित
गोपालगंज : कटाव की त्रासदी के कारण जिले के चौदह प्रखंडों में से छह प्रखंड कुचायकोट, गोपालगंज, मांझा, बरौली, सिधवलिया तथा बैकुंठपुर प्रखंड प्रभावित हैं। लेकिन इनमें से गोपालगंज, मांझा, बैकुंठपुर, बरौली तथा कुचायकोट प्रखंडों के कई गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इनसेट
समाप्त हो चुका है 18 गांवों का अस्तित्व
गोपालगंज : कटाव के कारण अबतक के आंकड़ों के अनुसार छोटे बड़े 18 गांवों का अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। इनमें रजवाहीं, टोंक बैरियां, सहडीगरी, खाप मकसूदपुर, सेमरियां, मुसहर टोली, निरंजना, भोजुली, नया टोला जैसे गांव शामिल हैं।