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संरक्षण बिना सूखा जलाशय का जल, कैसे बचेगा जीवन कल

संरक्षण के अभाव में शिवाला मंदिर स्थित 250 साल पुराना तालाब सूख चुका है। अब महिला पुरुष सुबह-शाम तालाब किनारे टहलने नहीं आते। छठी मईया को अ‌र्घ्य देने के लिए भी व्रती यहां अब नहीं जुटतीं। फल्गु नदी से बालू के नियमित उठाव को तालाब सूखने और जल स्तर नीचे जाने का कारण मानते हैं। कारण जो भी हो प्रशासन को तालाब के संरक्षण के लिए समय रहते कदम उठाने की जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ तो अस्तित्व मिट जाएगा और लोग पानी के लिए तरसेंगे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Jul 2019 09:55 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jul 2019 09:55 PM (IST)
संरक्षण बिना सूखा जलाशय का जल, कैसे बचेगा जीवन कल
संरक्षण बिना सूखा जलाशय का जल, कैसे बचेगा जीवन कल

गया । संरक्षण के अभाव में शिवाला मंदिर स्थित 250 साल पुराना तालाब सूख चुका है। अब महिला पुरुष सुबह-शाम तालाब किनारे टहलने नहीं आते। छठी मईया को अ‌र्घ्य देने के लिए भी व्रती यहां अब नहीं जुटतीं। फल्गु नदी से बालू के नियमित उठाव को तालाब सूखने और जल स्तर नीचे जाने का कारण मानते हैं। कारण जो भी हो, प्रशासन को तालाब के संरक्षण के लिए समय रहते कदम उठाने की जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ तो अस्तित्व मिट जाएगा और लोग पानी के लिए तरसेंगे।

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कभी शान शौकत और आदर के साथ रानी तालाब के नाम से जाना जाता था। रानी भुनेश्वरी देवी ने शिवाला मंदिर और तालाब की देखरेख के लिए 22 एकड़ जमीन दान में दी थी। देखरेख के एक माली को रखा गया था। तालाब के पश्चिम किनारे पर एक बड़ा बगीचा था। बगीचे का पटवन इसी तालाब से होता था। संध्या के समय खिजरसराय में ठहरने वाले राजे रजवाड़े इसमें सपरिवार सैर सपाटे को लेकर तालाब पर आया करते थे।

कालक्रम के साथ सब नष्ट होता रहा। स्थानीय ग्रामीण बिट्टू माहुरी बताते हैं, तालाब के जीर्णोद्धार के लिए कुछ वर्ष पहले काम हुआ था। पंचायत द्वारा भी योजनाएं बनी थीं, लेकिन जीर्णोद्धार का काम नहीं हो सका। फलत: यह सूखे गड्ढे बनकर रह गया।

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अतिक्रमण कर बन गई इमारतें

तालाब के दो तरफ अतिक्रमण कर लोग इमारतें बना लीं। लोगों का कहना है कि अतिक्रमण से पूरे तालाब के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है। जल्द अतिक्रमण से नहीं बचाया गया तो आने वाले समय में तालाब का अस्तित्व मिट जाएगा। अब इसका रकबा भी घट गया है। अधिकारी सबकुछ जानकर अनजान बने हैं।

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सरकारी भूखंड घोषित

मंदिर के संरक्षक जगतकिशोर शर्मा बताते हैं, तालाब ढाई सौ वर्ष पुराना है। जमींदारी के समय में यह राज घराने के सैर सपाटे और सिंचाई के उपयोग में लाया जाता था। स्थानीय लोगों द्वारा सिंचाई के उपयोग के अलावा पवित्र आस्था के साथ स्नान कर पूजा पाठ का भी केंद्र था। छठ पर्व अ‌र्घ्य दिया जाता था। बाद में उक्त जमीन को सरकारी भूखंड घोषित कर दिया गया है।

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जागरुकता अभियान चलाने की जरूरत

जल संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष प्रभाकर कुमार ने बताया कि अगर जल्द ही सरकार द्वारा जल संचय के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले दिनों में लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरसेंगे। लोगों को खुद जल संचय करने के लिए प्रयास करना होगा। सबमर्सिबल पंप से भूमिगत जल निकलने के कारण पानी की बर्बादी होती है। जल संचय को लेकर जागरुकता अभियान चलाने की जरूरत है।

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स्थानीय प्रशासन व लोग

बचाने को आए थे आगे

वैसे तो इस तालाब को आसपास के लोगों ने काफी अर्से से अतिक्रमण कर रखा था। इस तालाब को कूड़े का डंपिग यार्ड बना दिया गया था। पिछले वर्ष एसडीएम मनोज कुमार, डीएसपी रमेश दुबे और व्यवसायी वर्ग के कुछ युवाओं के प्रयास से इस तालाब का जीर्णोद्धार किया गया। खोदाई के दौरान अचानक उसमें भूमिगत जल भी निकल आया था। स्थानीय लोगों द्वारा चंदा कर पूरे तालाब की घेराबंदी कर एक नया रूप दिया गया।


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