Political News: ज्ञान की नगरी के वोटरों को नहीं भाया तीसरा मोर्चा, रालोसपा की झोली रह गई खाली
बिहार विधानसभा चुनाव में यूं तो तीसरा मोर्चा हर जिले में विफल रहा। लेकिन गया जिले में रालोसपा के लिए परिणाम बेहद निराशाजनक रहा। कभी नीतीश और भाजपा के साथ रहे उपेंद्र कुशवाहा के लिए यह परिणाम हताशा भरा रहा।
जेएनएन, गया। इस बार के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) का परिणाम कई दलों के लिए काफी निराशाजनक रहा। खासकर तीसरे मोर्चे (Third Front) को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया। गया जिले की बात करें तो उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के नेतृत्व वाला थर्ड फ्रंट कहीं मुख्य मुकाबले में भी नहीं रहा। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा (RLSP)एक समय में राजनीति के अंदर अच्छी पकड़ रखने के लिए जानी जाती थी। लेकिन आज वह जमीन पर लेटी हुई नजर आती है। इस बार राजनीतिक दलों ने कई हथकंडे अपनाए। नया गठबंधन किया। कई दलों के लिए तो यह फायदेमंद रहा। लेकिन कइयों को जबरदस्त निराशा हाथ लगी। कुछ ऐसा ही उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव के साथ हुआ।
किसी सीट पर मुख्य मुकाबले में भी नहीं रहे रालोसपा प्रत्याशी
इस बार पार्टी ने गया जिले में 5 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारे। युवा चेहरों को प्रत्याशी बनाया। लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हो सकी। यहां तक कि वह अपने प्रतिद्वंद्वी से भी कोसों दूर रह गए। गया टाउन विधानसभा सीट से रणधीर केसरी ने चुनाव लड़ा हालांकि वे हार गए। इनके बड़े नेता खुद को आम जनहित के मुद्दों की लड़ाई लड़ने वाला बताते रहे हैं। लेकिन जब बात जनहित के मुद्दे वोट में परिणत होने की होती है तो वह कहीं नहीं दिखाई पड़ती। कम से कम इस बार के चुनाव में तो यही हुआ। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में राज्य मंत्री बनकर अपना योगदान दे चुके उपेंद्र कुशवाहा ने जब से एनडीए को छोड़ा उनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। एनडीए से अलग होने के बाद वे महागठबंधन में शामिल हुए। लेकिन चुनाव आते-आते उनका रास्ता वहां से निकल कर एक तीसरे फ्रंट की ओर चला गया। टिकट बंटवारे के समय तक रालोसपा के जमीनी नेताओं को उम्मीद थी कि उनके सीनियर नेता महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ेंगे। शायद अधिक से अधिक सीटें उनके दलों को प्राप्त भी हो।
एनडीए को छोड़ा फिर महागठबंधन से अलग हो ओवैसी के साथ बनाया मोर्चा
रालोसपा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ तीसरा मोर्चा ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट में शामिल हो गई। ओवैसी की खुद की पार्टी को तो इस बार के चुनाव में अच्छी जीत मिली। लेकिन रालोसपा के लिए कुछ भी हासिल नहीं हुआ। अब रालोसपा नेता खुद को यह कह कर संतोष जता रहे हैं कि उनकी टिकट पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को कम्युनिस्ट पार्टी से अधिक वोट मिले। एनडीए खासकर जदयू के नेताओं को हराने में बड़ी भूमिका निभाई।
जनता के मुद्दे उठाते हैं हम
रालोसपा के नेता जनहित के मुद्दों को लेकर आंदोलनरत रहने की बात करते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था के मुद्दे पर मौजूदा नीतीश सरकार को घेरते हैं। आने वाले समय में रालोसपा की राजनीति क्या होगी, इस पर एक बड़े नेता ने कहा कि राजनीति संभावनाओं का खेल है।