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मांदर की थाप से गूंजने लगे कैमूर पहाड़ी पर बसे गांव, आज आदिवासी करेंगे करमा एकादशी की पूजा

करमा एकादशी की पूर्व संध्‍या से ही नौहट्टा प्रखंड क्षेत्र में कैमूर पहाड़ी पर स्थित गांव समेत मैदानी इलाकों के जनजाति टोले पर मांदर की थाप गूंजने लगी। वैसे वनवासियों ने करमा एकादशी का पारंपरिक पर्व मनाना बुधवार से ही शुरू कर दिया।

By Prashant KumarEdited By: Published: Fri, 17 Sep 2021 01:19 PM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 01:19 PM (IST)
मांदर की थाप से गूंजने लगे कैमूर पहाड़ी पर बसे गांव, आज आदिवासी करेंगे करमा एकादशी की पूजा
करमा एकादशी पर मांदर बजाते आदिवासी। जागरण आर्काइव।

संवाद सूत्र, नौहट्टा (भभुआ)। करमा एकादशी की पूर्व संध्‍या से ही नौहट्टा प्रखंड क्षेत्र में कैमूर पहाड़ी पर स्थित गांव समेत मैदानी इलाकों के जनजाति टोले पर मांदर की थाप गूंजने लगी। वैसे वनवासियों ने करमा एकादशी का पारंपरिक पर्व मनाना बुधवार से ही शुरू कर दिया, लेकिन करमा की विशेष पूजा शुक्रवार को की जाएगी। इसको लेकर सभी उम्र के लोग बड़े ही उत्साहित हैं। सभी इस पर्व की तैयारी में जुट गए हैं। आदिवासी करमा एकादशी पर धूमधाम से कई प्रकार के कार्यक्रम करते हैं। गुरुवार की सुबह से ही गांव की महिलाएं जंगल में जाकर मांदर की थाप पर नृत्य करते हुए करम, भेला व छेतार के पौधे को निमंत्रण दे शाम में तीनों पौधों को अखाड़े पर लाकर पूजा शुरू की।

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  • गांव की महिलाओं ने जंगल में जाकर करम, भेला व छेतार के पौधे को दिया निमंत्रण
  • आज आदिवासी करेंगे करमा एकादशी पर्व का पारंपरिक विशेष पूजन

मांदर की थाप पर पारंपरिक गीत गूंज रहा है। करमा एकादशी का त्योहार का विशेष पूजन भादो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है और दूसरे दिन द्वादशी तिथि को विसर्जन के बाद संपन्न होता है। इस त्योहार के अवसर पर मांदर की थाप पर मनमोहक नृत्य संगीत का आनंद लेने के लिए बड़ी तदात में दूर दराज से लोग पहाड़ी गांव में पहुंचते है। पुरुष समूह व महिला समूह हार जीत का भाव लेकर गायन एवं नृत्य प्रस्तुत करता है।

बता दें कि आदिवासियों के लिए यह प्रसिद्ध त्योहार है। त्योहार मनाने के लिए पहाड़ी पर स्थित गांवो के 33 अखाड़ो में कार्यक्रम की तैयारी की गई है। अखाड़े पर महतो द्वारा तीनो पौधा पूजा के बाद राजा करमा व धर्मा की कथा सुनने की परंपरा है। करम, भेला व छेतार के साथ साथ झूर की भी पूजा करने की परंपरा रही है। अखाड़ों पर निमंत्रण मिलने के बाद झारखंड, अरुणाचल, आसाम, आंध्रप्रदेश से भी लोग अपने पूर्वजों की इस धरती पर विशेष पूजन में शामिल होने आते है।


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