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बेरोजगारी ने उत्‍पन्‍न की आर्थिक तंगी, बेहाल हो रहे प्रवासी मजदूर, कोरोना काल ने छीन लिया रोजगार

कोविड 19 के भारत आगमन ने कितने गरीबो की रोजी रोटी छीन लिया है। दूसरे प्रदेशो में परिवार संग रहकर कमाई करने वाले ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश युवा मज़दूर अब गांव घर पर रहकर बेरोजगारी का दंश झेलने को विवश हैं।

By Prashant KumarEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 04:42 PM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 04:42 PM (IST)
वारिसलीगंज(नवादा) में सीमेंट गोदाम के पास काम की तलाश में खड़े प्रवासी मजदूर। जागरण।

[अशोक कुमार] नवादा। कोविड 19 के भारत आगमन ने कितने गरीबो की रोजी रोटी छीन लिया है। दूसरे प्रदेशो में परिवार संग रहकर कमाई करने वाले ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश युवा मज़दूर अब गांव घर पर रहकर बेरोजगारी का दंश झेलने को विवश हैं। इन प्रवासी बेरोजगार युवाओ के लिए क्षेत्र में इस प्रकार का कोई रोजगार नहीं है, जिससे इनका आर्थिक तंगी दूर हो सके। आठ माह पहले की कमाई से किया गया बचत कोरोना काल में जीविका का साधन बन गया।

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युवाओं के सामने रोजगार की समस्‍या

इतने दिनों तक बेरोजगारी झेल चुके युवाओं के समक्ष अब रोजगार की आवश्यकता आन पड़ी है। पास न तो पैसे हैं और न हीं कमाई का कोई कारगर संसाधन, फलतः प्रखंड के कुछ गांवो के बेरोजगार प्रवासी युवा पैसे  कमाने के लालच में ठगो के नेटवर्क से जुड़ रहे हैं। नौ माह पूर्व तक देश के महानगरों में मिहनत मज़दूरी करने वाले हुनरमंद प्रवासी मज़दूरों को अब कमाई के लिए मिट्टी गारा समेत गोदामो में माल लोड और अनलोड करने का काम भी मुश्किल से मिल पा रहा है। हालात यह है कि मज़दूरी के लिए इन्हें भटकना पड़ रहा है। वारिसलीगंज रेलवे रैक प्वाइंट से जुड़े गोदामो के पास दर्जनों प्रवासी काम की तलाश में भटकते नज़र आते हैं। क्षेत्र में कोई कल कारखाना नहीं रहने के कारण हुनरमंद मज़दूरों के पास काम का आभाव है। लग्न और दीपावली के आसपास कुछ हुनरमंद कामगार प्रवासियों को अच्छी किस्म की पेंटिंग के साथ ही फर्नीचर, सोफा आदि का काम मिला जो बहुत ज्यादा स्थाई नहीं हो सका।प्रदेशो में 12 घंटे मिहनत करने वाले कुछेक कुशल मज़दूर का ध्यान भटकने लगा है। फलस्वरूप प्रखंड के उत्तरी क्षेत्र में पड़ने वाले गांव के कुशल प्रवासी मज़दूर अपनी कार्यकुशलता को भूलकर अब ठगों के नेटवर्क से जुड़ रहे हैं।

मनरेगा के पास कुशल मज़दूरों के काम का है आभाव

वैसे तो खासकर मज़दूरों के लिए केंद्र प्रायोजित मनरेगा में अकुशल मज़दूरों के लिए काम होता है। परंतु कोरोना काल मे कार्य काफी दिनों तक बंद रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में संचालित मनरेगा के पास भी कुशल मज़दूरों के लिए कार्य का अभाव है। इस संदर्भ की बातचीत में मनरेगा के परियोजना अधिकारी निरंजन कुमार कहते हैं कि मनरेगा से कम पाने के इक्छुक मज़दूरों के पहले पीआरएस के पास आवेदन देना होता है जिसके तहत उन्हें उनके लायक काम दिया जाता है।कहा गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में धान की कटनी अंतिम चरण में है। अब कुछ स्थानों पर मिट्टी कटाई का कार्य शुरू हुआ है लेकिन कुशल मज़दूर मिट्टी का कार्य नहीं कर पाते हैं। कुछ पंचायतों में पशु शेड निर्माण का कार्य के साथ ही नाली गली ओ इंट सोलिंग आदि का कार्य चल रहा है। जैसा कि बरनावा पंचायत में फिलहाल प्लांटेशन का कार्य में कई प्रवासियों को काम मिल रहा है।

क्या कहते हैं मज़दूर

दूर दराज के प्रदेशो में कार्य करते क्षेत्र के कम पढ़े लिखे युवाओ में भी स्किल डेवलपमेंट हो चुका है। इन्हें अगर सही प्लेटफार्म मिले तब अच्छी कारीगरी का नमूना ईजाद कर सकते हैं। लेकिन संसाधनों की कमी से वे बेरोजगार होकर घर बैठे हैं। प्रखंड के मकनपुर ग्रामीण प्रवासी युवा सुनील कुमार, मुकेश कुमार, सुमित कुमार, संजय कुमार आदि कहते हैं कि दिल्ली, पंजाब,हरियाणा, सूरत, मुंबई, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़ आदि स्थानों पर काफी समय रहकर हम लोग कई क्षेत्र में कारीगरी सिख चुके हैं। लेकिन संक्रमण के भय से जैसे तैसे घर पहुंचे, जहां फिलहाल जाने का इरादा नहीं है। हलांकि दूसरे प्रदेशों के ईंट भट्ठा पर कार्य करने वाले मज़दूरों का चोरी छिपे पलायन इस बार भी करवाया गया है।


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