कुआं है जल संरक्षण का महत्वपूर्ण स्रोत, अब मिटता जा रहा अस्तित्व, बचाने की जुगत में लगे प्रबुद्धजन
नगर परिषद द्वारा निजी की बात कौन कहे सार्वजनिक कुओं तक की सफाई नहीं कराई जाती है न उसके ऊपर जाली लगाई जाती है। शहर के कर्मा रोड स्थित शिव मंदिर के पास काफी पुराना कुआं है। कुआं का उपयोग पूजा करने से लेकर पीने के लिए किया जाता था।
जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। कुआं जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। लगभग तीन दशक पूर्व तक अधिकांश गांवों में पेयजल एवं सिंचाई के लिए सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले कुआं का वजूद समाप्ति के कगार पर आ गया है। सुविधाभोगी जनमानस को रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी खींचना अब मुसीबत लगने लगा है।
अधिकांश लोग चापाकल व सबमर्सिबल पर निर्भर हो गए हैं। शहर की बात तो दूर गांव में भी लोग अब नल पर निर्भर होने लगे हैं। शहर के कुछ कुआं में जल स्तर अच्छा है लेकिन जागरूकता के अभाव में वे गंदगी के पर्याय बन गए हैं। सरकारी भवन परिसर में स्थित कुआं का अस्तित्व तो पहले ही समाप्त कर दिया गया। सदर प्रखंड के आनंदपुर गांव के पास स्थित तालाब की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है। तालाब का जलस्तर नीचे चला गया है। तालाब की दीवारें जर्जर हो गई है। ग्रामीण वीरेंद्र कुमार सिंह, धीरेंद्र कुमार, सत्यविजय ङ्क्षसह ने बताया कि कुआं से ग्रामीण प्यास बुझाते थे। इसी कुआं के पानी से ग्रामीण मंदिर में पूजा-पाठ करते थे परंतु अब घर से पानी लाना पड़ रहा है। जीर्णोद्धार पर किसी का ध्यान नहीं है। कुआं पहले प्रत्येक घर की जरूरत थी परंतु अब इसके अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडरा रहा है।
नप की अपेक्षा का शिकार हुआ कुआं
नगर परिषद द्वारा निजी की बात कौन कहे सार्वजनिक कुओं तक की सफाई नहीं कराई जाती है न उसके ऊपर जाली लगाई जाती है। शहर के कर्मा रोड स्थित शिव मंदिर के पास काफी पुराना कुआं है। पहले इस कुआं का उपयोग पूजा करने से लेकर पीने के पानी के लिए की जाती थी। कुआं गंदगी और बदबू का प्रयाय बन चुका है। यह सिर्फ कूड़ादान बनकर रह गया है। लोग इसमें अपने घर का कचड़ा फेंकते हैं। नागरिक विजय सिंह, अमित कुमार, शशिरंजन सिंह ने बताया कि इस पानी का लेयर नीचे जाने से पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है। कुआं का अस्तित्व समाप्त होने से कोई विकल्प नहीं बचा है।
जनप्रतिनिधियों ने नहीं दिया ध्यान
शहर के दर्जनों कुआं मृतप्राय है, लेकिन इनके जीर्णोद्धार के प्रति कोई सजग नहीं है न तो जनप्रतिनिधि न ही अधिकारी। सरकार द्वारा जनप्रतिनिधियों के माध्यम से जनहित में कई लाभकारी योजनाएं चलाई जा रही है। परंतु उस फंड का उपयोग करने के लिए इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। जिस कारण कुआं का अस्तित्व समाप्त होते जा रहा है।
जल संरक्षण को जरूरी है कुआं
नागरिकों की माने तो एक जमाने में कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन होता था। तपती धूप में कुआं मुसाफिरों के लिए पानी पीने का एक मात्र जरिया हुआ करता था। फ्रिज युग से पहले कुआं के पानी को ठंडा जल स्त्रोत माना जाता था। वर्षों पहले लोग कुआं जनहित में खुदवाते थे। पूरे गांव के लोगों के लिए कुआं खेतों की सिंचाई, स्नान व पीने के लिए पानी का महत्वपूर्ण साधन था परंतु अब यह सपना मात्र रह गया है। उपेक्षा के कुआं का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।
कुएं के पानी से होती थी पूजा
हमारे पूर्वज जल संरक्षण के लिए कुआं खुदवाते थे। हर गांव में 10 से 15 कुआं होता था। आज स्थिति यह है कि गांव में एक-दो कुआं मिल जाए तो समझे की जल संचय की दिशा में अब भी ग्रामीण जागरूक हैं। पहले कुआं के पानी से भोजन बनाने, पानी पीने एवं पूजा करने काम होता था। हमारी संस्कृति कुआं की पानी को शुद्ध मानती है। छठ व्रत के दौरान व्रती कुआं के पानी से ही प्रसाद बनाती हैं। कुआं की पानी के लिए भटकना पड़ता है। दूर से पानी लाना पड़ता है। अगर तालाब की स्थिति ठीक रहती तो पानी के लिए व्रती को भटकना नहीं पड़ता। यह सब देखते हुए भी अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है।