'राम' दे रहे अब्दुल रज्जाक को रोजगार, गया में बहुरुपिए की कहानी सुन हो रही वाह-वाह
आज के तेजी से बदलते दौर और इंटनेट की दुनिया में बहुत कुछ पीछे छुटता जा रहा है। कई कला दम तोड़ने लगी है। बहरुपिया कला भी उन्हीं में शामिल है। लेकिन गया के अब्दुल रज्जाक इस पारंपरिक कला के जरिए अपने परिवार चला रहे हैं।
संवाद सूत्र, टनकुप्पा(गया)। मेरा नाम जोकर फिल्म का वो गाना जाने कहां गए वो दिन के बीच के अंतरा में यह भी आता है कि बहुरुपिया रूप बदलकर आएगा। भले ही आज हालीवुड व वालीवुड, यूट्यूब, इंस्टाग्राम के चकाचौंध के सामने बहुरुपिया कला ही लुप्त होता जा रहा है। लेकिन गया जिले में टनकुप्पा प्रखंड अंतर्गत बीथोशरीफ गांव का एकमात्र परिवार बहुरुपिया कला को जीवंत रखे हुए है। यह परिवार अब्दुल रज्जाक का है। अब्दुल के चारों भाई भी बहुरुपिया बनकर आजीविका चला रहे हैं। श्री राम, बजरंग बली, भगवान शिव, रावण, राक्षस, जोकर व अन्य पात्रों के वेश धरकर सभी भाई डगर-डगर घूमते हैं। खुश होकर कोई अनाज तो कोई पैसे दे देता है। जिससे ये अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। अब्दुल रज्जाक ने अपना नाम अनिल रखा है और इसी नाम से ज्यादा जाने जाते हैं। इनके भाइयों के नाम भी गुड्डू व पप्पू सरीखे हैं। जिससे इनके धर्म का बोध नहीं होता।
राजस्थान से आये थे अब्दुल रज्जाक के पूर्वज
आज भी बाजार में बहुरुपिया वेश बदलकर लोगों का मनोरंजन करते नजर आ जाता है। बहुरुपिया द्वारा भगवान का रूप बनाकर कला पेश करने से समाज व लोगों में काफी परिवर्तन आया है। उस कला को लोग सम्मान देते हैं। सरकार द्वारा किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलने के कारण बहुरुपिया का दल अब धीरे धीरे सिमटता जा रहा है। गया जिले के बीथोशरीफ का रहने वाला अब्दुल रज्जाक उर्फ अनिल बहुरुपिया इस धंधा में जुड़ा हुआ है।
अब्दुल ने बताया कि यह हमारा खानदानी पेशा है।
हम लोग मूलतः राजस्थान के रहने वाले हैं। हमारे दादा, परदादा राजस्थान से आकर बिहार के गया जिले के बीथोशरीफ गांव में रहने लगे। तब से आज तक हमलोग यही है। अब्दुल चार भाई है। सभी बहुरुपिया का काम करते हैं। इस कला से जो भी आमदनी होती है। उससे परिवार का भरण पोषण होता है।सभी स्वजन एक साथ एक घर में रहते हैं। बहुरुपिया ने बताया कि सरकार द्वारा अब तक कोई सहारा नहीं दिया गया है। अभी भी कच्चे मकान में रहते हैं।