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वैदिक रहस्यों को समेटे दुलर्भ पांडुलिपियों का अस्तित्व खतरे में

फोटो- 41 42 -मविवि केंद्रीय मन्नुलाल पुस्तकालय में रखी हैं दुलर्भ हस्तलिखित पांडुलिपियां -एक भी पांडुलिपि की नहीं हो सकी माइक्रो फिल्मिंग ------ -2012 में बनी थी माइक्रो फिल्मिंग की योजना -87 लाख रुपये डिजिटाइलेजेशन पर पूर्व में व्यय किए जाने की बात सामने आई थी -1.50 लाख से अधिक पाठ्यक्रम से संबंधित और शोध में सहायक पुस्तक -25 सौ दुलर्भ हस्तलिखित पांडुलिपियां भी यहां मौजू ---------

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 08:54 PM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 08:54 PM (IST)
वैदिक रहस्यों को समेटे दुलर्भ पांडुलिपियों का अस्तित्व खतरे में
वैदिक रहस्यों को समेटे दुलर्भ पांडुलिपियों का अस्तित्व खतरे में

विनय कुमार मिश्र, बोधगया

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अपने शहर में पांडुलिपियों का एक अद्भूत संसार है। यहां मौजूद सैकड़ों पांडुलिपि आपकी जिज्ञासा को शांत कर सकती है। दुख की बात है कि इसे बेहतर ढंग से सहेजने और रख-रखाव के प्रति सजग नहीं है। महज औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं कि मगध विश्वविद्यालय के केंद्रीय मन्नुलाल पुस्तकालय की। जहां यूं तो डेढ़ लाख से अधिक छात्रों के पाठ्यक्रम से संबंधित और शोध में सहायक पुस्तकों का भंडार है। इसी पुस्तकालय में लगभग ढाई हजार दुलर्भ हस्तलिखित पांडुलिपियां भी है। इसमें विद्वानों ने देश के प्राचीन वैदिक रहस्य को ताम्रपत्र, भोजपत्र, बांस पत्र, कागज व केले के पत्ते पर अपनी बौद्धिक क्षमता को प्रदर्शित किया है, जो वर्तमान में कांच और लकड़ी के बक्से में रसायनिक लेप लगाकर रखा है।

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सात वर्ष में भी

नहीं पूरी हुई योजना

केंद्रीय मन्नुलाल पुस्तकालय में रखी दुलर्भ पांडुलिपियों की माइक्रो फिल्मिंग की योजना वर्ष 2012 में बनी थी। तब पांडुलिपि संरक्षण संस्थान पटना के तीन सदस्यीय दल सहायक परियोजना समन्वयक विभाष कुमार के नेतृत्व में पुस्तकालय का दौरा कर सर्वे और पांडुलिपि सहित पुस्तकों को सूचीबद्ध किया था। लेकिन सात वर्ष बाद भी इसकी माइक्रो फिल्मिंग का कार्य पूरा नहीं हो सका। वर्ष 2014 में तत्कालीन कुलपति प्रो. एम. इश्तेयाक ने पुस्तकालय में एक अतिरिक्त पद का सृजन करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विवि के एक सेवानिवृत्त कर्मी को तैनात किया। जिन पर केंद्रीय पुस्तकालय का डिजिटाइलेजेशन की जिम्मेवारी थी, लेकिन कुलपति के कार्यकाल समाप्त होते हुए सृजित पद पर कार्यरत कर्मी भी स्वत: कार्य को छोड़ गए और कार्य पूर्ण नहीं हो सका।

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1962 में मविवि को

मिला थी पांडुलिपि

मगध विश्वविद्यालय को गया के मन्नुलाल महाजन ने दुलर्भ हस्तलिखित पांडुलिपियों को सौंपा था। शायद उनके जेहन में यह रहा होगा कि उच्च शिक्षा के केंद्र में इन पांडुलिपियों का कोई न कोई कद्रदान होगा, जो इसे वर्षो सहेजने का काम करेगा। यहां मौजूद पांडुलिपियां देवनागरी और कैथी लिपि की हिंदी और संस्कृत में रचित है, जो साहित्यिक इतिहास बदलने की क्षमता रखती है।

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देखने को है, पढ़ने को नहीं

दुलर्भ पांडुलिपियां कांच और लकड़ी के बक्से में रखी है, जिसे देखा जा सकता है लेकिन पढ़ा नहीं। क्योंकि उचित तरीके से नहीं सहेजने के कारण स्पर्श मात्र से ही टूट जाते हैं। ऐसे में पांडुलिपियां महज देखने को है, पढ़ने को नहीं।

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पुस्तकालय में रखीं पांडुलिपियां बहुत ही मूल्यवान और दुलर्भ हैं। इसकी माइक्रो फिल्मिंग एक एजेंसी द्वारा पूर्व में की गई थी, लेकिन विवि के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। पुन: इसके डिजिटाइलेजेशन का प्रयास किया गया। उस क्रम में केंद्रीय पुस्तकालय के डिजिटाइलेजेशन पर पूर्व में 87 लाख रुपये व्यय किए जाने की बात सामने आई थी। इसका एक सीडी भी पुस्तकालय में उपलब्ध है, जो खुलता नहीं।

प्रो. बीआर यादव, पुस्तकालय प्रभारी


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