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बिहार के औरंगाबाद के एक गांव में दफनाए जाते हैं हिंदुओं के शव, शादी के लिए दू्ल्हे को देना पड़ता है दहेज

बिहार के औरंगाबाद में एक ऐसा गांव है जहां के हिन्दू अपनी बेटियों की शादी के लिए दूल्हे से दहेज लेते हैं। यही नहीं परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद वे शव को जलाते नहीं बल्कि उसे दफनाते हैं।

By Bihar News NetworkEdited By: Published: Sun, 29 Aug 2021 04:33 PM (IST)Updated: Mon, 30 Aug 2021 08:23 AM (IST)
बिहार के औरंगाबाद के एक गांव में दफनाए जाते हैं हिंदुओं के शव, शादी के लिए दू्ल्हे को देना पड़ता है दहेज
बिरजू राठौर का 2012 में बना कब्र। जागरण

आारंगाबाद, उपेंद्र कश्यप। बिहार के औरंगाबाद में एक ऐसा पंचायत है जहां के हिन्दू परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने के बाद अंतिम संस्कार जलाकर नहीं बल्कि शव को दफना कर करते हैं। संसा पंचायत के भुलेटन बिगहा में रहने वाले करीब एक दर्जन हिंदू परिवार ऐसे हैं ,जो मृत्यु होने पर शव का अंतिम संस्कार जलाकर नहीं बल्कि शव को दफनाते हैं। जो सक्षम परिवार होता है वह पक्का का कब्र बनाता है। ऐसा क्यों करते हैं। इसके जवाब में नागा नट बताते हैं कि उनकी यह खानदानी परंपरा है। खानदानी रिवाज जैसा है वैसा करते हैं। किसी के कहने से इस में परिवर्तन नहीं करेंगे। बताया कि उनके पिता, दादा और दादा के दादा का कब्र है।

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होली-दशहरा भी मनाते हैं

उन्होंने बिरजू राठौर का 2012 में बना कब्र भी दिखलाया। इसी के बगल में एक अन्य शव भी दफन किया हुआ दिखा। नागा नट बताते हैं कि जो सक्षम होते हैं वह कब्र बनाते हैं। अन्यथा यूं ही दफना कर छोड़ देते हैं। वो लोग ईद मुहर्रम नहीं मनाते हैं। होली दशहरा मनाते हैं। होली के मुद्दे पर कहा कि- होली तो हम ही लोगों का है। आप लोगों ने कब्जा कर रखा है। नागा नट जाति की लाठौर उपजाति से आते हैं। बिहार और भारत सरकार द्वारा जारी जातियों के वर्गीकरण सूची में नट जाति अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल किया गया है।

 बेटी का लेते तिलक, बिना ब्राह्मण विवाह

नागा नट बताते हैं कि उनके यहां लड़कियों का तिलक किया जाता है। बाल विवाह की प्रथा नहीं है। 18 से 19 वर्ष में लड़कियों की शादी करते हैं, और इसके बदले लड़के वालों से 10 से 20000 रुपये लेते हैं। इसे बेटी बेचना बताने पर वे भड़क जाते हैं और कहते हैं-आप लोग बेटा खरीदते हैं। हम बेटी नहीं बेचते। लड़कियों के लिए जो तिलक लेते हैं। उसी पैसा से नाच गाना और मांसाहारी भोजन का आयोजन करते हैं। विवाह के लिए किसी ब्राह्मण की जरूरत नहीं पड़ती है। न लग्न की जरूरत होती है। मड़वा करते हैं। लड़की को हल्दी लगाया जाता है। बारात आती है। वर-वधू का परिछावन भी किया जाता है।

खिलौना बेच कर चलाते हैं आजीविका

नागा नट का मुख्य काम खिलौना बेचना है। वह कोलकाता से खिलौना लाकर यहां बेचते हैं और मांग कर भी अपनी आजीविका के लिए आवश्यक धन इकट्ठा करते हैं। पूरा परिवार किसी तरह झोपड़ी में गुजर बसर करता है। रेपुरा निवासी शिक्षक अंबुज कुमार बताते हैं कि इस जाति में आदि मानव से संबंधित रीति रिवाज दिखता है। हिंदू होते हुए भी यह कब्र बनाते हैं। शव को दफना देते हैं। हो सकता है यह परंपरा उनके समाज में गरीबी और यायावर जीवन शैली के कारण आया होगा। आर्थिक अभाव में शव दफनाने भर आवश्यक लकड़ी और सामग्री खरीदने में सक्षम नहीं होंगे और स्थाई निवासी नहीं होने के कारण भी समस्या आती होगी। इसलिए शव को दफनाने की परंपरा इस जमात में शुरू हुई होगी और इसी सिलसिले में कोई सक्षम हो गया तो अपने परिवार के सदस्य के शव को दफना कर वहां पक्का कब्र बना देता होगा। 


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