मास्टर की मार ने औरंगाबाद की सुनीता को दिया जीवनभर का दर्द, सीएम नीतीश भी नहीं मिटा सके
Jagran Special तीन दिसंबर को विश्व निशक्तता दिवस पर जब दिव्यांग हौसला बांध रहे होंगे तब बिहार के औरंगाबाद की सुनीता अपने कर्म पर रो रही होगी। ऐसा कहना है खुद सुनीता का। उसकी उम्र लगभग 30 वर्ष है।
जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। तीन दिसंबर को विश्व नि:शक्तता दिवस पर जब दिव्यांग हौसला बांध रहे होंगे, तब बिहार के औरंगाबाद की सुनीता अपने कर्म पर रो रही होगी। ऐसा कहना है खुद सुनीता का। उसकी उम्र लगभग 30 वर्ष है। एक दशक से दिव्यांगता का लाभ लेने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही है। उसने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की। मगर आश्वासन तो मिला, लेकिन न्याय नहीं। हालात ऐसे हैं कि पोस्ट ग्रेडुएट (स्नातकोत्तर) की डिग्री होने के बावजूद सुनीता के पास न तो नौकरी है और न ही इलाज कराने के लिए रुपये। वह बार-बार 23 साल पहले का हादसा याद करती है और फफक-फफक कर रोने लगती है।
जानें क्या हुआ था 23 साल पहले
सुनीता बताती है कि वह जन्मजाम दिव्यांग नहीं थी। किस्सा लगभग 23 साल पुराना है। वह दाउदनगर प्रखंड के अंछा पंचायत के जागा बिगहा की रहने वाली है। वहीं के प्राथमिक विद्यालय की वह तीसरी कक्षा की छात्रा थी। शिक्षक ने उसकी सहेली से एक सवाल पूछा था। तब सहेली की जगह सुनीता बेंच से खड़ी हो गई और उसने जवाब बता दिया। इस पर शिक्षक आग बबूला हो गए और उसकी बुरी तरह पिटाई कर दी। इससे उसके पैर की हड्डी टूट गई।
काटनी पड़ी हड्डी और हो गई दिव्यांग
घटना के कुछ महीने बाद उसने पैर का ऑपरेशन कराया। किसी कारणवश उसके पैर की हड्डी काटनी पड़ी। इसके कारण उसका पैर छोटा हो गया। वह दिव्यांग की श्रेणी में आ गई। सुनीता ने दिव्यांगता को कभी मजबूरी नहीं समझी। वह मन लगाकर पढ़ती रही। स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उसने बीएड और एमएड की डिग्री ली। टीईटी परीक्षा भी पास की, लेकिन उसकी नौकरी नहीं लगी। आंगनबाड़ी केंद्र में सेविका की नौकरी के लिए भी उसने अर्जी दी थी। इस समस्या को लेकर 2011 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार भी पहुंची थी। हालांकि, कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला।
घुटना प्रत्यारोपण को चाहिए पांच लाख
सुनीता के पैर का घुटना भी खराब हो गया। घुटना प्रत्यारोपण के लिए उसे पांच लाख रुपयों की दरकार है। वह आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही है। दिव्यांगता का लाभ भी उसे नहीं मिलता। सुनीता की शादी हो चुकी है। लेकिन, दंपती के पास डिग्री होने के बावजूद नौकरी नहीं है। इसके कारण घर का चूल्हा जलाना तक मुश्किल है। इलाज तो दूर की बात है।