मान्यता: इस पोखर में स्नान करने से ठीक हो जाती है खुजली, करनी पड़ती खुजलिया माता की पूजा
नवादा जिले के रोह प्रखंड स्थित जलसार पोखर सिऊर में माघी पूर्णिमा पर दूर-दूर के लोग स्नान करने पहुंचते हैं। मान्यता है कि इस पोखर में स्नान करने से पुरानी से पुरानी खुजली दूर हो जाती है। लोग खुजलिया माता की पूजा भी करते हैं।
संवाद सूत्र, रोह (नवादा) । प्रखंड के जलसार पोखर, सिऊर में माघी पूर्णिमा के अवसर पर शनिवार को स्नान करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। यहां हर साल माघी पूर्णिमा के दिन लोग खुजली निवारण के लिए आते हैं। जलसार पोखर के उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर लोग खुजली निवारण के लिए स्नान करते हैं। जिस कपड़े को पहनकर स्नान करते हैं उस कपड़े को वहीं पर फेंक दिया जाता है। इस कारण यहां पुराने कपड़ों का ढ़ेर लग गया है। इसके बाद लोग तालाब के इसी किनारा पर स्थित खुजलिया माता की पूजा अर्चना के बाद अपने घर को प्रस्थान करते हैं। पूजा सामग्री व प्रसाद को भी लोग घर नहीं ले जाते हैं।
चर्मरोग से मिल जाती है निजात
मान्यता है कि जलसार पोखर में स्नान करने से पुरानी से पुरानी खुजली से मुक्ति मिल जाती है। इसी कारण हर साल माघी पूर्णिमा के दिन दूर-दूर से लोग स्नान करने के लिए आते हैं। पुरानी मान्यता के अनुसार इस क्षेत्र में आजादी के पूर्व बहुत बड़ा अकाल पड़ा था। लोग पीने के पानी के लिए तड़प रहे थे। उसी समय क्षेत्र के शासक महेश्वरी प्रसाद ने तालाब का निर्माण कराया। परंतु तालाब में पानी नहीं निकल रहा था। उसी समय वहां से साधुओं का झुंड गुजर रहा था।
राजा ने दे दी थी अपनी पुत्री की बलि
किवदंती है कि लोगों की चिंता देख साधुओं ने कहा कि अगर यहां के राजा किसी बालिका की बलि देगा तब पानी आ जायेगा। राजा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। आखिरकार उन्होंने अपनी बेटी जलसा की बलि दे दी। बलि देते ही तालाब से पानी निकलने लगा। उस दौरान तालाब में जो मजदूर काम कर रहे थे। उसमें से कुछ विभिन्न प्रकार के कुष्ट रोग से पीड़ित थे। तालाब में भीगने के बाद उन लोगों का शरीर पूरी तरह से कंचन हो गया। जलसा की बलि दिए जाने के कारण ही इस तालाब का नाम जलसार रखा गया। तब से लोग लोग यहां खुजली निवारण के लिए पहुंचने लगे। लोग कंचन काया लेकर यहां से जाने लगे। तब से ही यहां माघी पूर्णिमा के दिन बड़ी संख्या में लोग यहां स्नान के लिए आने लगे। इस दौरान यहां मेला भी लगता है। यहां बड़ी संख्या में लोग लाठी खरीदने के लिए भी आते हैं। दर्जन के हिसाब से लाठी खरीदकर ले जाते हैं।