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'पीड़ा में आंनद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला..'

फोटो-502 ---------- पद्म भूषण हरिवंश राय बचन की जयंती पर विशेष -रामनिरंजन परिमलेंदु बोले- हरिवंश राय बचन बड़े कवि के साथ बड़े इंसान भी थे -बचन पत्रों के दर्पण में संकलित किया बचन के लिखे 213 पत्र --------- -200 रुपये भेजे और नीचे में लिखा था पिताजी के लिए फल खाने हेतु यह राशि आप स्वीकार करेंगे -80 वर्षीय परिमलेंदु ने बचन के साथ बिताए पल को किया साझा --------

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Nov 2019 02:34 AM (IST)Updated: Wed, 27 Nov 2019 06:13 AM (IST)
'पीड़ा में आंनद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला..'
'पीड़ा में आंनद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला..'

कमल नयन, गया

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'पीड़ा में आंनद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला..' इन पंक्तियों से रामनिरंजन परिमलेंदु बात शुरु करते हैं। कहते हैं, हरिवंश राय बच्चन जितने बड़े कवि थे, उससे बड़े इंसान। परिमलेंदु का सानिध्य बच्चन के साथ बहुत नहीं तो दर्जनों बार दिल्ली, पटना और इलाहाबाद में होता रहा। गया के दक्षिण दरवाजा मोहल्ले में रह रहे परिमलेंदु को आज भी मधुशाला सहित अन्य कविता संग्रहों के कई पद्य कंठस्थ हैं।

वर्ष 1957 में 'नई धारा' के राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह पर अभिनंदन ग्रंथ के प्रकाशन हेतु परिमलेंदु ने बच्चन को एक कविता लिखने के लिए पहला पत्र लिखा। उस ग्रंथ के संयोजक परिमलेंदु थे। तब से पत्राचार और मिलने-जुलने का सिलसिला शुरु हुआ।

परिमलेंदु बताते हैं, '1966 में उनके पिता जगन्नाथ प्रसाद जब बीमार पड़े तो उन्होंने एक पत्र बच्चन को लिखा, जिसमें पिताजी की बीमारी का भी जिक्र किया। तब बच्चन ने मनीऑर्डर के माध्यम से दो सौ रुपये भेजे और नीचे में लिखा था पिताजी के लिए फल खाने हेतु यह राशि आप स्वीकार करेंगे।'

परिमलेंदु कहते हैं, 'जब उनकी राशि आई तो पिताजी स्वर्गवास कर गए थे। मैंने उस राशि को पुन: वापस कर उन्हें स्वीकार करने का अनुरोध किया, और भरे मन से उन्होंने एक पत्र लिखा, जिसमें दुख व्यक्त करते हुए राशि स्वीकार लेने की बात लिखी थी।'

परिमलेंदु की आंखें संस्मरण सुनाते वक्त नम हो गई। 80 वर्षीय परिमलेंदु कहते हैं, 1968 में बच्चन दिल्ली के 13, विलिंगडन क्रिसेंट में रह रहे थे। एक दिन दोनों आदमी के बीच साहित्य पर लंबी चर्चा चली। रात के साढ़े ग्यारह बज गए थे। मुझे बिड़ला कॉटन मिल के पास अपने आवास पर जाना था, तो बच्चन ने पूछा कि कैसे जाएंगे? मैंने कहा चला जाउंगा, लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं मानी और अपनी पत्नी तेजी बच्चन को कहा कि इन्हें आवास पर पहुंचा दें। तेजी बच्चन ने खुद कार ड्राइव कर मुझे घर तक पहुंचाया।

परिमलेंदु कहते हैं, 'एक लंबी अवधि तक उनसे साहित्य और घर-परिवार को लेकर पत्राचार होता रहा। इन्हीं पत्रों को संकलित कर 'बच्चन पत्रों के दर्पण में' प्रकाशित कराया। इसमें बच्चन की लिखे 213 पत्र शामिल हैं। इनमें भारतीय साहित्य और समयकाल के साथ उसके उतार-चढ़ाव का भी जिक्र है। उन पत्रों को दिल्ली के गांधी ग्रंथालय में सुरक्षित रखा गया है।'

वे बताते हैं, बच्चन को आत्मकथा लिखने के लिए मैंने कई बार कहा। उसकी महत्ता पर जोर दिया। तब उन्होंने 'क्या भूलूं, क्या याद करें' लिखी।

पद्म भूषण हरिवंशराय बच्चन के आज जन्मदिन पर परिमलेंदु पत्रों की संकलित पुस्तक को उलट-पलट कर देखते हैं। उन्हें स्मरण कर कहते हैं, 18 जनवरी 2003 को वे दुनिया से चले गए, लेकिन कविताओं के माध्यम से अमिट छाप के साथ करोड़ों दिलों में आज भी जिंदा है। 27 नवंबर 2003 को स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने हरिवंश राय बच्चन का एक डाक टिकट भी जारी किया था।

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