भाई की सुख-समृद्धि के लिए आज करमा एकादशी का व्रत रखेंगी बहनें, 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा भी
शुक्रवार को बिहार में एक साथ दो पर्व मनाए जाएंगे। हर साल की तरह इस वर्ष भी 17 सितंबर के मौके पर विश्वकर्मा पूजा का आयोजन होगा। इसके साथ ही बहनें अपने भाइयों के लिए करमा एकादशी का व्रत रखेंगी।
संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद)। शुक्रवार को ही पद्मा एकादशी है। बिहार झारखंड में इसे ही करमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। बहन अपने भाइयों के लिए इस व्रत को करती हैं। रात्रि में झुर की पूजा करती हैं। करमी और बेलोधर के पत्तों का विशेष रूप से प्रयोग करती हैं। आचार्य लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि शनिवार प्रात: 5.56 बजे से पहले पारण कर लेना चाहिए। प्रथम झुर में दही भात दाल करमी के पत्ता डालना चाहिए। झुर को विसर्जन करने के बाद घर में नली इत्यादि में दही भात डालने के बाद स्वयं करमी के पत्ता के साथ दही भात बासी भोजन करने की परंपरा है। इस दिन भोजन नहीं बनाया जाता है।
यह जानना है आवश्यक
जो केवल एकादशी व्रत करते हैं। वे मध्याह्न 12 बजे के बाद 18 सितंबर दिन शनिवार के रोटी इत्यादि से पारण करें। क्योंकि इस दिन वामन अवतार हुआ है। इसलिए इसे वामन द्वादशी भी कहा जाता है। एकादशी के पहले और दूसरे दिन भात नहीं भोजन करना चाहिए।
विश्वकर्मा पूजा आज : व्यवसाय से जुड़ा है धार्मिक महत्व
संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद)। शुक्रवार यानि 17 सितंबर को धूमधाम से विश्वकर्मा भगवान की पूजा अर्चना की जाएगी। किसी भी तरह के वाहन रखने वाले, किसी भी प्रकार के मशीनरी रखने, बिक्री करने वाले, सामग्री निर्माण से जुड़े उपकरण रखने वाले विश्वकर्मा पूजा करते हैं। यह व्यवसाय से जुड़ा धार्मिक अनुष्ठान है। आचार्य लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि विश्वकर्मा वैदिक देवता हैं। इनकी चर्चा चारों वेद में है। यज्ञ में मण्डप पूजा, कुंड पूजा एवं अरणी मंथन के समय अग्नि निकलने से पहले पूजा की जाती है। यमलोक, स्वर्गलोक, लंका, द्वारिकापुरी, सुदामा पूरी का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया है।
बताया कि कहा जाता है कि विश्वकर्मा जी के पुत्र मय ने राजा युधिष्ठिर की यज्ञ शाला का निर्माण किया था। मगध में प्रचलित कहावत है कि भगवान विश्वकर्मा जी ने एक ही रात में देव, देवकुंड और भरारी में मन्दिर निर्माण किया था। परंतु भरारी में मन्दिर निर्माण प्रारम्भ करते ही सबेरा हो गया था। अत: मंदारेश्वर महादेव का मंदिर नहीं बन सका। ऐसे भी कहा जाता है कि देव सूर्य कुंड का जल कांवर में लेकर प्रथम उमगा में और वहां से चलकर देवकुंड में जल एक ही दिन में चढ़ाने की पूर्व परंपरा मगध की थी। जो लुप्त हो गई। बताया कि विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना पहले केवल बड़ी बड़ी कम्पनियों में होती थी। परन्तु आज घर घर होने लगी है।