महिलाओं के शौर्य और वीरता का प्रतीक है रेवई का जौहर मन्दिर
राजनीतिक चेतना और विरासत से भरपूर गया जिला अंतर्गत टिकारी प्रखंड के रेवई गाव को
गया। राजनीतिक चेतना और विरासत से भरपूर गया जिला अंतर्गत टिकारी प्रखंड के रेवई गाव को सही सांस्कृतिक व पुरातात्विक पहचान न मिलने की कसक आज वहा के हर ग्रामीणों के दिल में बनी है। शायद हीं जिले का कोई ऐसा गाव होगा जिसने राजनीतिक दुनिया को स्वतंत्रता सेनानी, सासद, विधायक, विधान पार्षद दिए हों। आज के संदर्भ में देखें तो रेवई एक सामान्य गाव है। परंतु अपने आप में जो ऐतिहासिकता ये समेटा है वह उसे असाधारण बना देती है। इसके इतिहास की चर्चा की शुरूआत हम इन शब्दों में कर सकते हैं-
राजवंश ने सर्वनाश जब निश्चित जाना,
ललनाओं ने जौहर व्रत कर लेना ठाना।।
पूर्व काल से नियम था राजघरानों के लिए,
वीर नारिया जल मरी धर्म बचाने के लिए।।
नारी की वीरता, बलिदान, आन-बान, शौर्य एवं साहस का बखान करने वाली उक्त पंक्तियां टिकारी अनुमंडल मुख्यालय से 8 किलोमीटर उतर रेवई गाव में स्थित एक प्राचीन मंदिर में शिलापट पर अंकित है। यह मंदिर गाव से दक्षिण एक गढ़ पर निर्मित है जिसे 'जौहर मंदिर' के नाम से जाना जाता है। जो देश, धर्म एवं अस्मिता की रक्षा करते हुए अपनी जान की बाजी लगा आग में जल मरने वाली ललनाओं के इतिहास ही एक मात्र गवाह है।
कभी रेवल गढ़ के नाम से प्रसिद्ध रेवई एक दूर्ग था। जिसका परगना भेलावर था और परमार राजपूत वंशीय शासकों का यहा शासन था। रघुवंश सिंह हाड़ा के नेतृत्व में परमार राजस्थान से यहा वर्षो पूर्व आए थे। बताया जाता है कि मुगल शासकों ने साम्राज्य विस्तार के क्रम में 2200 घरों वाले रेवई दुर्ग पर हमला कर दिया था। तत्कालिन परमार राजा एवं उसकी सेना मुगल सेना का मुकाबला करते हुए शहीद हो गए। दुर्ग पर मुगलों का कब्जा हो गया। लेकिन हमलावर यहा के निर्दोष स्त्री-पुरुषों एवं बच्चों का भी कत्लेआम करने लगे।
परमार वंशीय राजघराने की स्त्रियों ने अपने राज्य एवं समाज की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए रणक्षेत्र में लड़ना या अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए बलिदान हो जाना हीं अपना धर्म समझा। फिर क्या था राज घराने की क्षत्राणिया मुगलों के हाथों अपमानित होने या उनकी क्रुरता का शिकार बनने के बजाय जय हर, जय हर की जयघोष करती मुगल सेना पर टूट पड़ी। धर्म एवं अस्मिता की रक्षा की इस लड़ाई में जब वीरंगनाएं असहाय व कमजोर होने लगी तो सभी क्षत्राणिया 'जौहर व्रत' का संकल्प लेते हुए प्रज्जवलित अग्नि-शिखा में कूद पड़ी अथवा सामूहिक चिताएं सजाकर जौहर की भेंट चढ़ गयी। जौहर मंदिर में लगे शिलापट पर उत्कीर्ण श्लोक की यह पंक्ति-
जाग उठी रेवई दुर्ग में जौहर की भीषण ज्वाला,
हंसती हुई धर्म-रक्षा हित कूद पड़ी क्षत्रिय बाला।
यहा की ललनाओं की वीरता का बखान कर रही है। मुगलों के जुल्मों-सितम के कारण अपने स्त्रित्व के रक्षार्थ एवं क्षत्राणी धर्म क पालनार्थ जौहर व्रत की चिता में हंसते हुए अपने प्राणों की आहुती देने वाले वीरागनाओं की याद में हीं जिस मंदिर का निर्माण किया गया, वह जौहर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। संवत 2016 इस मंदिर का जिर्णोद्धार कराया गया। मंदिर के अन्दर किले से छलाग लगाती वीरागना क्षत्रणियों का चित्र उत्किर्ण है और किले के बाहर दीवार पर आग की ज्वाला चित्राकित है।
मंदिर जिस गढ़ पर स्थित है उसकी बनावट भी कहती है कि यदि इस जगह पर वैज्ञानिक ढंग से खुदाई एवं जाच की जाए तो इतिहास की कई नई परतें खुल सकती है। ग्रामीणों का तो यह भी कहना है कि आज भी मंदिर के आस-पास जले के निशान व प्रचुर मात्रा में हडियां निकलती है। बहरहाल उपेक्षा की धुल में दबी यह ऐतिहासिक पहलू शोध का एक नया क्षेत्र खोल सकता है।