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उरांव राजाओं का धरोहर है रोहतास का यह गढ़, जनजाति के कुडुख लोकगीतों में भी है इसकी चर्चा

उरांव जनजातियों के कुडुख लोकगीतों में रोहतासगढ़ को उरांव राजाओं की धरोहर कहा गया है। इन गीतों में रोहतासगढ़ को रुइदास कहा गया है। इसके अलावा पूर्व के रोहतास और अब कैमूर जिला के पटना और निंदौरगढ़ को उरांव जनजाति आदिकाल से ही अपनी राजधानी मानते हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Thu, 22 Apr 2021 10:28 AM (IST)Updated: Fri, 23 Apr 2021 09:18 AM (IST)
उरांव राजाओं का धरोहर है रोहतास का यह गढ़, जनजाति के कुडुख लोकगीतों में भी है इसकी चर्चा
उरांव जनजाति का रोहतासगढ़ से खास रिश्‍ता। जागरण

सासाराम (रोहतास), जागरण संवाददाता। उरांव जनजातियों के कुडुख लोकगीतों में रोहतासगढ़ (Rohtasgarh) को उरांव राजाओं की धरोहर कहा गया है। इन गीतों में रोहतासगढ़ को रुइदास कहा गया है। इसके अलावा पूर्व के रोहतास और अब कैमूर जिला के पटना और निंदौरगढ़ को उरांव जनजाति आदिकाल से ही अपनी राजधानी मानते हैं। कैमूर जिले के चांद प्रखंड में स्थित यह स्थान अब पटनवां-निंदौर गढ़ के नाम से जाना जाता है। इस स्‍थान का वर्णन वाल्‍मीि‍क रामायण में भी मिलता है।  

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लोकगीतों में है प्रश्‍न और उत्‍तर

कुड़ुख (उरांव) लोकगीतों में रोहतासगढ़ के साथ पटनागढ़ की चर्चा खूब मिलती है। जनजातियों के एक लोकगीत में कहा गया है कि रुइदास पटना में सिराजलेरे मैंना, नगापुरे अंडा पाराए पाराए। या रुइदास पटना से उड़ ले रे मैना, नगापुर अंडा पराय। लोक कवि कहता है कि मैना (उरांव जाति) तुम्हारा सृजन कहां हुआ और तुमने अंडा यानी अपनी संतान कहां पैदा किया? तुम्हारा रुइदास (रोहतासगढ़) और पटना (पटनागढ़) में सृजन हुआ, और नगापुर (छोटनागपुर) में अंडा दिया यानी तुम्हारी संतति का विस्तार हुआ। उरांवों के डंडा कट्टा और करम पूजा में भी सुमिरन करते समय रुइदास और पटना का नाम आता ही है, इनके साथ हरदी नगर का भी नाम लेकर पूर्वजों को ये याद करते हैं,  ‘हरदी नगर रुइदास पटना अरा ई यांता हूं...। 

रोहतासगढ़ और पटना को आदि स्‍थान मानते हैं उरांव  

इस प्रकार उरांव अपना आदि स्थान रोहतासगढ़ और पटना को मानते हैं। रोहतासगढ़ की ख्याति आदि काल से आज तक बनी हुई है। लेकिन हरदी नगर और पटनागढ़ 2013 तक अज्ञात थे। ऐतिहासिक मामलों के अन्वेषक डॉ श्याम सुंदर तिवारी अपनी पुस्तक ‘जनजातीय मुकुट रोहतासगढ़’ पर शोध करते समय इस पटनागढ़ को ज्ञात किया था। उरांव गीतों में जिस रूप में पटनागढ़ की चर्चा है, वे सभी दृश्य यहां मौजूद हैं। कहा जाता है कि भर, जो चेरो जनजाति की ही एक शाखा थे, जब इस क्षेत्र में बलशाली हुए तो पटना और निंदौरगढ़ पर उनका अधिकार हो गया। इसके बाद पुराना राजा यहां से पलायन करने को विवश हो गए। भर राजाओं से भट्टा के राजा और जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की के सामंत रायभेद ने आक्रमण कर छीन लिया। जब सुल्तान सिकंदर को विश्वास हो गया कि रायभेद की भावनाएं शर्की सुल्तान के पक्ष में हैं तो वह 1494 ई. में रायभेद को दंड देने के लिये पटना की ओर प्रस्थान कर आक्रमण किया। रायभेद की मृत्यु हो गई और उसने पटना को जौनपुर शासन के अंतर्गत कर दिया। मध्यकालीन लेखकों ने चौंद और पटना का समानार्थी रूप से प्रयोग किया है। पटना पहाड़ी के नजदीक है, जिसका उल्लेख ‘वाक़ेआते मुश्ताक़ी’ में मिलता है। 

खंडित अवस्‍था में हैं कई प्रतिमाएं  

पटनागढ़ से पश्चिम में लगभग 200 मीटर की दूरी पर निंदौरगढ़ है, जिसे बुकानन ने निंदू राजा का गढ़ कहा है। निंदौर का गढ़ पटना के गढ़ से बड़ा है। निंदौर गांव में गढ़ से उत्तर पूरब में एक पीपल के वृक्ष के नीचे ढेर सारी हिन्दू और जैन प्रतिमाएं रखी गई हैं, जो खंडित अवस्था में हैं। एक प्रतिमा जैन तीर्थंकर की है। भर जनजाति के राजा जैन धर्म को मानने वाले थे। अतः इस क्षेत्र में जैन धर्म की प्रतिमाएं मिलती हैं। कैमूरांचल और सोन घाटी संस्कृति के शोधकर्ता डा. श्याम सुन्दर तिवारी कहते हैं कि पटना पूर्व में कुड़ुखों (उरांवों) की राजधानी थी। द्रविड़ भाषा-भाषी उरांव मूलतः कोंकण क्षेत्र के ‘किष्किंधा’ के निवासी थे। किष्किंधा, कृष्णा नदी की शाखा तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर अवस्थित था।  उरांव रामायण में वर्णित ‘किष्किंधा’ की वानरी सेना, जिसके प्रमुख सुग्रीव थे, उनके वंशज हैं। लंका युद्ध में ये भगवान श्रीराम चंद्र की सेना की मुख्य भूमिका में थे।

वाल्‍मीकि रामायण में भी है इस स्‍थान की चर्चा  

वाल्मीकि रामायण के लंका कांड के 124 वां अध्याय के अनुसार रावण विजय और लंका युद्ध की समाप्ति के पश्चात् वानरी सेना भी अपने परिवारों के संग अयोध्या को चली। इनमें से कुछ लोग तो अयोध्या तक पहुंचे, लेकिन अधिकतर वानरी संख्या नर्मदा नदी के सहारे वर्तमान मध्य प्रदेश के क्षेत्रों और फिर सोन घाटी से कैमूर पहाड़ी के आस-पास स्थित ‘करुष’ प्रदेश पहुंच गयी। वे यहां कृषि कार्य करने लगे। करुष प्रदेश में रहने के कारण ही ये अपने को ‘करख’ और बाद में ‘कुड़ुख’ कहने लगे। कुड़ुखों ने रोहतासगढ़ को खरवारों से हस्तगत कर लिया। फिर अपने शासन का केन्द्र पटनागढ़ को बनाया। इससे जुड़ी कई अन्‍य कहानियां भी हैं। 


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