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शहर से बेघर हो लौटे तो अपने प्रदेश में आने के लिए देनी पड़ी रिश्वत

दर्द भरी दास्तां -तमाम फरियाद को अनसुना कर बाहर निकाल कमरे पर मकान मालिक ने जड़ दिया ताला -गाड़ी का पास बनवा किसी तरह घर को चले तो बिहार सीमा में प्रवेश के लिए देनी पड़ी 3200 रुपये की रिश्वत ------------

By JagranEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 07:35 PM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 07:35 PM (IST)
शहर से बेघर हो लौटे तो अपने प्रदेश में आने के लिए देनी पड़ी रिश्वत
शहर से बेघर हो लौटे तो अपने प्रदेश में आने के लिए देनी पड़ी रिश्वत

देवेंद्र प्रसाद, इमामगंज

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लॉकडाउन इन प्रवासी मजदूरों पर आफत बनकर टूटा है। फैक्ट्री बंद हुई तो कामकाज भी ठप हो गया। किसी तरह एक महीने थोड़े-बहुत जो पैसे थे, उनसे घर चला और फिर खाने के लाले पड़ने लगे। महीना पूरा हुआ तो मकान मालिक भी किराया मांगने पहुंच गया। अनुनय-विनय को अनसुना कर बाहर निकाल दिया और कमरे पर ताला जड़ दिया। उसके बाद बेघर होकर सड़क पर पड़े रहे। फिर फोन कर रुपये मंगवाए और गांव की ओर चल दिए। अपने प्रदेश की सीमा पर पहुंचे तो रिश्वत देकर प्रवेश दिया गया। खैर, अब क्वारंटाइन होने के बाद घर आ गए हैं और परिवार से मिलकर खुश हैं। कहते हैं, अब कभी परदेस में कमाने नहीं जाएंगे।

यह दर्द भरी दास्तां है उत्तर प्रदेश के नोएडा से लौटकर जिले के इमामगंज के बभंडीह ढिवर पर गाव पहुंचे प्रवासियों की। संजय प्रसाद, सुजीत प्रसाद, विजय प्रसाद, अजीत प्रसाद सहित दर्जनों प्रवासी मजदूर बताते हैं, इस गाव में करीब 50 घर हैं। हर घर के एक-दो लोग बाहर में काम करते हैं। हम लोग 10-15 साल से नोएडा में काम कर रहे थे। लॉकडाउन के कारण कामकाज बंद हो गया। मकान मालिक ने कमरे से बाहर निकाल दिया। उस समय लगा जैसे जीवन ही लॉक हो गया।

बताते हैं, गांव वापसी के लिए पाच-पाच हजार रुपये घर से मंगाए। इसके बाद गाड़ी रिजर्व कर वहा से चले। घर आने के लिए एक गाड़ी का पास बनवाने में आठ हजार रिश्वत देनी पड़ी। इसके बाद भी परेशानी से छुटकारा नहीं मिला। बिहार बॉर्डर पर पहुंचे तो रोक दिया गया। अपने ही प्रदेश में आने के लिए गाड़ी के 3200 रुपये रिश्वत देनी पड़ी। रास्ते में ग्रामीणों ने दिया भोजन :

वे बताते हैं, रास्ते में जगह-जगह ग्रामीणों ने खाना व पानी देकर मदद की। रास्ते में मिले अधिकारियों से परेशानी के सिवाय कुछ नहीं मिला। रास्ते में कष्ट सहकर जब घर आए तो हम लोगों को सारा दुख दूर हो गया। क्वारंटाइन सेंटर से घर जाकर लगा कोरोना से युद्ध जीत गए :

गांव पहुंचे तो 14 दिन क्वारंटाइन किया गया। यहां सभी नियमों का पालन किया। क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर जब घर पहुंचे तो लगा कि कोरोना से युद्ध जीत गए। वह कहते हैं, घर में आधे पेट ही सही, आराम से तो रहेंगे। अब बाहर काम करने नहीं जाएंगे। यहीं पर कुछ रोजगार करेंगे। हालांकि, अभी तक रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं हुई है।

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कोट -

प्रवासी मजदूरों को मनरेगा और जल-जीवन-हरियाली योजना के तहत काम दिया जाएगा। सभी प्रवासी मजदूरों को प्रखंड मुख्यालय बुलाकर क्या कार्य कर रहे थे? उसकी विस्तृत जानकारी ली जा रही है। उसी के अनुरूप उन्हें कार्य देने की योजना बनाई गई है।

-जयकिशन, बीडीओ


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