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एनएच किनारे बसे इन गांवों के लोग झेल रहे जलजमाव की भीषण समस्‍या, गली से लेकर खेत तक डूबे

एनएच दो के किनारे बसे कुदरा प्रखंड के लोग जलजमाव की भीषण समस्‍या झेल रहे हैं। साल के अधिकांश महीने में उनकी खेत जलमग्‍न रहते हैं। नाले का पानी सड़क पर बहता है। गंदगी और मच्‍छरों का प्रकोप है।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 11:42 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 11:42 AM (IST)
एनएच किनारे बसे इन गांवों के लोग झेल रहे जलजमाव की भीषण समस्‍या, गली से लेकर खेत तक डूबे
ऐसे ही सड़क पर बहता रहता है गंदा पानी। जागरण

जेएनएन, भभुआ। एनएच दो के किनारे बसे कुदरा प्रखंड के गांव व खेत जलजमाव की गंभीर समस्‍या झेल रहे हैं। इन गांवों के नालों व नालियों में सालों भर पानी जमा रहता है। साथ ही खेत भी साल के कई महीने डूबे रहते हैं। इस कारण खेती-बाड़ी नहीं हो पा रही है।  इतनी बड़ी समस्या होने के बावजूद सरकार के नुमाइंदे चुप्पी साधे रहते हैं। चाहे प्रतिनिधि हों या अधिकारी उन्हें यह कोई समस्या नहीं जान पड़ती है।

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इस समस्या की वजह से परेशानी और आर्थिक क्षति के अलावा पूरे इलाके में गंदगी और मच्छरों का प्रकोप भी बना रहता है। पूर्व के समय में जीटी रोड के नाम से विख्यात ऐतिहासिक सड़क के किनारे कुदरा प्रखंड मुख्यालय में उसके सर्विस रोड के पास की यह स्थिति है। गंदा खुला नाला अब दलदल का रूप धारण कर चुका है जिसमें जंगली घास व खरपतवार उगते रहते हैं। अनेक लोग पैदल या वाहनों से चलते वक्त उसमें गिरकर घायल भी हो चुके हैं। सालों भर पानी लगे रहने के चलते सर्विस रोड का इतना अधिक कटाव हो चुका है कि उसका फुटपाथ पूरी तरह से समाप्त हो चुका है।

एनएच दो के ही किनारे मौजूद पुसौली बाजार की स्थिति भी खराब है। जलनिकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होने के चलते वहां नालियों का गंदा पानी शाही सराय के ऐतिहासिक तालाब में गिरता है। इसके चलते उस तालाब का पानी इस्तेमाल लायक नहीं रह गया है। साथ ही जलजमाव व गंदगी से लोगों को परेशानी होती है। गांवों में जहां-तहां गंदा पानी जमा रहता है। किसान रघुवर सिंह कहते हैं कि जिन खेतों में पहले किसान खूब सब्जी उगाते थे अब सालों भर नमी रहने के चलते उनमें कृषि कार्य संभव नहीं रह गया है। जलजमाव की समस्या एनएचएआइ की उदासीनता के कारण हुई है।  स्थानीय लोग बताते हैं कि पूर्व के समय में हाइवे के दोनों तरफ जलनिकासी के लिए खाली जगह होती थी जिसे चाट कहा जाता था। चाट में विभिन्न तरह के वृक्ष भी लगे रहते थे। इससे दोहरा फायदा होता था। हाइवे के किनारे बस्तियों या खेतों में जलजमाव नहीं होता था तथा पेड़ों से हाइवे पर छाया भी रहती थी। एनएच दो के फोरलेन बनाने के दौरान चाट के पेड़ काट डाले गए और वह खाली जमीन हाइवे में आ गई। इससे जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की नहीं गई। इसके चलते हाइवे छाया विहीन हुआ ही, जलजमाव की भीषण व स्थाई समस्या भी उत्पन्न हो गई।


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