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पंजाब के धागों में हुनर पिरो खास बनाते ये हाथ, यूं ही नहीं बंगाल तक डिमांड

बिहार के गया स्थित पटवा टोली दो बातों के लिए फेमस है। एक यहां से हर साल दर्जन भर लड़के IIT-NIT में दाखिले के लिए चयनित होते हैं। दूसरा यहां का पावरलूम उद्योग। पढें यह खास खबर।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Tue, 26 Feb 2019 04:35 PM (IST)Updated: Wed, 27 Feb 2019 02:36 PM (IST)
पंजाब के धागों में हुनर पिरो खास बनाते ये हाथ, यूं ही नहीं बंगाल तक डिमांड
पंजाब के धागों में हुनर पिरो खास बनाते ये हाथ, यूं ही नहीं बंगाल तक डिमांड

गया [विश्वनाथ]। बिहार के गया स्थित मानपुर की पटवा टोली दो बातों के लिए मशहूर है। एक तो यहां से हर साल दर्जन भर से ज्यादा लड़के आइआइटी व एनआइटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले के लिए चयनित होते हैं। दूसरा यहां का पावरलूम उद्योग। पहले हैंडलूम हुआ करता था। यहां के करीगर पंजाब के धागों में हुनर पिरोकर जो साड़ियां तैयार करते हैं, उन्हें पश्चिम बंगाल में खूब पसंद किया जा रहा है। 

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कपड़ों की मांग कई राज्यों में 

इतना ही नहीं, यहां के कपड़ों, खास तौर से गमछे व धोती की मांग पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा, असम और उत्तरप्रदेश तक है। हर दिन करीब 15 हजार मीटर कपड़ा तैयार होता है। इस पर प्रतिदिन करीब 12.75 लाख रुपये की लागत आती है, यानी महीने के 382 लाख। अब तांत की साड़ी भी बनने लगी है। इसके लिए कच्चे धागे पंजाब और दक्षिण भारत से मंगाए जाते हैं। 

हर महीने पांच करोड़ का धागा 

साड़ी सहित अन्य कपड़ों के लिए प्रतिदिन करीब 18 लाख रुपये के धागे मंगाए जाते हैं। उद्योग नगरी अब नई तकनीक से भी जुड़ रही है। रेपियर मशीन भी आ गई है। यह पावरलूम का ही उन्नत रूप है, जिस पर डिजाइनदार कपड़े तैयार किए जा सकते हैं। पटवा टोली में करीब साढ़े सात हजार पावरलूम हैं। 

नई पीढ़ी का हुआ झुकाव 

वस्त्र उद्योग संघ के गोपाल प्रसाद, दुखन पटवा आदि बताते हैं कि रेपियर मशीन पर तैयार वस्त्रों की अच्छी मांग से नई पीढ़ी का भी इस ओर झुकाव हुआ है। प्रेम नारायण पटना ने बताया कि बंगाल में पटवा टोली की तांत की साडिय़ों की मांग बढ़ रही है। बुनकर डिजाइनिंग भी कर रहे हैं। आजादी से पहले से चल रहे यहां के पुश्तैनी पेशे को आधुनिक तकनीक से काफी फायदा हो रहा है। 

जानें तांत की साड़ी को 

पश्चिम बंगाल में तांत की साड़ी वहां की परंपरा से जुड़ी है। देश के दूसरे हिस्सों में भी चलन में है। इसे बुनकर बनाते थे। यह मुगलकाल में काफी प्रसिद्ध हुई। खास तौर से बंगाल और ढाका इसका केंद्र था। मैनचेस्टर के वस्त्र उद्योग पर इसके असर को देखते हुए अंग्रेजों ने इसे दबाने की कोशिश भी की थी। देश विभाजन के समय कुछ बुनकर बंगाल आ गए, जिससे तांत की साड़ी का स्वरूप यहां भी बना रहा। इस साड़ी का बॉर्डर थोड़ा चौड़ा और पल्लू खूबसूरत डिजाइनिंग वाला होता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी यह पहली पसंद है।


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