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29 मई को सिहर उठती है औरंगाबाद के लोगों की रूह, चारों तरफ बिखरी थीं लाशें, जानकर रह जाएंगे हैरान

पीड़ित परिवाराें ने घटना की 34वीं वरसी मनाई। पीड़ितों ने मारे गए अपने परिवार के सदस्‍यों की तस्वीर पर माल्यार्पण कर नमन किया। यह वरसी हर वर्ष 29 मई को पीड़ित परिवार मनाते हैं। घटना के बाद दोनों गांवों में आज भी रौनक नहीं लौटी है।

By Prashant KumarEdited By: Published: Sat, 29 May 2021 02:03 PM (IST)Updated: Sat, 29 May 2021 02:03 PM (IST)
29 मई को सिहर उठती है औरंगाबाद के लोगों की रूह, चारों तरफ बिखरी थीं लाशें, जानकर रह जाएंगे हैरान
नरसंहार पीडि़त को दिया गया स्‍मारक और उसका बंद घर। जागरण।

[मनीष कुमार] औरंगाबाद। दो गांवों की दास्तां आज भी ग्रामीणों को सामूहिक हत्या का दर्द दे रहा है। 29 मई जब भी आता है मदनपुर थाना के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बसा गांव दलेलचक और बघौरा के ग्रामीणों को नरसंहार की घटना याद आ जाती है और सिहरा देती है। मारे गए ग्रामीणों का स्मारक देख आज भी ग्रामीणों का दिल दहल जाता है। अपने परिवार के खो चुके ग्रामीणों के आंखों में आंसू आ जाती है।

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शनिवार को दोनों गांव के पीड़ित परिवाराें ने घटना की 34वीं वरसी मनाई। पीड़ितों ने मारे गए अपने परिवार के सदस्‍यों की तस्वीर पर माल्यार्पण कर नमन किया। यह वरसी हर वर्ष 29 मई को पीड़ित परिवार मनाते हैं। घटना के बाद दोनों गांवों में आज भी रौनक नहीं लौटी है। नरसंहार पीड़ित परिवार के घरों का हर ईंट आज भी नरसंहार का दर्द बयां करती है। नरसंहार पीड़ित घरों से जो परिवार पलायन किए वे आज भी गांव नहीं लौट सके हैं। 29 मई वर्ष 1987 में भाकपा माओवादी के हथियारबंद नक्सलियों ने दोनों गांवों में हमला कर एक विशेष जाति के 57 लोगों की सामूहिक हत्या कर दी थी।

तब यह घटना राज्य ही नहीं पूरे देश में तहलका मचा दिया था। घटना के बाद उस समय के गृह मंत्री बूटा सिंह, मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे से लेकर कई राजनेता और वरीय अधिकारी गांव पहुंचे थे। 33 वर्ष गुजर गया गांव की खून से सनी लाल मिट्टी पर आज भी ग्रामीणों की जिंदगी नहीं लौट सकी है। दलेलचक गांव मे तो अब कुछ ग्रामीण रहना शुरु किए हैं पर करीब 40 घरों की गांव बघौरा में आज भी सन्नाटा पसरा है। इस गांव का वजूद समाप्त हो गया है। इस गांव के पलायन कर चुके ग्रामीण आज भी गांव नहीं लौटे हैं। इस गांव की नरसंहार पीड़ित ग्रामीणों के घरों में रिश्तों की सौगात नहीं होती है।

नक्सलियों के द्वारा मारे गए ग्रामीणों का स्मारक घर के प्रवेश द्वारा पर ही लगी है। बघौरा गांव के नरसंहार पीड़ित विनय कुमार सिंह कहते हैं कि आज भी नक्सलियों के द्वारा की गई घटना याद आती है। घटना के बाद गांव पहुंचे उस समय के गृहमंत्री, मुख्यमंत्री समेत अन्य राजनेता एवं वरीय अधिकारी जो घोषनाएं की थी आज धरातल पर दिखती नहीं है। गांव से पुलिस पिकेट हटा लिया गया है। मेरा हथियार का लाइसेंस भी रिन्युअल नहीं किया गया है, जो अंगरक्षक मिला था वह भी हटा लिया गया है।


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