अब नाले के स्वरूप में बची है ऐतिहासिक जोकहरी नदी
दुर्दशा -जगह-जगह अतिक्रमण कर बना लिए गए घर और खेत -अतिक्रमण का दंश झेल रही नदी कर्मकाडों के लिए रही है उपयोगी ----------- -80 फीट चौड़ाई थी शुरू में नदी की -20 फीट चौड़ाई बची है अब महज -----------
रविभूषण सिन्हा, वजीरगंज
जिले के वजीरगंज प्रखंड सह अंचल मुख्यालय से पूरब की ओर बह रही जोकहरी नदी की महत्ता सनातन संस्कृति के धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णित है। यह कई तरह के कर्मकाडों के लिए उपयोगी रही है। प्रारंभ में इस नदी की चौड़ाई करीब 80 फीट से अधिक थी, लेकिन इन दिनों यह महज 20 फीट में सिमट कर रह गई है। तीव्र गति से हो रहे अतिक्रमण का दंश झेल रही नदी अपनी मुक्ति का मार्ग तलाश रही है। वजीरगंज प्रखंड से निकली है जोकहरी, गंगा में होती है समाहित :
इस नदी का उद्गम स्थान वजीरगंज प्रखंड क्षेत्र ही है। यह प्रखंड मुख्यालय से करीब पांच किग्रा दक्षिण डाक स्थान के निकट से निकलती है, जो बाजार होते बभंडीह के रास्ते आगे बढ़ती है और निरंतर बढ़ते हुए तपोवन से उत्तर होते हुए पंचानवे नदी में मिलकर गंगा में समाहित हो जाती है। नदी के ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के संबंध में जानकार बताते हैं, पहले इसके किनारे पर कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान व कर्मकाड किए जाते थे। फल्गु की तरह यहा भी ग्रामीण क्षेत्र के लोग पितृ तर्पण के लिए पिंडदान भी किया करते थे, लेकिन अतिक्रमण से इसके घाटों के लुप्त हो जाने के कारण यह सब बंद हो गया। नदी के मुहाने से ही अतिक्रमण का हुआ है विस्तार : नदी के उद्गम स्थान से लगातार बभंडीह तक बीच में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है और निरंतर जारी है। कहीं मकान बनाए गए हैं तो कहीं खेती का काम किया जा रहा है। बाजार से सटे अंचल मुख्यालय के निकट तो अतिक्रमण की सीमा ही पार कर दी गई है। यहा पदाधिकारियों की नाक के नीचे आवासीय मकान, दुकान व मार्केट का निर्माण कर अतिक्रमणकारियों द्वारा किराया भी वसूला जा रहा है। इससे नदी का दायरा सिमटकर इतिहास बनने की कगार पर पहुंच गई है। वर्तमान में यह एक साधारण नाले के स्वरूप में दिखाई पड़ती है। वज़ीरगंज बाजार में अंचल मुख्यालय के निकट ही एनएच-82 पर बने पुल के अंदर का भाग भी बंद कर दिया गया। पुल के नीचे से नदी की धारा प्रवाहित होने के लिए बना मार्ग भी अवरुद्ध कर दिया गया है। पहले किसानों के लिए जल की बड़ी स्रोत थी जोकहरी नदी : यह नदी क्षेत्र के किसानों के लिए एक बढि़या जलस्रोत थी। पहले क्षेत्र के दर्जनों गावों के किसान नदी में संग्रहित पानी से सालभर खेती की सिंचाई करते थे, लेकिन अब ये सब बंद हो गए हैं। जल-जीवन-हरियाली योजना का भी इस नदी की मुक्ति के लिए कोई प्रभावशाली योजना नहीं बनी। बिहार सरकार ने अपनी इस बहुउद्देशीय योजना के तहत नदियों, तालाबों व अन्य प्राकृतिक जलस्रोतों की सुरक्षा व सफाई के कई निर्देश दे चुके हैं, लेकिन जोकहरी नदी अभी तक इन योजनाओं से अछूती है। क्षेत्र के किसान नदी के उद्धार के लिए चिंतित जरूर हैं, लेकिन दबंग किस्म के व्यवसायी वर्ग बड़े पैमाने पर अतिक्रमण का अभियान चला रखे हैं। इससे नदी का अस्तित्व मिटाने की कगार पर है। अब देखना यह है कि वजीरगंज की धरती पर कोई भागीरथ पैदा होकर इसके उद्धार की कोई राह प्रशस्त करता है या फिर नदी एक इतिहास ही बन जाएगी।
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जोकहरी नदी का वर्तमान स्वरूप वास्तव में बहुत सकरा है। अब की तुलना में पहले कितनी अधिक चौड़ाई थी, उसका अध्ययन किया जाएगा। साथ ही संबंधित कर्मचारियों से नदी के अतिक्रमित क्षेत्र का सर्वे कराने के बाद वास्तव में अतिक्रमण मिलेगा तो विधिवत कार्रवाई कर इसे मुक्त कराया जाएगा।
-बिजेंद्र कुमार, अंचल अधिकारी