दो राज्यों का शासन पर दुख-दर्द सुनने वाला कोई नहीं
फोटो 666 -डोभी प्रखंड के पिंडरा खुर्द गाव के अधिकतर घर बिहार में तो दरवाजा खुलता है झारखंड में ------- -सीमांत गांव होने के कारण सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में परेशानी आधे गांव में बिजली तो आधा अंधकारमय आवासीय प्रमाणपत्र बनाने में दोनों राज्यों के अधिकारी करते हैं आनाकानी ------- -2425 है इस गांव की आबादी -2000 बिहार तो 425 झारखंड के रहने वाले ---------
नीरज कुमार, डोभी (गया)
डोभी प्रखंड का पिंडरा खुर्द गाव। घर बिहार में है तो दरवाजा खुलता है झारखंड में। यानि गांव पर दो राज्यों का शासन है पर ग्रामीण बेहिसाब दर्द झेल रहे। बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए लोग तरस रहे हैं। और तो और विद्यार्थियों का भविष्य भी भंवर में है।
वर्ष 2000 में बिहार से झारखंड बना। विभाजन के दौरान लोगों में उम्मीद बंधी कि छोटा राज्य होने से चहुंओर विकास होगा। वर्षो बीत गए पर ऐसा हुआ नहीं। दोनों राज्यों के सीमांत गांवों के लोग आज भी सुविधाओं से महरूम हैं। इन्हीं गांवों में एक पिंडरा खुर्द गाव भी है। आधा गांव बिहार में तो आधा झारखंड में। यहां के लोग अपने आपको कोसते हैं। ग्रामीण कहते हैं, झारखंड के निवासी बिहार सरकार की योजनाओं का लाभ लेते हैं, लेकिन खुद बिहारी वंचित हैं। आधे गांव (झारखंड) को चौबीस घटे बिजली मिलती है, जबकि आधा गांव (बिहार) अंधेरे में कई घंटे डूबा रहता है। सबसे ज्यादा परेशानी आवासीय प्रमाणपत्र बनाने में आती है। दोनों राज्यों के अधिकारी आनाकानी करते हैं। इस गांव की आबादी 2425 है। इनमें से दो हजार बिहार तो 425 झारखंड के रहने वाले हैं।
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नहीं बने शौचालय
प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान का पिंडरा गाव में पहुंचकर दम टूट जाता है। ग्रामीण संजय कुमार बताते हैं, योजना की जानकारी नहीं होने के कारण शौचालय का निर्माण नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण इस योजना के लाभ से भी वंचित हैं।
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पेंशन के लिए
दर-दर की ठोकरें
गाव की महिला प्रमिला देवी बताती हैं, सीमांत गांव में होने का काफी खामियाजा भुगतना पड़ता है। गाव के अधिकाश लोग वृद्धा और विधवा पेंशन से वंचित हैं। प्रधानमंत्री आवास सहित अन्य योजनाओं के लाभ से गांव का दूर-दूर तक वास्ता नहीं है। दोनों राज्यों के अधिकारी एक-दूसरे राज्य के निवासी बताकर टाल देते हैं।
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मुख्य सड़क भी कच्ची
ग्रामीण चरितर मिस्त्री, बनवारी दास बताते हैं, झारखंड सरकार अपने हिस्से की सड़क बना रही है, जबकि बिहार की सीमा में आने वाले हिस्से की सड़क जर्जर है। ऐसे में लोगों को काफी परेशानी हो रही है। अब तो यह भी समझ नहीं आ रहा है किससे गुहार लगाएं।
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शिक्षा के लिए एकमात्र
प्राथमिक विद्यालय
पिंडारा खुर्द के गाव के बच्चों के लिए दो किलोमीटर दूर एकमात्र प्राथमिक विद्यालय अवस्थित है। वहा भी भवन के साथ-साथ शिक्षकों का घोर अभाव है। शिक्षक राजकुमार राम बताते हैं, बिहार से ज्यादा झारखंड में बच्चों को सुविधाएं मिल रही है। ऐसे में यहां के ज्यादातर बच्चे झारखंड की स्कूलों का रुख कर लेते हैं।
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झारखंड से करते हैं मैट्रिक पास, बिहार की योजना से रह जाते वंचित
छात्र प्रभात कुमार ने कहा कि उच्च विद्यालय नहीं होने के कारण झारखंड में पढ़ना पड़ता है। यदि हम बिहार राज्य के भरोसे रहते हैं तो यहां से दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। ऐसे में झारखंड से मैट्रिक पास होने पर बिहार में विद्यार्थियों को मिलने वाले लाभ से वंचित रह जाते हैं। वहीं, बिहार निवासी होने के कारण झारखंड सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता।
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बीमार पड़ने पर भी पड़ोसी
राज्य का ही सहारा
बीमार पड़ने पर भी लोग झारखंड के स्वास्थ्य केंद्र में ही पहुंचते हैं। गांव में या फिर आसपास एक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है। गाव में अधिकांश अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं कि निजी अस्पताल में जाकर इलाज कराएं।
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सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ गाव के लोगों तक पहुचाने का कार्य किया जा रहा है। विकास में गावों को प्राथमिकता दी जा रही है और दी जाएगी। सीमा पर होने के कारण योजना क्रियान्वित करने से पहले नक्शे पर गौर करना होता है।
नीरज कुमार राय, बीडीओ, डोभी