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Bihar: मुखिया की अंत्‍येष्टि के लिए परिवार में नहीं थे पैसे, ग्रामीणों ने चंदा जुटाकर किया अंतिम संस्‍कार

कैमूर जिले के चैनपुर प्रखंड अंतर्गत सिरबिट पंचायत के मुखिया शिवमूरत मुसहर का निधन बीमारी से हो गया। हैरानी की बात है कि उनके अंतिम संस्‍कार के लिए भी स्‍वजनों के पास पैसे नहीं थे। ग्रामीणों ने चंदा एकत्र कर अंत्‍येष्टि की।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Tue, 04 May 2021 07:00 PM (IST)Updated: Tue, 04 May 2021 07:00 PM (IST)
अपनी बदहाली बयां करती मुखिया की पत्‍नी सुखिया देवी। जागरण

चैनपुर (कैमूर), संवाद सूत्र। प्रखंड के सिरबिट पंचायत के मुखिया शिवमूरत मुसहर का निधन सोमवार को लंबी बीमारी के चलते हो गया। उनके निधन के बाद शव का दाह संस्कार स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा चंदा जुटाकर किया गया है। क्‍योंकि स्‍वजनों के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि उनकी अंत्‍येष्टि की जा सके। सुनने में तो हैरान करने वाली बात लग रही है लेकिन यह हकीकत है। 

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लंबे समय से थे बीमार, वाराणसी में चल रहा था इलाज  

मिली जानकारी के मुताबिक ग्राम पंचायत सिरबिट के मुखिया शिवमूरत मुसहर लंबे समय से बीमार थे। उनका इलाज वाराणसी में चल रहा था। उन्हें सांस से जुड़ी बीमारी थी। इलाज के दौरान उनका निधन सोमवार को हो गया। ग्रामीणों ने बताया कि मुखिया की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। लंबे समय से वह सरकार से अनुसूचित जनजाति के लिए बनाई गई कॉलोनी में अपना गुजर-बसर कर रहे थे। जीवनयापन के लिए बीपीएल धारी होने के चलते उन्हें जनवितरण प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक महीने राशन मिलता था। इसी से उनका गुजर-बसर होता था। आय का और कोई अन्य साधन नहीं था।

स्‍वजनों ने प्रतिनिधि पर लगाए गंभीर आरोप 

मुखिया का सारा कार्य उनके प्रतिनिधि ही करते थे। यहां तक की सरकार से प्रत्येक माह मिलने वाली राशि भी मुखिया को नहीं मिलती थी। वहीं मुखिया के निधन के बाद उनके स्‍वजनों ने मुखिया प्रतिनिध‍ि पर कई आरोप लगाए हैं।  ग्रामीणों की माने तो मुखिया के निधन होने के बाद मुखिया के दाह संस्कार के लिए भी मुखिया के  स्‍वजनों के पास पैसे नहीं थे। स्थानीय कुछ लोगों ने चंदा जुटाकर मंगलवार की दोपहर शिवमूरत मुसहर के शव का अंतिम संस्‍कार किया।

कभी भरपेट भोजन नहीं मिला  

पारिवारिक स्थिति की बात करे तो मुखिया के पुत्र नहीं थे। सिर्फ दो पुत्रियां थी। पत्‍नी सुखिया देवी ने बताया कि मुखिया रहते हुए भी कभी तीनों टाइम इन्हें एवं उनके परिवार को भोजन नसीब नहीं हुआ। सुखिया देवी की इस बात से सवाल उठना लाजिमी है कि एक ओर मुखिया पद के लिए बड़े-बड़े लोग चुनाव लड़ते हैं। एक बार मुखिया बनने पर कई की किस्‍मत चमक गई। लेकिन एक ऐसे भी मुखिया हैं जिनकी अंत्‍येष्टि के भी पैसे स्‍वजन के पास नहीं थे। 


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