पुराणों में भी जिक्र, मोक्ष के लिए गयाजी में पिंडदान जरूरी, हिंदू धर्म के अनुसार आत्मा को मिलती शांति
पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए किया जाने वाला दान है। पिंडदान प्राचीनकाल से ही होता आ रहा है। पितृपक्ष में पिंडदान का काफी महत्व है। पिंडदान तीन दिन सात दिन 15 दिन और 17 दिनों का होता है। पिंडवेदियों पर जाकर कर्मकांड करते हैं।
जागरण संवाददाता, गया। सनातन धर्म में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों को पिंडदान व तर्पण इसलिए किया जाता है, जिससे मृतक की आत्मा को शांति मिले और उन्हें गति मिल सके। मान्यता है कि एक बार जो व्यक्ति गया में आकर पिंडदान कर देता है, उसे फिर कभी पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध या पिंडदान की जरूरत नहीं पड़ती है। ज्यादा लोगों की यह चाहत होती है कि मृत्यु के बाद उनका पिंडदान गया में हो। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि गया में श्राद्ध कराने से आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है।
पिंडदान का पुराणों में भी उल्लेख
गया में श्राद्ध का महत्व बहुत अधिक है। पिंडदान के महत्व का कई पुराणों में उल्लेख है। गरुड़ पुराण, वायु पुराण, पद्म पुराण और भागवत पुराण में कहा गया है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को इस संसार से मोक्ष मिलता है। गरुड़ पुराण के मुताबिक गया जाने के लिए घर से निकलते ही पितरों के लिए स्वर्ग की ओर जाने की सीढ़ी बनने लगती है।
प्राचीनकाल से होता रहा है पिंडदान
पिंडदान अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए किया जाने वाला दान है। पिंडदान प्राचीनकाल से ही होता आ रहा है। पितृपक्ष में पिंडदान का काफी महत्व है। पिंडदान तीन दिन, सात दिन, 15 दिन और 17 दिनों का होता है। पिंडवेदियों पर जाकर कर्मकांड करते हैं।
पितृपक्ष मेले के संबंध में लोगों की राय
गयापाल पुरोहित मनीलाल बारिक ने बताया कि पितृपक्ष मेले का आयोजन कोरोनाकाल नहीं में होना चाहिए, लेकिन पिंडदान से पिंडदानियों को दूर नहीं करना चाहिए। पितरों के मोक्ष के लिए श्राद्धकर्म बहुत जरुरी है।
गयापाल पुरोहित प्रेमनाथ टइया ने बताया कि प्राचीनकाल से ही पितृपक्ष मेला लगता रहा है। इस वर्ष भी मेले का आयोजन होना चाहिए। नहीं तो सनातन धर्म के लोगों की आस्था पर ठेस पहुंचेगी। कोरोना नियम के तहत मेले का आयोजन शासन-प्रशासन को करना चाहिए।
गयापाल पुरोहित राम बारिक ने बताया कि पितृपक्ष पितरों का पर्व है। पितृपक्ष में पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति आसानी से होती है। ऐसे में मेले का आयोजन हर हाल में होना चाहिए। मेला नहीं लगने से कारोबार पर बड़ा असर पड़ता है।
गयापाल पुरोहित सुदामा दुबे ने बताया कि मेले का आयोजन हर हाल में होना चाहिए। कोरोनाकाल में जब चुनाव व नेताओं की सभा हो सकती है तो पिंडदान क्यों नहीं? कोरोना गाइडलाइन के तहत मेला जरूर लगना चाहिए।